बिहार में शुरू हुआ ‘फेस्टिवल ऑफ हनीमून’, छुट्टी लेकर शहर से मधुश्रावणी में गांव आने लगे पति महराज

PATNA : आपने टीवी सीरियल, सिनेमा या रियल लाइफ में विवाह उपरांत हजबैंड-वाइफ को हनीमून पर जाते देखा होगा या प्लान करते सुना होगा। अमीर हो या गरीब सभी की इच्छा रहती है कि वह अपनी पत्नी के साथ एक शानदार जगह पर जाकर टाइम पास करें। लेकिन क्या आप जानते हैं कि बिहार में एक ऐसा भी पर्व मनाया जाता है जो कि पूर्ण रूप से हनीमुन कांसेप्ट पर आधारित है। यह परम्परा कोई नयी नहीं अपितु रामायाण काल से चली आ रही है। फैशन के इस दौर में भी नव विवाहिता पति-पत्नी इस परम्परा को बखुबी निभा रहे हैं। आइए जानते है इस पारम्परिक हनीमुन फेस्टिवल के बार में।

सावन माह में नवविवाहिताओं का सबसे बड़ा त्योहार मधुश्रावणी शुरू हो गया। अगले 15 दिनों तक मिथिलांचल की सभी नवविवाहिताएं भगवान शिव, माता पार्वती सहित नाग नागिन की पूजा करेंगी। यह त्योहार मिथिलांचल के ब्राह्मण और कायस्थ समुदाय की नवविवाहिताएं बड़े श्रद्धा के साथ मनाती हैं। इस दौरान ससुराल से आये अन्न खाती हैं और ससुराल से ही आये वस्त्रों को धारण करती हैं।

मान्यता है कि इस पूजा से भगवान शिव और माता पार्वती प्रसन्न होते हैं और नवदंपती का दाम्पत्य जीवन दीर्घायु और सुखमय होता है। इस पर्व के दौरान रोज शाम को गांव के नवविवाहिताओं की टोली फूल लोढ़ने निकलती है। फूल लोढ़ कर गांव के किसी देवस्थल के प्रांगण में बैठ कर फूल से अपनी डलिया सजाती हैं । रंग बिरंगे फूलों से सजी डाली काफी आकर्षक होती है।

इस दौरान विभिन्न प्रकार के भगवान भोले की नचारी और महेशवानी गाती हुई एक दूसरे से हंसी ठिठोली करती हैं। सजधज कर फूल लोढ़ने जब नवविवाहिताओं की टोली निकलती है, तो वह दृश्य अत्यंत ही मनोहारी होता है। रंग विरंगे वस्त्र और आभूषणों से सजी नवविवाहिताएं मधुमास का सहज आभाष कराती हैं। शाम ढलते-ढलते सभी नवविवाहिता फिर अपने-अपने घरों को लौट जाती हैं। फिर दूसरे दिन की पूजा उसी फूल से होती है। 15 दिनों बाद सावन शुक्लपक्ष तृतीया के दिन नवविवाहिताओं के दोनों पांव व घुटने पर टेमी दागने की परंपरा है। इसके साथ ही इस पर्व का समापन होता है।

अनोखा क्यों है यह पर्व : ससुराल पक्ष से आए अन्न एवं वस्त्र का होता है प्रयोग। महिला पंडित संपन्न करवाती है पूजा। लोक कथाओं के माध्यम से दिया जाता है संदेश। व्यस्तता के बाद भी इसमे शामिल होते हैं पति महोदय। अंतिम दिन टेमी दागने और सिंदूरदान की है परम्परा।

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