मोदी सरकार में थमने का नाम नहीं ले रहा बेरोजगारी, नौकरी के लिए भटक रहे लोग

भारत में बेरोजगारी बढ़ कर हुई 8.5 फीसद, 2016 से अब तक सबसे ज्यादा

भारत में कारोबार करने के हालात बेहतर होने के साथ रोजगार के मौके बढ़ाने की भी बड़ी चुनौती है। हालांकि स्टार्टअप (नए छोटे कारोबार) और स्वरोजगार तेजी से बढ़े हैं, लेकिन नौकरियों की संख्या में कमी आई है। एक नवंबर को जारी सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में बेरोजगारी बढ़ कर साढ़े आठ फीसद हो गई है, जो साल 2016 के अगस्त माह से अब तक सबसे ज्यादा है।

यकीनन सरकार के प्रयासों से देश में कारोबार करना तो आसान हुआ है, लेकिन रोजगार वृद्धि के प्रयासों के बावजूद उद्योग-कारोबार में रोजगार नहीं बढ़ पा रहे हैं। ऐसे में कारोबारी सुगमता के साथ रोजगार मौके बढ़ाने के लिए समन्वित प्रयास जरूरी हैं। पिछले महीने विश्व बैंक द्वारा प्रकाशित ‘ईज आॅफ डूइंग बिजनेस, 2020’ के सूचकांक में भारत एक सौ नब्बे देशों की सूची में तिरसठवें स्थान पर पहुंच गया। पिछले वर्ष इस सूची में भारत सतहत्तरवें पायदान पर था। कारोबारी सुगमता के इस वैश्विक पैमाने में भारत 2018 में पहले शीर्ष सौ देशों की फेहरिस्त में शामिल हुआ था। तब वह एक सौ तीस से सौ वें स्थान पर पहुंचा था। इस तरह भारत कारोबार सुमगता में तो तेजी से आगे बढ़ा है।

विश्व बैंक ने भारत को उन अर्थव्यवस्थाओं में शामिल किया है, जिन्होंने लगातार तीसरे साल अपनी रैंकिंग में उल्लेखनीय सुधार किया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारतीय अर्थव्यवस्था के आकार को देखते हुए सुधार के ये प्रयास सराहनीय हैं। भारत को देश में कारोबारी माहौल सुधारने के मामले में नौ वां सर्वश्रेष्ठ देश चुना गया है। विश्व बैंक इस रैंकिंग के लिए दस उप श्रेणियों का इस्तेमाल करता है और इनमें से सात में भारत की स्थिति में सुधार आया है। भारत ने जिन चार क्षेत्रों में बड़े सुधार किए हैं, वे हैं- कारोबार शुरू करना, दिवालिया मामलों का समाधान, सीमा पार व्यापार को बढ़ाना और निर्माण संबंधी गतिविधियों के लिए अनुमति। विश्व बैंक ने भारत के मेक इन इंडिया अभियान की भी सराहना की है। इस अभियान का उद्देश्य विदेशी निवेश को लुभाना, निजी क्षेत्र की उत्पादकता बढ़ाना और देश की प्रतिस्पर्धा क्षमता में वृद्धि करना है।

निश्चित रूप से कारोबारी सुगमता के मामले में भारत ने विश्व बैंक के प्रमुख मापदंडों पर अपने यहां सुधार किए हैं। पिछले दिनों प्रकाशित बौद्धिक संपदा, नवाचार और कारोबार सुगमता से संबंधित विभिन्न वैश्विक रिपोर्टों में भी भारत के सुधरते हुए प्रस्तुतिकरण की बात कही जा रही है। प्रमुख कारोबार सूचकांकों के तहत कारोबार एवं निवेश में सुधार का परिदृश्य भी दिखाई दे रहा है। वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में तेज वृद्धि, कंपनी कानून में सुधार और शिक्षा पर खर्च बढ़ने के कारण भारत एशिया-प्रशांत क्षेत्र में तेजी से आगे बढ़ा है। इस रैकिंग में भारत तियालिसवें स्थान पर आ गया है।

भारत में कारोबार करने के हालात बेहतर होने के साथ रोजगार के मौके बढ़ाने की भी बड़ी चुनौती है। हालांकि स्टार्टअप (नए छोटे कारोबार) और स्वरोजगार तेजी से बढ़े हैं, लेकिन नौकरियों की संख्या में कमी आई है। एक नवंबर को जारी सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में बेरोजगारी बढ़ कर साढ़े आठ फीसद हो गई है, जो साल 2016 के अगस्त माह से अब तक सबसे ज्यादा है। यह आंकड़ा सितंबर तक 7.2 फीसद था। रिपोर्ट के अनुसार ये आंकड़े भारतीय अर्थव्यस्था में सुस्ती के लक्षणों को दर्शाते हैं। इसी तरह अजीम प्रेमजी यूनिवसिर्टी में सेंटर आॅफ सस्टेनेबल इंप्लॉयमेंट की ओर से भारत में रोजगार परिदृश्य पर कराए गए अध्ययन में यह सामने आया है कि कृषि और विनिर्माण क्षेत्र में नौकरियों में कमी आई है, जबकि निर्माण और सेवा क्षेत्र इस गिरावट को कम नहीं कर सके। रिपोर्ट के मुताबिक 2011-12 के दौरान अर्थव्यवस्था में कुल रोजगार 47.42 करोड़ था, जो 2017-18 के दौरान घट कर 46.51 करोड़ रह गया।

यह बात भी महत्त्वपूर्ण है कि शहरी क्षेत्रों के साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्रों में भी उद्योग कारोबार में बढ़ती हुई जरूरत के अनुरूप रोजगार के अवसर नहीं बढ़ पाए हैं। यदि हम महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) पर नजर डालें तो पाते हैं कि अठारह से तीस वर्ष के युवाओं के द्वारा मनरेगा के तहत रोजगार पाने की कतार बढ़ती जा रही है। वर्ष 2017-18 में करीब अट्ठावन लाख लोग मनरेगा के तहत रोजगार के लिए आए। 2018-19 में इनकी संख्या बढ़ कर सत्तर लाख से ऊपर निकल गई। निश्चित रूप से ऐसे में देश को एक ओर कारोबार सुगमता में आगे बढ़ाना है, वहीं दूसरी ओर देश में घटते हुए रोजगार अवसरों को बढ़ाने के लिए कई रणनीतिक कदम उठाने होंगे।

निसंदेह अभी हमें कारोबार सुगमता, नवाचार एवं प्रतिस्पर्धा के वर्तमान स्तर एवं विभिन्न वैश्विक रैंकिंग में आगे बढ़ते कदमों से संतुष्ट नहीं हो जाना चाहिए। अभी इन विभिन्न क्षेत्रों में व्यापक सुधार की जरूरत है। खासतौर से भारतीय अर्थव्यवस्था को वैश्विक प्रतिस्पर्धा में आगे बढ़ाना जरूरी है। पिछले महीने विश्व आर्थिक मंच (डब्ल्यूईएफ) द्वारा एक सौ इकतालीस देशों के लिए जारी वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मक सूचकांक 2019 में भारत पिछले वर्ष 2018 की तुलना में दस पायदान फिसल कर अड़सठवें पायदान पर आ गया है। खासतौर से बुनियादी ढांचा, संस्थानों, स्वास्थ्य, कुशलता, वित्तीय बाजार, नवोन्मेष, श्रम बाजार, लैंगिक असफलता आदि के अपनाने जैसे अधिकांश मानकों पर पिछले साल की तुलना में भारत का प्रदर्शन कमजोर रहा है। ऐसे में जरूरी है कि निश्चित रूप से अब ऐसे सुधार लागू किए जाएं, ताकि देश कारोबार, नवाचार, प्रतिस्पर्धा, बौद्धिक संपदा जैसे मापदंडों पर तेजी से आगे बढ़ सके।

देश में रोजगार बढ़ाने के लिए चीन की तरह अपने यहां भी कौशल प्रशिक्षण की बहुत जरूरत है। उच्च शिक्षा और कौशल विकास पर उपयुक्त ध्यान देकर इस चुनौती से निपटा जा सकता है। विश्व बैंक की ‘रोजगार रहित विकास’ नामक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में तेजी से रोजगार के दरवाजे पर दस्तक देने वाले युवाओं की संख्या को देखते हुए हर साल इक्यासी लाख नई नौकरियां और नए रोजगार अवसर पैदा करने की जरूरत है। इतने रोजगार के अवसर और नौकरियां जुटाने के लिए शिक्षण-प्रशिक्षण की गुणवत्ता में सुधार तथा सार्वजनिक और निजी निवेश में भारी वृद्धि करनी होगी। विनिर्माण क्षेत्र को गतिशील बनाना होगा। निर्यात बढ़ाना होंगे। श्रम कौशल बढ़ाना होगा।

विश्व बैंक का कहना है कि दुनिया के अधिकांश विकसित और विकासशील देशों में जनसंख्या वृद्धि दर तेजी से घटने के कारण कामकाजी आबादी कम हो गई है। चूंकि भारत की पैंसठ प्रतिशत आबादी पैंतीस साल से कम आयु की है, इसलिए भारत की युवा आबादी उच्च गुणवत्ता और कौशल  प्रशिक्षित होकर दुनिया के लिए उपयोगी और भारत के लिए आर्थिक कमाई का प्रभावी साधन सिद्ध हो सकती है।

निसंदेह हमें श्रम आधारित क्षेत्रों की वृद्धि पर ध्यान देना होगा, ताकि अधिक से अधिक नौकरियां पैदा की जा सकें। इसके लिए कपड़ा, जूता-चप्पल, फर्नीचर और रसोई से संबद्ध सामान और ऐसे ही अन्य औद्योगिक व कारोबार क्षेत्रों के विकास पर अधिक ध्यान देने की जरूरत है जिसमें अधिक श्रमबल जरूरी होता है। चूंकि इन श्रम आधारित रोजगार के क्षेत्रों में चीन की कंपनियां अधिक श्रम लागत के कारण बाहर होती जा रही हैं, अतएव भारत को वैश्विक स्तर की ऐसी प्रतिस्पर्धी कंपनियाँ भी सृजित करना होंगी, जो निर्यात बाजार में दबदबा बना सकें।

इस बात पर भी ध्यान दिया जाना होगा कि विश्व बैंक फिलहाल कारोबारी रैंकिंग में केवल दिल्ली और मुंबई को शामिल करता है, लेकिन छोटे शहरों और छोटे उद्योगों के लिए कारोबार सुमगता के बड़े प्रयास जरूरी हैं। जब छोटे शहरों और छोटे उद्योगों में कारोबार सुगमता बढ़ेगी तभी कारोबार के तहत रोजगार के अवसरों में तेज वृद्धि दिखाई दे सकेगी। साथ ही उद्योग-कारोबार में रोजगार बढ़ने पर मनरेगा की ओर बढ़ रही युवाओं की कतार में कमी आ पाएगी। ऐसा होने पर देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में भी तेजी से वृद्धि होगी।

जयंतीलाल भंडारी

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