कुसहा त्रासदी : 500 से अधिक मौत, लाखों बेघर, 13 साल पहले आज ही के दिन टूटा था कोसी का बांध


कुसहा त्रासदी: 500 से अधिक मौत और लाखों हुए बेघर, 12 साल पहले आज ही के दिन टूटा था कोसी का बांध : बिहार के कुसहा त्रासदी (Kusha Tragedy) को हुए आज 12 साल हो गए हैं लेकिन साल 2008 के 18 अगस्त को याद कर आज भी इलाके के लोगों की रुह कांप जाती है. तबाही का मंजर ऐसा था कि देखते ही देखते कोसी ने सैकड़ों गांवों को लांघते हुए एक बड़े इलाके में तबाही मचा दी थी.

सैकड़ों लोगों की जान चली गई थी तो लाखों लोग बेघर हो गए थे. 18 अगस्त, 2008 को नेपाल के कुसहा गांव के समीप लगभग दो किलोमीटर की लंबाई में तटबंध (Koshi Dam) के बह जाने से नेपाल (Nepal) के 34 गांव समेत पूर्वोत्तर बिहार के 441 गांवों की बड़ी आबादी बाढ़ की चपेट में आई थी. सरकारी आंकड़ों के अनुसार इस बाढ़ से सहरसा जिले में 41, मधेपुरा में 272 और सुपौल जिले में 213 लोगों की मौत हुई थी, लेकिन अब तक 526 मृतक के परिजनों को एक साथ ढाई लाख रुपए की राशि नहीं मिली.

बांध की मरम्मत में लापरवाही से हुआ था हादसा

पन्नों को पलटते हैं तो तटबंध के 12.10 स्पर व 12.90 स्पर पर कोसी ने 2007 में ही खतरे की घंटी बजा दी थी. 27 अक्टूबर 2007 को जब कोसी उच्चस्तरीय समिति ने तटबंध का निरीक्षण किया तो इन बिंदुओं पर जीर्णोद्धार का कार्य, पांच नग स्टड निर्माण आदि की अनुशंसा की गई. कार्य 15 जून से पूर्व ही करा लिए जाने का निर्देश दिया गया था. सरकार द्वारा गंगा बाढ़ नियंत्रण को भेजी गई सूचना के अनुसार 15 जून 2008 को कार्य करा भी लिया गया लेकिन कार्य में ऐसी लापरवाही हुई कि 12.90 किमी स्पर पर पांच अगस्त से और 12.10 किमी स्पर पर 7 अगस्त से कटाव शुरू हो गया.

15 अगस्त को ही विकराल हो गई थी कोसी

इस बीच कोसी उग्र होती गई और सरकारी महकमा बांध को सुरक्षित बताता रहा. 15 अगस्त तक कोसी विकराल हो गई. अपने बचाव में विभाग ने नेपाल के एक थाने में काम में व्यवधान किए जाने का मुकदमा दर्ज करा दिया. कोसी पर बहस-मुबाहिसे, विधानसभा में आंकड़ों की उठापटक और राजनीतिक बयानबाजियां हमेशा होती रहीं परंतु सर्वांगीण रूप से तटबंधों की ऐसी सुरक्षा जिससे भविष्य में कोई बड़ी बर्बादी नहीं हो ऐसा कोई कारगर उपाय कभी किया ही नहीं गया.

18 अगस्त को आया था जल प्रलय

18 अगस्त को कोसी ने बांध को लांघ दिया और उससे हुई बर्बादी पूरा देश जानता है. तब सरकार ने वादा किया था कि पहले से बेहतर कोसी बनाएंगे लेकिन सपने आज भी अधूरे हैं. सुपौल जिले के पांच प्रखंडों के 173 गांव जलमग्न हो गए, इसमें 6,96,816 लोग और 1,32,500 पशु प्रभावित हुए. 0.43458 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में लगी फसल बर्बाद हो गई. 0.07854 गैर कृषि योग्य भूमि प्रभावित हुई. जहां गाड़ियां सरपट दौड़ती थी वहां नावें चलने लगीं. बाढ़ के बाद भी स्थिति इतनी विकराल थी कि लोग अपने ही घर का पता पूछते थे.


बाढ़ ने जितना विकराल रूप दिखाया सरकार ने भी अपनी तरफ से इससे राहत के तमाम उपाय किए. फसल क्षति, गृह क्षति, खेतों से बालू निकासी आदि कार्यक्रम चले, फिर भी सैकड़ों लोग ऐसे अनुदान से वंचित ही रह गए. कोसी क्षेत्र के पुनर्निर्माण का सरकार ने संकल्प तो लिया, लेकिन इस पर कुछ खास हुआ हो, आज भी इसका इंतजार है.

टाटा और प्रकाश झा ने की थी मदद

बाढ़ से बेघर हुए लोगों की मदद के लिए कई लोग और संगठन आगे आए, जिनमें टाटा स्टील एवं फिल्मकार प्रकाश झा का नाम प्रमुख है. फिल्मकार ने 104 महादलितों के लिए आवास बनवाए. स्कूल, अस्पताल व सामुदायिक भवन की भी सुविधाएं दिलवाईं. टाटा स्टील की ओर से भी महादलितों को 105 आवास उपलब्ध करवाए गए. राज्य सरकार ने भी पहले से बेहतर कोसी बनाने का संकल्प लिया. पुनर्वास की योजना बनाई गई. 19 मई 2010 को मुख्यमंत्री ने कोसी पुनर्वास एवं पुनर्निर्माण योजना का उद्घाटन किया. मगर निर्धारित लक्ष्य और उपलब्धि के बीच आज भी बड़ा फासला है.

सरकार के वादों पर भरोसा नहीं

कोसी त्रासदी के बाद बिहार सरकार ने बीरपुर में कोसी की धारा और दिशा की जांच के लिए फिजिकल मॉडलिंग सेंटर बनवाया. कई अन्य योजनाओं की भी शुरुआत की गई, लेकिन सार्थक परिणाम की उम्मीद आज भी कोसी क्षेत्र के लोग लगाए बैठे हैं. स्थानीय लोग कहते भी हैं कि कई तरह के विकास के सरकारी दावे झूठे साबित हुए.

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