कोरोना के नाम पर दवाई की कालाबाजारी शुरू, भारत में 45000 में बिक रहा 3500 वाला इंजेक्शन

कोरोना: रेमडेसिविर इंजेक्शन 900% तक बिक रहा महंगा : कोरोना के इलाज में धड़ल्ले से रेमडेसिविर इंजेक्शन का उपयोग किया जाने लगा है। इसकी कालाबाजारी भी शुरू हो गई है। ऑल महाराष्ट्र ह्यूमन राइट्स वेलफेयर एसोसिएशन के सदस्य जयेश मिरानी ने मुंबई हाईकोर्ट में पीआईएल दाखिल की है। उनका कहना है कि 4000-4500 रुपए में मिलने वाला यह इंजेक्शन 35 हजार से लेकर 45 हजार रुपए तक में बेचा जा रहा है। यानी करीब 900 फीसदी महंगा।

कम्युनिटी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म लोकल सर्कल ने 6 जुलाई को सबसे पहले डीसीजीआई को लिखित में रेमडेसिविर दवा की कालाबाजारी की शिकायत की थी। संस्था के जनरल मैनेजर अक्षय गुप्ता कहते हैं, ‘हमारे सर्वे के दौरान 5171 पुरुष और 3169 महिलाओं ने रेमडेसिविर इंजेक्शन 5400 रु. के एमआरपी से 300-500 % अधिक दर पर बिकने का दावा किया है।’ नेशनल फार्मास्यूिटकल प्राइसिंग अथॉरिटी की चेयरपर्सन शुभ्रा सिंह का कहना है कि अभी इसे सरकार ने केवल आपात स्थिति और परीक्षण के तौर पर शामिल किया है। ऐसी स्थिति में इसकी कीमत तय करने का िनर्णय नहीं लिया जा सकता है। इंजेक्शन एमआरपी पर उपलब्ध हो और इसकी िकसी तरह से होड़ न हो, इसे सुनिश्चित किया जा रहा है। अब तक तीन लाख से ज्यादा इंजेक्शन की सप्लाई की जा चुकी है। जबकि इतने मरीजों को इसकी जरूरत नहीं है। इसका मतलब है कि इसकी शॉर्टेज जानबूझकर की जा रही है।

इंजेक्शन की कमी क्यों? : देश में सिर्फ दो कंपनियां बना रहीं : देश में िफलहाल दो कंपनी हिटेरो और सिपला ही इस इंजेक्शन का निर्माण करती हैं। दोनों कंपनी के करीब तीन लाख इंजेक्शन की डोज कोविड अस्पतालों में सप्लाई की जा चुकी है। डिस्ट्रीब्यूशन की सप्लाई चेन में लीकेज होने के कारण डीलर इसे महंगे दामों पर बेच रहे हैं। कई जगह अस्पतालों में इसकी सीधी सप्लाई न होकर डीलर मरीजों को बेच रहे हैं। इस कारण घबराए हुए मरीज इसे किसी भी कीमत पर खरीदने को तैयार हो रहे हैं।

क्या भविष्य में कमी रहेगी?: अन्य कंपनी बाजार में आएगी, उत्पादन बढे़गा : अगले सप्ताह तक माइलन कंपनी भी यह इंजेक्शन बाजार में उतार देगी। इस कंपनी ने कीमत 4800 रुपए रखी है। अगले सप्ताह ही कंपनी करीब 30 हजार डोज बाजार में लाएगी। महीने के अंत तक इस दवा की भारत में कोई कमी नहीं होगी। सिपला का कहना है कि वो एक महीने में 80 हजार वायल सप्लाई करेगी। हेट्रो हेल्थकेयर ने अब तक 68 हजार से अधिक वायल्स का उत्पादन किया है। उसका जुलाई आखिर तक 4 लाख वायल्स का उत्पादन करने का लक्ष्य है।

कितना जरूरी?: ऑक्सीजन सपोर्ट में रखे गए मरीजों के लिए : यदि मरीज की हालत खराब हो और मरीज या परिजन लिखित सहमति दें तो आपात स्थिति में यह इंजेक्शन देने की इजाजत है। फोर्टिस अस्पताल (मुंबई) के क्रिटिकल केयर विभाग के डायरेक्टर और महाराष्ट्र में बने कोविड-19 टास्क फोर्स के सदस्य डॉ. राहुल पंडित बताते हैं कि ऑक्सीजन सपोर्ट पर रखे गए कुल मरीजों में से करीब 30% को रेमडेसिविर देने की जरूरत होती है। जबकि 10 फीसदी मरीजों को ही ऑक्सीजन सपोर्ट की जरूरत पड़ती है।

केस-1 : मुंबई के मशहूर पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ. जलील पारकर जब जून महीने में कोरोना पॉजिटिव हुए, तो उन्हें किसी मददगार ने बांग्लादेश स्थित एक फार्मा कंपनी से रेमडेसिविर इंजेक्शन मंगाकर दिया। उन्हें और अन्य जरूरतमंद 25 कोरोना मरीजों को एक व्यक्ति ने 5 लाख रुपए खर्च कर यह दवा बांग्लादेश से मंगाकर उपलब्ध कराई।

केस-2 : डॉ. शैलेश ठक्कर मुंबई में कोरोना संक्रमित मरीजों का इलाज करते वक्त संक्रमित हो गए। इलाज के दौरान उन्हें रेमडेसिविर के 5 इंजेक्शन की जरूरत पड़ी। किसी तरह 3 इंजेक्शन मिले, जबकि बचे दो इंजेक्शन के लिए आठ दिन परेशान होना पड़ा। इस दौरान ग्रे मार्केट में यही 4,500 रुपए एमआरपी वाला इंजेक्शन 18 हजार से 20 हजार रुपए में उपलब्ध हो रहा था।

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