LAC पर स्थिति खराब, विपक्षी नेताओं से बंद कमरें में बात करेगी मोदी सरकार

राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) सरकार ने कुछ विपक्षी नेताओं को संकेत दिए हैं कि भारत-चीन सीमा स्थिति पर एक बंद दरवाजे की बैठक पर विचार किया जा सकता है। आपको बता दें कि संसद का मानसून सत्र में संवेदनशील मुद्दे पर पूर्ण सार्वजनिक चर्चा की मांग करने से बचने की बात कही है।

हालांकि अभी तक इस तरह की बैठक में पर अंतिम निर्णय लिया जाना बाकी है। इस बैठक में सरकार वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर सैन्य गतिरोध को लेकर विपक्षी दलों को जानकारी दे सकती है। वार्ता में शामिल अधिकारियों ने कहा। हालांकि सरकार ने अभी तक सभी विपक्षी दलों से संपर्क नहीं किया है। एक अधिकारी ने यह जानकारी दी है।

प्रस्ताव के अनुसार, सरकार संसद में इस मुद्दे पर चर्चा नहीं करना चाहती है। रक्षा मंत्रालय स्थिति को सामान्य करने के प्रयासों पर बंद कमरे में अलग-अलग दलों के नेताओं को संक्षिप्त विवरण दे सकता है। इस दौरान उनके सवालों का जवाब देने की भी कोशिश की जाएगी।

एक वरिष्ठ गैर एनडीए नेता ने नाम नहीं लिखने की शर्त पर बताया, “एक वरिष्ठ मंत्री ने मुझे यह कहने के लिए बुलाया था कि यदि वे सहमत होते हैं तो सरकार अलग-अलग दलों के नेताओं के लिए एक संक्षिप्त बैठक के बारे में सोच रही है। प्रस्ताव पर अभी निर्णय नहीं हुआ है। इसपर चर्चा की आवश्यक्ता है।”

लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने इस तरह की बैठक की उपयोगिता पर सवाल उठाया। उन्होंने कहा: “यदि समाचार पत्र चर्चा कर सकते हैं, सार्वजनिक चर्चा कर सकते हैं और बाकी सभी लोग चर्चा कर सकते हैं, तो भारतीय संसद ऐसी स्थिति पर चर्चा क्यों नहीं कर सकती है?”

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भारत-चीन सीमा स्थिति पर मंगलवार को लोकसभा में एक बयान दिया, लेकिन विपक्षी नेताओं को किसी भी स्पष्टीकरण की अनुमति नहीं दी गई। चौधरी और शशि थरूर सहित नाराज कांग्रेस नेताओं ने संसद परिसर में महात्मा गांधी की मूर्ति के सामने धरना दिया।

चौधरी ने सरकार को याद दिलाया कि 1962 में, जब विपक्ष के नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने भारत-चीन युद्ध पर बहस की मांग की थी, प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने दो दिनों के लिए एक बहस आयोजित करने पर सहमति व्यक्त की थी। संसदीय मामलों के मंत्री प्रल्हाद जोशी ने जल्दी से कहा कि 1962 की बहस युद्ध खत्म होने के बाद हुई थी, न कि तब जब दोनों पक्ष इसका समाधान खोजने की कोशिश कर रहे थे।

बीजू जनता दल के पिनाकी मिश्रा और तृणमूल कांग्रेस के कल्याण बनर्जी सहित अन्य नेताओं ने चौधरी का समर्थन नहीं किया। पिनाकी मिश्रा सरकार की इस बात से सहमत थे कि विभाजनकारी बहस को टाला जाना चाहिए।

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