आरा में मुश्किल है भाजपा की जीत, आरके सिंह अवसरवादी राजनीति के सबसे शातिर व्यक्ति हैं

PATNA : बीते पाँच साल की राजनीति में आरके सिंह का अध्याय पलट लीजिये। उनका चेहरा और तेवर देख लीजिए। इसी के मध्य आरा में हुई में हुई आख़िल भारतीय राजनीति, सांस्कृतिक, धार्मिक, वैचारिक सवालों पर आरके सिंह के राय को भी जान जाइये। भारी निराशा होगी। आरके सिंह में वैचारिकता शून्यता का सन्नट्टा नज़र आएगा।

क्या आरके सिंह ने 2 अप्रैल 2018 को दलितों द्वारा एसी-एसटी एक्ट को लेकर आख़िल भारत बंद पर कोई बयान दिया था? कुछ भी बोला था? दलितों के पक्ष में या विपक्ष में? कुछ भी। आरके सिंह इस दृश्य से पूरी तरह नदारद है।

दलितों द्वारा बंदी की प्रतिक्रिया में 10 अप्रैल 2018 को सवर्णों द्वारा बंदी पर आरके सिंह का कोई बयान आया था? उन्होंने कुछ भी बोला था? 2 और 10 अप्रैल 2019 को भारत बंद के दौरान आरा में व्यापक असर था। राष्ट्रीय मीडिया में खूब खबरें चली। आरा का जनप्रतिनिधि होने के नाते आरके सिंह की कोई प्रतिक्रिया आयी थी? सवर्णों के पक्ष में भी? कुछ भी नहीं हुआ।

आरा में छात्रों ने रैलवे में बहाली को लेकर दो बार रेलवे स्टेशन को जाम किया था। एक बार बहाली को लेकर और दूसरी बार परीक्षा शुल्क और उम्र की सीमा में कमी करने के सवाल को लेकर। आरके सिंह कहा थे? आरके सिंह ने कभी भी उन आंदोलन कारी छात्रों के पक्ष में संसद से लेकर सड़क तक कही भी कुछ बयान दिया? कुछ बोला? एक अदद नौकरी के सवाल पर आरके सिंह छात्रों का पक्ष नहीं लिया तो किस काम का जनप्रतिनिधि और कैसा विकास पुरुष? यह व्यक्ति प्रतिनिधि तो क्या एक सामान्य नागरिक जीवन को अपंग बना देने वाला है। इन आंदोलनकारी छात्रों में सवर्ण छात्र नहीं थे?

आरके सिंह एक समाज में विभेद पैदा करने वाले पूर्व नौकरशाह है। स्नातक स्तर की मोटी कमाई वाला अच्छी नौकरी करने वाला आदमी है। आसान भाषा में कहे तो आला दर्ज़े का क्लर्क।

आरके सिंह एक ग्रेजुएट लेवेल सरकारी नौकर थे। बड़ा बाबू थे। कोई प्रोफेसर और डॉक्टर नहीं थे। सामान्य बात यह है कि प्रोफेसर कई ऐसे IAS को बनने में सहायक हो सकता है। मगर एक IAS, एक प्रोफेसर पैदा नहीं कर सकता। एक डॉक्टर कई IAS के रोग को ठीक कर सकता और उसे रोगी करार दे सकता है मगर कोई IAS ऐसा करने का धिकारी नहीं है।

आरा में आरके सिंह ने क्या किया ??

बहुत ही क़रीने से एक झूठ फैलाया गया कि आरके सिंह विकास पुरुष है। कि बिना जाति, धर्म, कर्म देखे सबका साथ और सबका विकास चाहते है। जबकि हिन्दू आतंकवाद जैसे अतिवादी टर्म इज़ाद करने वाले पूर्व अधिकारी ने अपने जातीय दंभ और उन्माद का एक बहुत ही चमकीला रायता फैला दिया। आरके सिंह के जाति से ताल्लुक रखने वाले पत्रकारों ने पूरी बेशर्मी से विकास पुरुष का तमगा बिना किसी तथ्य के दे दिया। जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्वाकांक्षी योजना में जिस गाँव को गोद लिया उसकी रीढ़ गायब कर दिया। आरके सिंह के सांसद निधि का फंड तीन हिस्सा वापस लौट गया है। कोई ऐसा दास्तवेज़ नहीं जिससे पता चले कि आरके सिंह ने कोई ऐतिहासिक काम किया।

पिछले पांच साल में विकास के बुनियादी सवाल स्वास्थ्य और शिक्षा में कोई कार्य हुआ? सात विधान सभा में कही भी एक सरकारी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और प्राथमिक शिक्षा का केंद्र की नींव नज़र आ रहा है?

साल 2015 के बिहार विधान सभा चुनाव को याद कीजिये। आरके सिंह ने कहा था कि हम अपराधियों के लिए चुनाव प्रचार नहीं करते। उनका यह बयान और इशारा दो विधान सभा क्षेत्र तरारी और शाहपुर को लेकर था। जहाँ से क्रमशः सुनील पाण्डेय की पत्नी गीता देवी और विशेश्वर ओझा चुनाव लड़ रहे थे। लेकिन अंदर की यह खबर थी कि उनके एक शुभचिन्तक को बीजेपी से टिकट नहीं मिला इसलिए वे नाराज़ थे। जबकि कथित मोदी लहर में भी साल 2014 के लोकसभा चुनाव प्रचार में उन कथित आपराधियों का अपूर्व सहयोग लेने में किसी तरह का कोई परहेज नहीं था।

समय बदल गया है। आरके सिंह उन कथित अपराधियों का साथ पाने के लिये बेचैन ही नहीं बल्कि काफी मशक्कत कर रहे है जिनके पक्ष में बिहार विधान सभा चुनाव प्रचार करना गवारा नहीं था। बड़ी पैरवी से वे बेमन से साथ आ रहे हैं। आरा में आरके सिंह ने एक और बड़ा काम किया है। जन आकांक्षा के राजनीति को बरबाद कर उसपर एक क्रूर अफसरशाही वाली राजनीति को आरोपित करने का जघन्य अपराध किया है।

एक चुनावी प्रचार के दौरान आरके सिंह ने कहा था कि राजद, कांग्रेस और विपक्षी दलों के लोग वोट मांगने आये तो उन्हें जूता से मारिये और भगाइये। यह बात आरके सिंह के लोकतंत्र, राजनीति के वैचारिक आचरण, भारत के विविधता, शांति की आकांक्षा का घोर अपमान ही नहीं बल्कि अपराध के उच्च किस्म की प्रणाली को जन्म दिया।

आरके सिंह कोई बहुत पढ़े-लिखे विद्वान और समझदार व्यक्ति नहीं है। बल्कि वे बहुत चालाक, शातिर और अवसरवादी व्यक्ति है।

लेखक : आशुतोष कुमार पांडे, पत्रकार, आरा

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