कोलकाता : मां काली की कहानी, यहां देवी सती के पैर की उंगलियां गिरी थीं, उग्र रूप में दर्शन देती हैं मां

कोलकाता का कालीघाट मंदिर। यहां देवी सती की दस महाविद्याओं में पहली महाविद्या काली की पूजा की जाती है। कालीधाम में देवी काली प्रचंड यानी उग्र रूप में दर्शन देती हैं। देवी की प्रतिमा काले पत्थर से बनी हुई है। इस मूर्ति में देवी की तीन बड़ी-बड़ी आंखें दिखाई दे रही हैं, सुनहरी लंबी जीभ बाहर निकली हुई है। मां काली की चारों भुजाएं सोने की हैं। इस शक्तिपीठ में देवी सती के पैर की उंगलियां गिरी थीं।

नवरात्रि होने से मंदिर में भक्तों की भीड़ है। फिलहाल मंदिर का जीर्णोद्धार भी हो रहा है। मंदिर के अंदर की दुकानों को बाहर स्थानांतरित किया जा रहा है, नई दुकानें बनाई जा रही हैं। कालीघाट स्काईवॉक का निर्माण कार्य भी चल रहा है और एक साल में इसके पूरा होने की उम्मीद है। इन निर्माण कार्यों की वजह से भक्तों को मंदिर में प्रवेश करने में दिक्कतें भी आ रही हैं।

गर्भगृह में पुजारियों के मंत्रोच्चार, शंख, घंटियों की गूंजती आवाजें और धूप की सुगंध फैली हुई है। नवरात्रि में मां काली को समर्पित इस मंदिर में सिर्फ देवी के दुर्गा स्वरूप की पूजा होती है। नवरात्रि की षष्ठी तिथि तक मां को चावल, केला, मिठाई और जल का नेवैद्य चढ़ता है।

200 साल पुराना है वर्तमान मंदिर

मंदिर की मौजूदा संरचना 200 वर्ष पुरानी है। इससे पहले भी मंदिर का जिक्र ग्रंथों में मिलता है। 15वीं और 17वीं सदी के गुप्त वंश के सिक्के मंदिर की प्राचीनता को बताते हैं।

दिन में चार बार होती है आरती

मंदिर में चार प्रहर आरती होती है। पूजा की शुरुआत सुबह मंगला आरती से होती है।फिर दोपहर में अन्न भोग चढ़ाया जाता है। इसमें पुलाव, चावल, सब्जी, मच्छी, मांस, चटनी, खीर का भोग लगता है।शाम को पूरी, हलवा, मिठाई, दही का शीतल भोग चढ़ाया जाता है।दिन के अंत में शयन आरती के वक्त मां को राज भोग परोसा जाता है।

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