बिहारी छात्रों का भविष्य समाप्त, फीस बढ़ने से घर लौटने को मजबूर JNU के कई छात्र

गरीबी..बेबसी और निराशा…फीस बढ़ने से घर लौटने को मजबूर JNU के ये छात्र

जवाहर लाल यूनिवर्सिटी (JNU) में पिछले कई दिनों से छात्रों में बढ़ी हुई हॉस्टल की फ़ीस को लेकर लगातार ग़ुस्सा देखा जा रहा है. पिछले एक महीने से अलग-अलग तरीकों से छात्र अपनी बात रख रहे हैं. दिल्ली आज तक ने कैंपस के उन छात्रों से ख़ास बातचीत की जो लगातार इस आंदोलन को समर्थन दे रहे हैं. आइए जानें- आखिर इस विरोध के पीछे का असली सच क्या है. फोटो: मिन्हाज आलम, मो उर्फ अच्छे मियां, फैसल महमूद, मिसबाहुल खैर, जानकी तूडू और कुमारी चैत्रा (बायें से दायें क्रम में)

बातचीत में छात्रों ने कहा कि यूनिवर्सिटी में 40% छात्र ऐसे हैं जो इस बढ़ी हुई फ़ीस को अफोर्ड नहीं कर सकते. इनका कहना है कि यूनिवर्सिटी में ऐसे कई स्टूडेंट्स है जिनके परिवार की महीने की कुल तनख़्वाह 7000 रुपये से ज्यादा नहीं है.

बिहार से आए मोहम्मद उर्फ़ अच्छे मियां ने बताया कि उनके पिता नहीं है, उनकी मां एक हाउसवाइफ है. अच्छे मियां की तकलीफ ये है कि उनके साथ- साथ उनके और चार भाई हैं जो शादीशुदा है. इसीलिए उन्हें अपने साथ- साथ अपने परिवारों का भी पेट पालना होता है. ये चारों भाई बिहार में एक मदरसे में पढ़ाते हैं और घर की महीने की कुल तनख़्वाह 12 हज़ार रुपये हैं जिसमें कुल 10 लोगों का खाना पानी चल रहा है.

खगड़िया बिहार से आए फैजल महमूद बताते हैं कि उनके पिता एक मदरसे में पढ़ाते हैं और माताजी हाउस वाइफ़ है. फैसल के एक बड़े भाई हैं जो काम नहीं करते पर घर पर रहकर परिवार का ख्याल रखते हैं. उन्होंने बताया कि उनके घर की कुल महीने की तनख़्वाह 12 हज़ार रुपये है. फैसल की एक छोटी बहन भी है जिसकी पढ़ाई पर कुल 5 हज़ार रुपये ख़र्च हो जाता है.

बिहार से ही आएँ मिसबाहुल ख़ैर बताते हैं कि उनके पिता नहीं है । उनके एक बड़े भाई हैं जिन्होंने घर का ख्याल रखने के लिए अपनी पढ़ाई छोड़ दी । इसी के साथ साथ मिसबाहुल की 2 भाई है और दो बहने हैं जिनकी शादियां हो गए । इस वक़्त घर में मिसबाहुल और उनकी छोटी बहन पढ़ने वाले सदस्य हैं । उनके घर के महीने की कुल तनख़्वाह है 8000 रुपये जिसमें 4 हज़ार रुपया मिसबाहउल पर ख़र्च हो जाता है। मिस्बाहुल बताते हैं कि अगर फ़ीस में वृद्धि होती है तो उन्हें पढ़ाई छोड़नी पड़ेगी …. घर से और पैसा माँगने का सवाल तो उठता ही नहीं है ।मिस्बाहुल बताते हैं कि उनके यहाँ पैसे की इतनी तंगी है कि जब भी उन्हें कॉलेज से दो दिन छुट्टी मिलती है तो वो मेस का पैसा बचाने के लिए अपने मामा के घर ओखला विहार चले जाते हैं ।

बिहार की जानकी टूडू बताती है कि उन्हें बेहद ख़ुशी होती थी कि एक आदिवासी समाज से होने के बावजूद उन्होंने जवाहर-लाल नेहरू यूनिवर्सिटी में अपनी जगह बनायी । उन्होंने बोला कि उनके पिता कुछ नहीं करते और इसीलिए वह समाज से ये कहती है कि उनके पिता है किसान है. ज्ञानकी बताती है कि जहाँ कभी कभी उनके महीने की तनख़्वाह 5 हज़ार रुपये होती है, वही कभी कभी घर में एक भी पैसा नहीं आता है । जानकी के तीन भाई बहन और है जिसमें जानकी सबसे छोटी है । जॉनकी ने बताया कि बचपन में भी वे पढ़ाई सिर्फ़ इसलिए कर पाईं क्योंकि जिस स्कूल से padhi, वहाँ पे छठी कक्षा के बाद फ़ीस नहीं ली जाती है । जानकी ने कहा कि उन्होंने कभी भी जवाहर-लाल नेहरू यूनिवर्सिटी के सिवा किसी और यूनिवर्सिटी के बारे में सोचा ही नहीं क्योंकि ये यूनिवर्सिटी ग़रीब लोगों का ख़याल रखते हुए शिक्षा बेहद सस्ती देती है. जानकी यूनिवर्सिटी के पास ही वसंत कुंज में बच्चों को डान्स भी सिखाती है ताकि वह अपने ख़र्चे निकाल सके और उन्हें अपने परिवार से पैसे ना माँगने पढ़ें । जानकी ने कहा कि उनके घर में इतनी आर्थिक तंगी है कि अगर उनके परिवार वाले चाहें भी तो भी जानकी के लिए पैसे नहीं भिजवा सकते ।

बिहार की कुमारी चित्रा के पिताजी भी एक किसान हैं । उनके घर की महीने की कुल तनख़्वाह है 6 हज़ार रुपया । बता दें चित्रा अपने ख़र्चे निकालने के लिए यूनिवर्सिटी के पास ही वसंत कुंज में ट्यूशन देती हैं ताकि वे अपने पढ़ाई का ख़र्च तो निकाल ही सके, साथ ही साथ उनकी माताजी की बीमारी के लिए भी कुछ पैसे घर भेज सकें ।

बंगाल से आए मोहम्मद मिन्हाज आलम ने बताया कि उनके पिता नहीं है. उनके घर में इकलौते कमाने वाले सदस्य उनके बड़े भाई हैं. भाई के महीने की तनख़्वाह 7000 रुपये है. इसी 7000 रुपये में उनकी मां और उनके भाई की ज़रूरतों के साथ आलम की पढ़ाई का ख़र्चा भी उठाया जाता है. आलम ने बताया कि उनका मेस बिल दो हज़ार रुपये है जो उन्हें मिल रही स्कॉलरशिप के ज़रिए उठा पाते हैं. आलम ने बताया स्कॉलरशिप उन छात्रों को दी जाती है जिनकी घर की सालाना आमदनी एक लाख 20 हज़ार रुपये से कम है और जिनके घर में कोई भी सरकारी नौकरी करने वाला सदस्य नहीं है.

बता दें कि ये सभी छात्र लैंग्वेज और लिटरेचर स्कूल के हैं । सभी छात्रों ने एक स्वर में यही बात की कि अगर फ़ीस में वृद्धि होती है, तो आर्थिक तंगी के कारण उन्हें मजबूरन यूनिवर्सिटी छोड़कर जाना ही पड़ेगा । सभी छात्रों ने कहा कि वह पढ़ना चाहते हैं, जीवन में कुछ बनना चाहते हैं सिर्फ़ अपने लिए नहीं, अपने परिवार के लिए भी ताकि वह दो पैसे कमाकर अपने परिवार कि उन ज़रूरतों को पूरा कर सके जो अभी तक पूरी नहीं हो पाई है । छात्रों ने बताया कि जवाहर-लाल नेहरू यूनिवर्सिटी इकलौती ऐसी यूनिवर्सिटी है जहाँ आकर उन्हें लगा कि वह कम पैसे में भी शिक्षा लेकर जीवन में कुछ कर पाएंगे । साथ ही साथ सभी छात्रों ने लैंग्वेजस के लिए अपनी रुचि ज़ाहिर की और कहा कि उन्हें पढ़ना बेहद पसंद है ।

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