‘लालू के ‘कुकर्म’ पर नीतीश को मिल रही गाली, नियोजित शिक्षकों के लिए नौटंकी कर रहा लालू परिवार’
बिहार के नियोजित शिक्षक दरअसल सबसे बडे नौटंकीबाज है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद नियोजित शिक्षत आक्रोशित है। वामपंथी नेताओं का मठ रहा माध्यमिक शिक्षक संघ के उकसाबे पर ये नियोजित शिक्षक आज नीतीश कुमार की ईंट से ईंट बजा देने की बात कर रह हैं। अब जरा यह समझ लीजिए कि मामला क्या और ये केस हार क्यों गये। सबसे बडी बात हम इन्हें नौटंकीबाज क्यों कर रही हूं।
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स्कूल का सरकारीकरण मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्रा के कार्यकाल में हुआ। स्कूल के लिए सहायक शिक्षक का पद सृजन हुआ उसकी नियुक्ति और सेवा शर्त के बाद उसका वेतनमान तय हुआ। उसी वेतनमान की मांग ये नियोजित शिक्षक आज कर रहे हैं। नौटंकी बस इतनी है कि ये समान काम, समान पद के बदले समान काम, समान वेतन मांग रहे हैं। दरअसल इसके पीछे वामपंथियों की चालाकी और नीचता है। उस नीचता को छुपाने के लिए ये नियोजित शिक्षक इस नौटंकी को कर रहे हैं।
लालू यादव के कार्यकाल में शिक्षकों के नेता थे शत्रुघ्न प्रसाद सिंह। उन्होंने केंद्रीय वेतनमान की मांग को लेकर लंबी हडताल कर दी।अंतत: सरकार को शिक्षकों की मांग स्वीकार करनी पडी। सरकार ने स्कूल शिक्षकों को केंद्रीय वेतनमान देने का फैसला कर लिया। शिक्षकों के प्रतिनिधि के तौर पर लालू से समझौता करने शत्रुघ्न प्रसाद सिंह गये। लालू ने उन्हें एक प्रस्ताव और 5 लाख रुपया दिया और कहा कि इस प्रस्ताव पर हस्ताक्षर कर दीजिए। वामपंथी नीच गद्दार भ्रष्ट शत्रुघ्न प्रसाद सिंह उस कागज पर महज 5 लाख रुपया लेकर हस्ताक्षर कर दिया।
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उस समझौते के तहत शिक्षकों को केंद्रीय वेतनमान तो मिला लेकिन उनकी सेवानिवृति के साथ ही स्कूल से सहायक शिक्षक का पद समाप्त होता गया। नियोजित शिक्षक आज जिस वेतनमान की बात करते हैं वो उन्हीं चंद सहायक शिक्षकों को मिलता है जो अब तक सेवानिवृत नहीं हुए है। सहायक शिक्षकों का पद खत्म होने के बाद लालू यादव ने इंटर स्तरीय स्कूलों के लिए शिक्षकों की नियुक्ति की। वो शिक्षक नियुक्ति के उपरांत आठवीं और सातवीं कक्षा के छात्रों को पढाने से ही इनकार कर दिया। संयोग से स्कूलों में 11वीं और 12वीं की पढाई सफल नहीं हुई और भारी माथापच्ची के बाद किसी तरह वो शिक्षक नीचे की कक्षाओं में आकर पढाने लगे। नीतीश कुमार के सामने दो विकल्प थे एक सहायक शिक्षकों का पद फिर से सृजित करना, लेकिन उससे केंद्रीय वेतनमान की शर्त टूट जाती और इंटर कॉलेज में छात्र नहीं थे सो शिक्षकों की नियुक्ति का आधार नहीं था। ऐसे में सरकार ने शिक्षकों को नियोजित करने का फैसला किया।
इनकी नियुक्ति, इनका सेवा शर्त और इनका मानदेय सहायक शिक्षकों से एकदम अलग है। इन्होंने नियोजन के समय उसपर हस्ताक्षर किया है। शिक्षकों का रहनुमा बन कर शिक्षकों की मौत की तारीख तय कर के आनेवाले शत्रुघ्न प्रसाद सिंह ने अपनी गद्दारी को छुपाने के लिए नियोजित शिक्षकों को यह भरोस दिलाया कि एक बार नियोजन हो जाने दो, फिर सरकार से वेतनमान तो ले लेंगे। यही हुआ समाज काम समान पद(सहायक शिक्षक) के बदले वामपंथी नेताओं ने बडी चालाकी से समान काम समान वेतन का नारा बुलंद कर दिया। जो गाली आज जगन्नाथ मिश्रा या नीतीश कुमार को दी जा रही है वो दरअसल शत्रुघ्न प्रसाद सिंह और लालू प्रसद को दी जानी चाहिए क्योंकि स्कूलों से सहायक शिक्षकों का पद इन लोगों ने ही समाप्त किया है।
लेखक : कुमुद सिंह, संपादक, ईसमाद(ये लेखक के अपने विचार हैं, इसमे डेली बिहार की कोई सहमति या असहमति नहीं है)