शिक्षक दिवस : आसान ना था IIT गुरु आनंद कुमार का सफर, हजारों गरीब बच्चों को बना चुके हैं इंजीनियर

शिक्षा के क्षेत्र में पटना के आनंद कुमार और उनकी संस्था ‘सुपर 30’ को कौन नहीं जानता। हर साल आईआईटी रिजल्ट्स के दौरान उनके ‘सुपर 30’ की चर्चा अखबारों में खूब सुर्खियाँ बटोरती हैं। आनंद कुमार अपने इस संस्था के जरिए गरीब मेधावी बच्चों के आईआईटी में पढ़ने के सपने को हकीकत में बदलते हैं। सन् 2002 में आनंद सर ने सुपर 30 की शुरुआत की और तीस बच्चों को नि:शुल्क आईआईटी की कोचिंग देना शुरु किया। पहले ही साल यानी 2003 की आईआईटी प्रवेश परीक्षाओं में सुपर 30 के 30 में से 18 बच्चों को सफलता हासिल हो गई।

उसके बाद 2004 में 30 में से 22 बच्चे और 2005 में 26 बच्चों को सफलता मिली। इसीप्रकार सफलता का ग्राफ लगातार बढ़ता गया। सन् 2008 से 2010 तक सुपर 30 का रिजल्ट सौ प्रतिशत रहा।आज आनंद कुमार राष्ट्रीय व अंतराष्ट्रीय मंचों को संबोधित करते हैं। उनके सुपर 30 की चर्चा विदेशों तक फैल चुकी है। कई विदेशी विद्वान उनका इंस्टीट्यूट देखने आते हैं और आनंद कुमार की कार्यशैली को समझने की कोशिश करते हैं। हाल ही में आनंद कुमार को विश्व के प्रतिष्ठित विश्विद्यालय ने अपने यहाँ लेक्चर के लिए बुलाया है। आज आनंद कुमार का नाम पूरी दुनिया जानती है और इसमें कोई शक नहीं कि आनंद कुमार बिहार का गौरव है।

आनंद कुमार से जब पूछा गया कि सुपर 30 का नाम सुपर 30 ही क्यों रखा गया, 40 या 50 क्यों नहीं । तो इस पर उन्होंने बताया कि जो बच्चे सुपर 30 में पढ़ाई कर रहे हैं उनका रहने का खर्च हम ही लोग उठाते हैं और बच्चों का खाना मेरी मां बनाती हैं । उन्होंने कहा उस समय आमदनी इतनी नही थी।

 

आनंद कुमार के Super-30 में 30 बच्चे ही क्यों : आनंद ने बताया कि सुपर 30 को चलाने के लिए आज तक किसी भी तरह का चंदा नहीं लिया । हमारी टीम शाम को कुछ ऐसे बच्चों को ट्यूशन देती है जो फीस दे सकते हैं । उन्हीं पैसों से बच्चों की पढ़ाई और उनके खाने का खर्चा उठाया जाता है। उन्होंने बताया देश के “प्रधानमंत्री, अंबानी, मुख्यमंत्री समेत कई बड़े- बड़े लोगों ने कहा की करोड़ों रुपये चंदा ले लो लेकिन आज तक हमने कभी किसी से 1 रुपये चंदा नहीं लिया है”।

आनंद ने कहा ये सफर आसान नहीं था। इस दौरान हमें कई माफियाओं से भी जूझना पड़ा। कई बार माफिया लोगों ने हमारे ऊपर हमला किया। कई केस मुकदमे में फंसाने की कोशिश की । जिसकी वजह से हमारे निर्दोष सहयोगी को तीन महीने की जेल भी हुई । बाद में जब बिहार पुलिस ने कार्यवाही की तो उसमें वह निर्दोष साबित हुए। यहीं नहीं मेरे भाई पर भी हमला किया गया।

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