भगवान श्रीकृष्ण का सबसे प्रिय गोवर्धन पर्वत, कुछ सालों में हो जाएगा गायब

New Delhi: वृंदावन में गोवर्धन पर्वत (Govardhan Parvat) की अपनी ही महिमा और महत्व है। वैष्णव लोग इसे श्रीकृष्ण के समान मानते हैं। मान्यता है, गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा और पूजन से सभी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं। धरती पर गोवर्धन पर्वत खुद श्रीकृष्ण के धाम गोलोक से आया था। माना जाता है कि एक श्राप के कारण ये पर्वत धीरे-धीरे घट रहा है।

कैसे धरती पर आया था गोवर्धन पर्वत
जब भगवान विष्णु ने पापों का नाश करने के लिए वसुदेव के पुत्र रूप में जन्म लेने का निश्चय किया। तब गोलोक में रहने वाली यमुना नदी और गोवर्धन पर्वत ने भी उनके साथ पृथ्वी पर आने का निश्चय किया था। गोवर्धन पर्वत (Govardhan Parvat) शाल्मली द्विप पर द्रोणाचल पर्वत के पुत्र के रूप में जन्मे थे।

कुछ समय बीत जाने के बाद ऋषि पुलस्त्य ने द्रोणाचल से उनके पुत्र गोवर्धन पर्वत को अपने साथ काशी ले जाने की विनती की। ऋषि पुलस्त्य के कहने पर द्रोणाचल ने अपने पुत्र को उनके साथ जाने की आज्ञा दी। लेकिन, ऋषि पुलस्त्य के साथ जाने से पहले गोवर्धन पर्वन ने एक शर्त रखी। शर्त यह थी अगर ऋषि ने उसे रास्ते में कहीं भी धरती पर रखा तो वह हमेशा के लिए वहीं स्थापित हो जाएगा।

ऋषि ने गोवर्धन पर्वत की यह शर्त मान ली और उसे अपनी हथेली पर रख कर चलने लगे। चलते-चलते वह व्रज-मण्डल आ पहुंचे। व्रज आने पर गोवर्धन पर्वत को अपने पूर्व जन्म की प्रतिक्षा याद आई और उसने छल से अपना भार बहुत अधिक बढ़ा लिया। ऋषि जब उस भार के सहने में असफल होने लगे तब उन्होने उसे वही व्रज की भूमि पर रख दिया। तब से गोवर्धन पर्वत श्रीकृष्ण के साथ वहीं पर स्थित हैं।

ऋषि पुलस्त्य ने दिया था पर्वत को लगातार घटने का श्राप
ऋषि पुलस्त्य ने पर्वत के द्वारा किए गए धोखे को पहचान लिया था। ऋषि गोवर्धन पर्वत के छल से वे बहुत क्रोधित हुए और उसे प्रतिदिन थोड़ा-थोड़ा करके क्षीण (खत्म) होने का श्राप दे दिया था। उस दिन से गोवर्धन पर्वत रोज थोड़ा-थोड़ा करके घटता जा रहा है। कहा जाता है जब तक गंगा नदी और गोवर्धन पर्वत इस धरती पर मौजूद है, कलियुग का प्रभाव नहीं बढेगा। गोवर्धन पर्वत के पृथ्वी से क्षीण हो जाने पर विनाशकारी प्रलय आएगा।

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