वाजपेयीजी के सपने को PM मोदी ने किया साकार, 85 साल बाद बिहार के कोसी रेल महासेतु पर दौड़ी ट्रैन

करीब 140 साल पहले विकासपुरुष, युगदृष्टा, विजनरी लीडर महाराजा लक्ष्मीश्वर सिंह ने तिरहुत की आधारभूत संरचना निर्माण में क्रांति लाकर इस रेलखंड की स्थापना की थी। पिछले 85 साल से यह रेलखंड क्षतिग्रस्त था। अटल बिहारी वाजपेयी और तत्कालीन रेलमंत्री नीतीश कुमार के अथक प्रयास से यह रेलखंड एक बार फिर बहाल हो चुका है। 140 साल पहले जब इस रेलखंड से पहली ट्रेन गुजरी तो यह इलाका देश के उन गिनेचुने इलाकों में से था जहां ट्रेन की सुविधा थी। यही कारण रहा कि इन पटरियों के बगल में कई कारखाने लगे और किसानों का अनाज दूर मंडियों तक आसानी से पहुंच पाया। आज न तो वो कारखाने हैं और न ही घोघडिया की वो अनाज मंडी…महाराजा लक्ष्मीश्वर सिंह की आत्मा यही कह रही होगी, जिस विकास को 140 साल पहले मैं यहां तक पहुंचाया था, मिथिला के कमबख्त नेताओं ने उसे 85 साल पीछे धकेल दिया.

सरायगढ़-निर्मली रेल ट्रैक के कोसी रेल महासेतु पर मंगलवार को पहली बार 53 कंटेनर वाली मालगाड़ी चली। मार्च से इस रेल रूट पर सरायगढ़ और आसनपुर कुपहा हाल्ट के बीच यात्री ट्रेन चलने की संभावना है। इससे 85 साल बाद सरायगढ़ और निर्मली अनुमंडल के बीच रेल संपर्क स्थापित हो जाएगा। 85 साल बाद इस रेल रूट पर मालगाड़ी की सीटी बजते ही ट्रेन को देखने के लिए लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी।

दरअसल पूर्व मध्य रेलवे के सहायक अभियंता अभिराम सिंह की देखरेख में पहली बार सोमवार की शाम 5.59 बजे 53 कंटेनर वाली मालगाड़ी को कोसी रेलमहासेतु पर पास कराया गया, लेकिन अंधेरा होने के कारण ब्लास्ट से संबंधित काम नहीं हो सका और मालगाड़ी पुन: सरायगढ़ आ गई। मंगलवार की सुबह 11.15 बजे दूसरी बार सरायगढ़ से 53 कंटेनर वाली मालगाड़ी कोसी रेलमहासेतु पर पहुंची। इस दौरान जगह-जगह ब्लास्ट कराया गया।

लंबी दूरी की ट्रेन के लिए अभी करना होगा लंबा इंतजार : सुपौल-सरायगढ़ के बीच करीब 25 किमी लंबे रेल ट्रैक पर आमान परिवर्तन का कार्य पूरा कर लिया गया है। सोमवार को इस ट्रैक पर सुबह 11.30 बजे से शाम 4 बजे तक स्पीड ट्रायल कराया जाएगा। इसके बाद अगले कुछ दिनों में इसका सीआरएस निरीक्षण होगा। निरीक्षण में सब कुछ ठीक रहा तो चार से भी अधिक समय से रेल सेवा से कट चुका सरायगढ़ स्टेशन एक बार फिर रेल नेटवर्क से जुड़ जाएगा। हालांकि सुपौल वासियों को लंबी दूरी की ट्रेन के लिए अभी लंबा इंतजार करना होगा। दरअसल इस ट्रैक पर सिग्नल सहित अन्य कई जरूरी सुविधाओं का विकास नहीं हो सका है। इसके कारण सहरसा से आगे लंबी दूरी की ट्रेनों को विस्तार नहीं दिया जा रहा है। पूर्व मध्य रेलवे के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी राजेश कुमार ने बताया कि ट्रेनों के ऑरिजिन स्टेशन पर कई प्रकार की सुविधाओं का होना जरूरी है। इस लिहाज से दिल्ली अथवा अन्य बड़े शहरों के लिए सहरसा-फारबिसगंज ट्रैक पर कोई भी स्टेशन तैयार नहीं है। सीपीआरओ ने बताया कि सरायगढ़-सकरी-झंझारपुर रेल लाइन पर भी तेजी से काम चल रहा है। रेलवे की योजना इस ट्रैक को जल्द से जल्द दरभंगा से जोड़ने की है। ताकी सहरसा से खुलने वाली ट्रेन दरभंगा के रास्ते दिल्ली तक चलाई जा सके।

करीब 2 किमी है रेल महासेतु : सकरी-निर्मली, निर्मली-सरायगढ़ व सरायगढ़-सहरसा आमान परिवर्तन परियोजना के तहत निर्मली-सरायगढ़ के बीच कुपहा हाल्ट तक कोसी रेल महासेतु का रेलवे ट्रैक से अब सरायगढ़ होते हुए सहरसा से जुड़ाव हो गया है। सहरसा-सुपौल रेलखंड पर दो जोड़ी पैसेंजर ट्रेन परिचालन जारी है। इधर, कोसी में बने रेल महासेतु की कुल लंबाई 1.88 किलोमीटर है और इसमें 45.7 मीटर लंबाई के ओपनवेब गार्डर वाले 39 स्पैन हैं।

778 करोड़ रुपए थी लागत : मिथिला क्षेत्र को वाया कोसी होते हुए सीमांचल तक रेल सेवा बहाल करने के लिए आमान परिवर्तन प्रस्तावित है। रेल बजट में सकरी-झंझारपुर-निर्मली-सरायगढ़ होते हुए सहरसा-फारबिसगंज तक करीब 215 किलोमीटर तथा मानसी-सहरसा, सहरसा-दौराम, मधेपुरा-पूर्णिया तक 143 किलोमीटर रेल लाइन के आमान परिवर्तन की योजना प्रस्तावित है। इस पर प्रारंभिक स्वीकृत लागत करीब 778 करोड़ रुपए थी।

1934 के भूकंप में टूट गया रेल पुल : 1934 में आए भूकंप की वजह से निर्मली-सरायगढ़ रेलखंड पर कोसी नदी में बना रेल पुल ध्वस्त हो गया था। प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने निर्मली कॉलेज निर्मली मैदान परिसर से 6 जून 2003 को नई रेल परियोजना के तहत कोसी रेलमहासेतु निर्माण के लिए कार्य का शिलान्यास किया था। सरायगढ़-निर्मली-सकरी रेलखंड पर परिचालन शुरू होने के बाद सहरसा-सुपौल रेलखंड का दरभंगा से भी जुड़ाव हो जाएगा।

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