जिस कोर्ट में पापा चपरासी रहे, उसी अदालत में बेटी जज बनी, पटना की अर्चना की सफलता की कहानी

Sonpur: पूत कपूत तो क्यों धन संचय और पूत सपूत तो क्यों धन संचय, पटना की अर्चना कुमारी ने इस बात को शत प्रतिशत सही साबित कर दिखाया है। कल्पना कीजिये वह चपरासी पिता आज कितना खुश हो रहा होगा। कल तक कोर्ट में वह दूसरे जज की टहल बजाते थे। अब उनकी अपनी बेटी जज बन कर गयी है।

यह कहानी संघर्षों से परीपर्य है। हिंदी माध्यम के सरकारी स्कूल-कॉलेज से ग्रेजुएशन तक की पढ़ाई करने वाली अर्चना कुमारी ने शादीशुदा और एक बच्चे की मां होने के बावजूद अपने हौसले से कोर्ट में न्यायिक अधिकारी बनने का रास्ता तय किया है।

जिस कोर्ट में उनके पिता गौरीनंदन चपरासी की नौकरी किया करते थे, उसी कोर्ट में अब जज बिटिया (Judge Daughter) फैसले सुनाए करेगी। राजधानी के कंकरबाग की रहने वाली अर्चना कुमारी ने संघर्षों से यह कठिन रास्ता हासिल किया है। यह सफलता (Success) एक कड़ी मेहनत की गवाही देती है।

34 साल की अर्चना (Archana Kumari) के पिता सोनपुर रेलवे कोर्ट (Sonpur Railway Court) में चपरासी (Peon) के पद पर थे और अब उनकी बिटिया अर्चना कुमारी ने 2018 में हुई 30वीं बिहार न्यायिक सेवक परीक्षा (Bihar Civil Service Exam) में सफलता हासिल की है। बीते नवंबर के आख़िरी हफ़्ते में घोषित नतीजों में अर्चना को सामान्य श्रेणी में 227वां और ओबीसी (OBC) कैटेगरी में 10वीं रैंक मिली है।

बिहार न्यायिक सेवा प्रतियोगिता परीक्षा में अर्चना कुमारी का सिलेक्शन हुआ है। साधारण से परिवार में जन्मी अर्चना के पिता गौरीनंदन जी सोनपुर सिविल कोर्ट जिला छपरा में चपरासी पद पर थे। शास्त्रीनगर कन्या हाईस्कूल से उन्होंने 72 वीं तक की शिक्षा प्राप्त की।

इसके बाद पटना विवि से ग कालेज किया। इसी दौरान पिता की दुर्घटना में आकस्मिक मृत्यु के बाद परिवार की जिम्मेदारी अर्चना पर अचानक आ गयी। उन्होंने पढ़ाई भी की और कोचिंग में पढ़ा कर परिवार भी चलाया।उनके पति राजीव रंजन ने उन्हें उनके सपनों को पूरा करने में मदद की। 2006 में अर्चना की शादी हुई थी।

पति ने उनमें पढ़ने की ललक देखी तो साल 2008 में पुणे विश्वविद्यालय में अर्चना ने एलएलबी कोर्स में दाखिला ले लिया। अर्चना बताती है, मेरी पूरी पढ़ाई हिंदी माध्यम से थी, इसलिए रिश्तेदारों ने कहा कि मैं जल्द ही पुणे यूनिवर्सिटी के अंग्रेज़ी माहौल से बाहर निकल आऊंगी। मेरे सामने अंग्रेज़ी में तो पढ़ाई करने की चुनौती के साथ बिहार से पहली बार बाहर निकलकर पढ़ने की भी थी।

2011 में क़ानून की पढ़ाई पूरी करने के बाद वो पटना वापस आईं तो गर्भवती हो गईं।साल 2012 में उन्होंने एक बच्चे को जन्म दिया। बच्चे जन्म के बाद की ज़िम्मेदारी बड़ी थी। लेकिन अर्चना ने अपने सपनों और मां की ज़िम्मेदारी का को बनाये रखते हुये वो अपने 5 माह के बच्चे और अपनी मां के साथ आगे की पढ़ाई की तैयारी के लिए दिल्ली चली गईं। यहां उन्होंने एलएलएम की पढ़ाई, प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी की और साथ ही अपनी आजीविका के लिए कोचिंग में क़ानून के छात्रों को पढ़ाया भी।

पटना मेडिकल कॉलेज में क्लर्क राजीव रंजन से विवाह के बाद उन्होंने इंग्लिश माध्यम से पुणे यूनिवर्सिटी से एलएलबी और बीएमटी लॉ कालेज पूर्णिया से एलएलएम किया। अपने दूसरे प्रयास में उन्होंने बिहार न्यायिक सेवा में सफलता प्राप्त की है। अर्चना बताती हैं कि जज बनने का सपना उन्होने तब देखा था जब वह सोनपुर जज कोठी में एक छोटे से कमरे में परिवार के साथ रहती थीं। उन्होंने बताया कि छोटे से कमरे से उन्होंने जज बनने का सपना देखा जो आज साकार हुआ है।

उन्होंने कहा कि पिता की मृत्यु के बाद बहुत कष्ट झेले लेकिन मैंने सपना पूरा करने के प्रयास नहीं छोड़े। उन्होंने कहा कि शादी के बाद लॉ किया, एलएलएम किया और दिल्‍ली में ज्यूडिशियरी की तैयारी छात्रों को करायी। उन्होंने भावुक होते हुए कहा कि पिता की मृत्यु के बाद मां ने हर मोड़ पर साथ दिया, पति ने सहयोग किया और भाई-बहन ने ऊर्जा दी, जो मेरे लिए हौसला बनी। उन्होंने कहा कि नारी जो ठान ले वह कर सकती है। कठिनाइयां हर सफर में आती हैं लेकिन हौसला नहीं छोड़ना चाहिए।

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