आज भी सम्मान के लिए दशरथ मांझी का परिवार कर रहा इंतजार, भारत रत्न क्या पद्ममश्री भी नहीं मिला

दशरथ मांझी जिसने अपनी सनक और हौसलों के दम पर पहाड़ को अपने आगे घुटने टेकने पर मजबूर किया। जब भी असंभव काम को संभव बनाने की बात की जाती है तो माउंटेन मैन दशरथ मांझी का उदारण देकर कहा जाता है कि पहाड़ तोड़ने से ज्यादा कठिन है क्या। उनकी मेहनत, उनके जुनून और उनकी लगन के बारे में आज हम सब जानते हैं। आज वो न सिर्फ बिहार के लिए बल्कि देश दुनिया के लिए प्रेरणा पुरुष हैं। उनके जीवन संघर्ष पर मांझी द माउंटेन मैन के नाम से फिल्म भी बन चुकी है जिसमें नवाजुद्दिन सिद्दीकी ने शानदार अभिनय किया और फिल्म बेहद पॉपुलर रही।

लेकिन सवाल ये है कि इतने लोगों को अपनी हिम्मत से हौसला देने वाले पर्वत पुरुष को उचित सम्मान क्यों नहीं दिया गया। अब तक उन्हें भारत रत्न तो क्या पद्म श्री भी नहीं दिया गया है। सम्मान के नाम पर बिहार सरकार ने उनकी सामाधी स्थल के साथ-साथ उनके नाम एक अस्पताल का नाम रखा है। इसके साथ ही एक नगर का नाम भी उनके नाम पर रखा गया है।

दशरथ मांझी ने 360 फुट लंबा, 30 फुट चौड़ा और 25 फुट ऊंचे पहाड़ को काटकर रास्ता बनाया था। ये काम इतना कठिन है कि आज इतने विशालकाय पहाड़ को तोड़ने के लिए कई आधुनिक क्रेनों के साथ कई सौ मजदूर भी लगाए जाएं तो ये काम कई महीनों में खत्म होगा। दशरथ मांझीं ने इस विशालकाय पहाड़ को तोड़ने के लिए दिन रात 22 साल तक हाथ में छेनी हथौड़ा लेकर इस पहाड़ को तोड़ा था। मांझी ने पहाड़ को हराकर रास्ता निकाला तो वो गांव न सिर्फ रहने योग्य हुआ बल्की एक गांव से शहर तक जाने की दूरी 70 किमी. तक घट गई है।

ऐसे में जब उन्हें उचित सम्मान नहीं मिला तो समय समय पर न सिर्फ उनके समुदाय में बल्कि पूरे बिहार से उन्हें उचित सम्मान देने की बात उठती रही है। 2006 में जब बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार थे तो उन्होंने मांझी को पद्म श्री पुरस्कार से नवाजे जाने के लिए नामित किया था लेकिन उसके बाद से आज इस विषय पर बात नहीं हुई। बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने दशरथ मांझी के दलित होने के कारण उन्हें उचित सम्मान न दिए जाने की भी बात कही थी।

दशरथ मांझी का गांव बिहार के गया जिले में है जो कि गेल्होर की छोटी-छोटी पहाड़ियों से घिरा है। वे जिस गांव में रहते थे वहां से पास के कस्बे जाने के लिए एक पूरा पहाड़ (गहलोर पर्वत) पार करना पड़ता था। इस कारण इस गांव में कम ही लोग बसते थे जिस कारण ये बेहद ही अविकसित क्षेत्रों में आता था। वो एक दिहा़ड़ी मजदूर थे। वो अपनी पत्नी से बेहद प्यार करते थे।

उन्हें पहाड़ काटने का जुनून तब सवार हुआ जब वो पहाड़ के दूसरे छोर पर मजदूरी का काम कर रहे थे। उनको खबर मिली कि उनही पत्नि फाल्गुनी देवी पानी लाते समय पहाड़ से गिर गईं। इलाज के लिए वो अस्तपताल पहुंचते इससे पहले ही उनकी पत्नी ने दम तोड़ दिया। क्योंकि अस्पताल शहर में था और शहर में जाने के लिए गांव वालों को पहाड़ पार करना होता था। यहां से उन्होंने संकल्प लिया था कि वो पहाड़ को जब तक तोड़ेंगे नहीं तब तक छोड़ेंगे नहीं।

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