जज बिटिया की कहानी… कोर्ट में करते हैं चपरासी का काम, बेटी ने जजबंकर लहराया परचम

मेरे पति एक कोर्ट में चपरासी का काम किया करते थे. हम लोग काफी गरीब परिवार से आते हैं. बेटा और बेटी की पढ़ाई पर खर्च कर पा रहे थे. बिटिया बचपन से ही पढ़ने में काफी प्रतिभावान. वह हमेशा स्कूल और कॉलेज में अव्वल आती थी. बचपन से ही उसने तय कर रखा था उसे एक न एक दिन बड़ा होकर जज बनना है. आज मेरी बिटिया जज बन चुकी है. समाज के लोग उसे जज बिटिया के नाम से जानते हैं. पीछे पलट कर देखती हूं तो संघर्ष वाला जीवन आसान सा जान पड़ता है. बेटी की सफलता दे इतनी खुश हूं कि ना मुझे भूख लगती है और ना प्यास लगता है.

बिहार में मूल रूप से धनरूआ (पटना) के  गांव मानिक बिगहा की अर्चना कुमारी इन दिनो लोगों में ‘जज बिटिया’ के नाम से मशहूर हो चुकी हैं। चार भाई-बहनों में सबसे बड़ी अर्चना की बेमिसाल कामयाबी का सफर बहुत मुश्किलों भरा रहा है। उनकी जिंदगी ऐसे घुमावदार रास्तों से गुज़री है, जिस पर चल कर इतनी बड़ी सफलता विरलों की ही मिल पाती है। गरीब घर में पैदा हुईं वह बचपन में हर वक़्त अस्थमा से पीड़ित रहा करती थीं।

पटना के राजकीय कन्या उच्च विद्यालय, शास्त्रीनगर से बारहवीं पास अर्चना ने पटना यूनिवर्सिटी से साइकोलॉजी ऑनर्स किया है लेकिन इसी बीच ग्रैजुएशन की पढ़ाई करते समय वर्ष 2005 में सोनपुर रेलवे कोर्ट में चपरासी रहे उनके पिता गौरीनंदन प्रसाद की असामयिक मृत्यु हो गई। अब पिता की चारों संतानों में सबसे बड़ी होने के नाते पूरे परिवार का बोझ उनके कंधों पर आ गया। चूंकि उन्होंने कंप्यूटर सीख रखा था तो अपने ही स्कूल में बच्चों को कंप्यूटर पढ़ाने लगीं ताकि घर ख़र्च उठा सकें। उनकी तो इक्कीस की उम्र में शादी हो चुकी थी, बाकी तीनों बहनों के अनब्याहे होने का उन पर एक बड़ा दबाव था। 

34 वर्षीय अर्चना कुमारी बताती हैं कि हम लोगों का परिवार एक कमरे के सर्वेंट क्वॉर्टर में रहता था और हमारे क्वॉर्टर के आगे जज साहब की कोठी थी। पापा दिन भर जज साहब के पास खड़े रहते थे। बस वही कोठी, जज को मिलने वाला सम्मान और अपने सर्वेंट क्वॉर्टर की छोटी सी जगह उनके लिए प्रेरणा स्रोत बनी। कठिन हालात के बीच ही अर्चना कुमारी पिछले साल वर्ष 2018 में 30वीं बिहार न्यायिक सेवक परीक्षा में पास हो गईं।

नवंबर 2019 के आख़िरी सप्ताह में घोषित नतीजों में उनको सामान्य श्रेणी में 227वां और ओबीसी कैटेगरी में 10वीं रैंक मिली। इसके बाद तो अर्चना की ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा। बेहद साधारण परिवार से निकलकर इतनी बड़ी उपलब्धि ने खुद उनको आश्चर्य से भर दिया। वह तो छह साल की उम्र से ही जज बनने का सपना देखती आ रही थीं। अर्चना कहती हैं कि आज उनकी सफलता में पूरे परिवार का हाथ रहा है।

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