
लाखापर (गुजरात), जून 2025: केरल यूनिवर्सिटी के पुरातत्व विभाग की टीम ने गुजरात के कच्छ जिले के लाखापर गांव के पास एक बहुत ही पुराना और ऐतिहासिक गांव खोज निकाला है। ये कोई आम गांव नहीं, बल्कि लगभग 5,300 साल पुराना हरप्पा सभ्यता से जुड़ा बस्ती स्थल है। ये खोज भारतीय इतिहास में एक नई रोशनी लेकर आई है।
खुदाई कहां और कैसे हुई?
साल 2022 में केरल यूनिवर्सिटी के डॉ. अभयान जी.एस. और डॉ. राजेश एस.वी. के नेतृत्व में एक टीम ने लाखापर गांव के पास की जमीन की पहचान की थी। उसी जगह पर अब खुदाई में यह ऐतिहासिक जगह सामने आई है, जो लगभग 3 हेक्टेयर क्षेत्र में फैली हुई है। यह जगह गडुली-लाखापर रोड के दोनों ओर है, जहां कभी गंडी नदी बहती थी।
क्या मिला खुदाई में?
इस खुदाई में जो चीजें सामने आईं हैं, वे हर किसी को हैरान कर देने वाली हैं:

- प्राचीन दीवारें और संरचनाएं: यहां स्थानीय पत्थर और शेल से बनी दीवारें मिलीं, जिससे पता चलता है कि लोग योजनाबद्ध तरीके से घर और ढांचे बनाते थे।
- मिट्टी के बर्तन (पॉटरी): खुदाई में दो तरह की हरप्पन काल की पॉटरी मिली है – शुरुआती और क्लासिकल। इसमें “प्री-प्रभास वेयर” नामक बहुत ही दुर्लभ मिट्टी के बर्तन भी मिले, जो अब तक सिर्फ गुजरात के तीन ही स्थानों पर मिले थे।
- मानव कंकाल: एक कब्र भी मिली, जिसमें एक इंसान का कंकाल गड्ढे में सीधे रखा गया था। इसके साथ वही प्री-प्रभास पॉटरी भी थी। यह इस प्रकार की पहली कब्र है जिसमें इस खास मिट्टी के बर्तन मिले हैं, जिससे पता चलता है कि यह कोई विशेष रीति-रिवाज रहा होगा।
- गहने और औजार: खुदाई में कीमती पत्थरों से बने मनके (माला के दाने) मिले हैं – जैसे कार्नेलियन, अगेट, अमेजोनाइट और स्टेटाइट। साथ ही, शंख के गहने, तांबे और मिट्टी की वस्तुएं, तथा चकमक पत्थर के औजार भी मिले हैं।
- पशु अवशेष: गाय, भेड़, बकरी, मछलियों की हड्डियां और खाने लायक शंख भी पाए गए हैं, जिससे ये पता चलता है कि उस समय के लोग खेती और मछली पालन दोनों करते थे।
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क्यों है यह खोज खास?
डॉ. राजेश के अनुसार, अब तक गुजरात में हरप्पा सभ्यता की कई कब्रें तो मिली थीं (जैसे धनैटी में), लेकिन जहां ये लोग रहते थे वो बस्ती नहीं मिली थी। लाखापर पहली जगह है जहां हमें एक ही सभ्यता के ‘जीते-जागते’ लोगों की बस्ती और उनकी कब्रें दोनों साथ में मिली हैं। यह भारतीय इतिहास और संस्कृति को समझने का एक अनमोल मौका है।
क्या कहती है यह खोज?
यह खोज यह साबित करती है कि कच्छ जैसे रेगिस्तानी इलाकों में भी हजारों साल पहले हरप्पा जैसी विकसित सभ्यता फैली हुई थी। यहां के लोग न सिर्फ अच्छे कारीगर थे, बल्कि दूर-दूर के इलाकों से संपर्क में भी थे – जैसे सिंध क्षेत्र से, जहां के चर्ट ब्लेड्स (चाकू जैसे औजार) भी यहां मिले हैं।
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निष्कर्ष
लाखापर की यह खुदाई सिर्फ एक पुरानी जगह की खोज नहीं है, बल्कि यह उस समय की ज़िंदगी, रीति-रिवाज, व्यापार और संस्कृति की झलक दिखाती है। गांव में रहने वाले आम लोग भी इस खोज से जुड़ाव महसूस कर सकते हैं, क्योंकि यह दिखाता है कि हमारे पूर्वज कितने विकसित और समझदार थे।