पाकिस्तान का हिंगलाज माता मंदिर, मुस्लिम मानते हैं इसे हज, यहां आने से पहले लेनी होती हैं दो शपथ

लसबेला. इन दिनों भारत में नवरात्रि (Navratri 2021) की धूम है. देश के हर शहर-कस्बे में माता के दरबार भक्तों के लिए खुले हुए हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि पड़ोसी देश पाकिस्तान में माता के 51 शक्तिपीठों में शामिल एक हिंगलाज मंदिर (Hinglaj Mata Mandir in Pakistan) भी है. यह पाकिस्तान के तटीय प्रांत बलूचिस्तान (balochistan) के लसबेला कस्बे (Lasbela) में मौजूद है. यहां हिंदू हो या मुस्लिम सभी लोगों के सिर झुक जाते हैं. आइए हम आपको मुस्लिम देश पाकिस्तान में हिंगलाज मंदिर की यात्रा पर ले चलते हैं..

अमरनाथ से भी ज्यादा कठिन है हिंगलाज मंदिर यात्रा
हिंगलाज मंदिर पहुंचना अमरनाथ यात्रा से भी ज्यादा कठिन माना जाता है. रास्ते में 1000 फुट ऊंचे-ऊंचे पहाड़, दूर तक फैला सुनसान रेगिस्तान, जंगली जानवर वाले घने जंगल और 300 फीट ऊंचा मड ज्वालामुखी पड़ता है. ऊपर से डाकुओं और आतंकियों का डर अलग से.

भारत से भी यहां पहुंचने के लिए पहले कराची जाना होगा. कराची से हिंगलाज की दूरी करीब 250 किमी है.

पाकिस्तान हिंदू सेवा के प्रेसिडेंट संजेश धनजा के मुताबिक, सुरक्षा के नाम पर ना कोई पाकिस्तानी रेंजर रहता है और ना ही कोई पर्सनल सिक्योरिटी. इस जगह लोग 30-40 लोगों का ग्रुप बनाकर ही जाते हैं. अकेले मंदिर की यात्रा करना मना है. यात्री 4 पड़ाव और 55 किमी की पैदल यात्रा करके हिंगलाज पहुंचते हैं. 2007 में चीन द्वारा रोड बनवाने से पहले तक हिंगलाज पहुंचने के लिए 200 किमी पैदल चलना होता था। इसमें 2 से 3 महीने तक लग जाते थे.

यात्रा शुरू करने से पहले लेनी होती है 2 शपथ
हिंगलाज माता के दर्शन के लिए जाने वाले यात्रियों को 2 शपथ लेनी पड़ती है. पहली माता के मंदिर के दर्शन करके वापस लौटने तक सन्यास ग्रहण करने की. दूसरी, पूरी यात्रा में कोई भी यात्री अपने सहयात्री को अपनी सुराही का पानी नहीं देगा. भले ही वह प्यास से तड़प कर वीराने में मर जाए.

माना जाता है कि भगवान राम के समय से ही ये दोनों शपथ हिंगलाज माता तक पहुंचने के लिए भक्तों की परीक्षा लेने के लिए चली आ रही है. इन शपथ को पूरा न करने वाले की हिंगलाज यात्रा पूर्ण नहीं मानी जाती.

भगवान शिव की पत्नी का सिर कटा था
हिंदू पुराणों के मुताबिक, पिता के अपमान से दुखी देवी सती ने खुद को हवनकुंड में जला डाला. इसके बाद सती के शव को कंधे पर उठाकर भगवान शिव क्रोध में नृत्य करने लगे. उन्हें शांत करने के लिए भगवान विष्णु ने अपने चक्र से सती के 51 टुकड़े कर दिए. ये टुकड़े जहां-जहां गिरे, उन 51 जगहों को ही देवी शक्तिपीठ के नाम से जाना जाता है.

इसी पहले हिस्से यानी सिर के चलते पाकिस्तान के हिंगलाज को धरती पर माता का पहला स्थान कहते हैं.

इन टुकड़ों में सती के शरीर का पहला हिस्सा यानी सिर किर्थर पहाड़ी पर गिरा, जिसे आज हिंगलाज के नाम जानते हैं.

साल में 2 बार सबसे ज्यादा भीड़
हर साल पड़ने वाले 2 नवरात्रों में यहां सबसे ज्यादा भीड़ होती है. इस समय करीब 10 से 25 हजार भक्त हर दिन हिंगलाज माता के दर्शन के लिए यहां आते हैं. इनमें अमेरिका, ब्रिटेन, इंडिया और पाकिस्तान जैसे देश प्रमुख हैं. किर्थार पहाड़ों की तलहटी में स्थित हिंगलाज मंदिर आजादी से पहले भारत में ही था.

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