नीतीश के सुशासन में भी पुल- पुलिया के लिए तरस रहे हैं बिहार के लोग, आने जाने में होती है परेशानी

पटना 15 अप्रैल 2023 : ऊपर जो आप तस्वीर देख रहे हैं वह बिहार के किशनगंज जिला का बताया जाता है. शहर से 18-20 किलोमीटर दूर महानंदा नदी है. स्थानीय लोगों का कहना है कि या तस्वीर खरखारी घाट का है. लोगों का कहना है कि बाढ़ के समय में नाव परिचालन होने से थोड़ी सी सहूलियत होती है. लेकिन पानी कम होने के बाद लोगों को इस पार से उस पार जाने में परेशानी होती है. बावजूद इसके आजतक बिहार सरकार द्वारा इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया गया. अगर एक पुल का निर्माण हो जाता है तो हम लोगों को सहूलियत होगी.

बिहार के वरिष्ठ पत्रकार पुष्यमित्र कहते हैं कि बिहार के सीमांचल इलाके की दुनिया अलग ही है। पूर्णिया के कसबा से लेकर किशनगंज के ठाकुरगंज और अररिया के सिकटी से लेकर कटिहार के अमदाबाद के बीच का जो इलाका है, उसके बीच महानंदा, कनकई, परमान, बकरा, डोक, मेची जैसी एक दर्जन से अधिक छोटी-बड़ी नदियां बहती हैं। और उन नदियों के बीच बसे हैं सैकड़ों गांव।

ज्यादातर गांवों के लोग एक, दो या तीन नदियां पार कर स्कूल, कॉलेज, दफ्तर और अस्पताल आते-जाते हैं। बारिश के मौसम में नाव और पानी उतरने पर बांस की चचरी से बने पुल ही उनका सहारा हैं। वहां आज भी अंग्रेजों के जमाने की बनी घाट व्यवस्था कायम है। दर्जनों जगह पर लोग पुल मांग रहे, मगर उस इलाके में पुल स्वीकृत होने, बनने की रफ्तार बहुत धीमी है।

इसी लगभग अनदेखी-अनजानी दुनिया की कहानी इस बार इंडिया टुडे के अंक में आई है।

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