माँ मजदूर, पिता मोची, बेटे ने खड़ी कर दी है 500 करोड़ की कम्पनी, 4500 लोग काम करते हैं

हमारे देश में अक्सर लोग इस बात पर विश्वास करते हैं कि अगर माता-पिता का दौलत हो तो ही कोई बच्चा सक्सेस हो सकता है। कुछ हद तक यह बात तो सही है “अगर पेड़ का जड़ मजबूत होगा तो तना भी मजबूत ही होगा।” लेकिन एक सच यह भी है कि हर किसी को यह मजबूत जड़ विरासत में नहीं मिलती। अच्छी बात यह है कि हमारे देश के युवा अपने दम पर भी ख़ुद को इस काबिल बना लेते हैं कि आने वाले युवा पीढ़ी को इनका उदाहरण दिया जाता है।

आज की यह कहानी एक ऐसे शख्स की है जिन्होंने अपनी ज़िंदगी में बहुत ही संघर्ष किया है और आज के समय में 5 सौ करोड़ का कारोबार स्थापित कर चुके हैं। अब करीब 5 हज़ार के लोगों को रोजगार दे रहें। सफलता के पीछे की कहानी कुछ इस कदर है कि इनके पिता मोची थे और मां जीवन-यापन के लिए देहाड़ी मजदूरी किया करती थी। तो आईये पढतें हैं इनकी सक्सेस स्टोरी

हमारे समाज में जातिवाद बहुत ज्यादा है। आय दिन लोग इसी बात को लेकर लड़ाई झगड़ा और मन मुटाव कर लेतें हैं। हिन्दू मुस्लिम को गलत बोलतें है और मुस्लिम हिन्दू को। ऐसे ही बड़े कास्ट के लोग छोटे कास्ट को और छोटे कास्ट के लोग बड़े कास्ट को गलत ठहराते हैं। लेकिन जो इन रूढ़िवादी बातों और भेदभाव को पीछे छोड़ता है वही आगे बढ़ता है। अशोक खाड़े (Ashok Khade) उनमें से ही एक हैं। इनका का जन्म Maharastra के एक गांव में हुआ। इनकी मां दिहाड़ी मजदूरी किया करतीं थी और पिता मोची का कार्य किया करतें थे। एक विशेषता इनमें थी कि इनका परिवार शिक्षा के महत्व को जानता था, जो इन्हें आगे लेकर गया और सफल होकर सबके लिए मिसाल बनें।

इनका जन्म हरिजन परिवार में होने के कारण इन लोगों का पेशा था, मरे हुए जानवरों की खाल को उतारना और उनका व्यवसाय करना। लेकिन 6 बच्चे थे इस कारण इनके पिता को इनका पालन-पोषण करने में बहुत ही कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था। जैसे-तैसे कर इनका गुजार चल रहा था। मां दिहाड़ी मजदूर करती और पिता मोची का काम करके अपना जीवन गुजारने लगे। यह मोची के कार्य के लिए मुंबई गए और वहां यह काम करने लगे। गरीबी इस कदर थी कि कभी-कभी इन लोगों को खाली पेट ही सोना पड़ता। मुंबई में चित्रा टॉकीज के पास जो पेड़ है उस पेड़ के नीचे इनके पिता मोची का काम किया करते थे।

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