मधुश्रावणी : चारिम दिनक कथा….सतीक कथा-पतिव्रताक कथा

सतीक कथा : ईश्वर सृष्टि रचबा लेल पहिने विष्णु, तखन महादेव आ अन्तमे ब्रह्माक रूपमे अवतार लेलनि। ब्रह्माके ँ सृष्टि रचबाक दायित्व भेटलनि। ओ तप-बलसँ अपन शरीरसँ देवता आ ऋषि-मुनि, मुहसँ सतरूपा नामक स्त्री आ स्वयंभुव मनु, दहिना आँखिसँ अत्रि, कान्हसँ मरीचि आ दहिना पाँजरसँ दक्ष प्रजापतिक जन्म देलनि। आब ब्रह्माक सन्तानो सभ सृष्टि करऽ लगला। मरीचिक पुत्र कश्यप भेला आ अत्रिक पुत्र चन्द्रमा। मनुकेँ दू पुत्र प्रियव्रत आ उत्तानपाद भेलथिन। तीन पुत्री आकृति, देवहुति आ प्रसूति भेलखिन। प्रसूतिक विवाह दक्ष प्रजापतिसँ भेलनि। ताहिसँ साठि कन्याक जन्म भेलनि। एहिमे आठ कन्याक विवाह धर्मसँ, एगारह केर रुद्रसँ, तेरह केर कश्यपसँ, सत्ताइस केर चन्द्रमासँ आ एक गोट सती नामक कन्याक विवाह महादेवसँ भेलनि।

चन्द्रमा अपन स्त्री सभमे रोहिणीके ँ सभसँ बेसी मानै छला। तँे बाकी छब्बीसो बहिनकेँ हुनकर बहुत डाह होइ छलनि। ओ सभ अपन पिता दक्षकेँ एकर ओलहन दै छली। दक्ष आसन जमाय चन्द्रमाकेँ बुझेबाक चेष्टा केलनि, मुदा ओ निष्फल भेला। दक्ष क्रोधसँ हुनका श्राप दऽ देलनि- अहाँकेँ क्षय रोग भऽ जायत आ सम्पूर्ण शरीर गलि जायत। एकर प्रभावेँ चन्द्रमाक शरीर दिनपर दिन गलऽ लगलनि।

ओ देवता सभसँ गोहारि लगेलनि, मुदा क्यौ हुनकर रक्षा नञि केलनि। अन्तमे अपन साढ़ू महादेवक शरणमे गेला। ताबत चन्द्रमाक देह बहुत गलि गेल छलनि मात्र किछुए बाँचल छल। महादेव हुनका अपन माथपर चढ़ा लेलनि। हुनकर देह गलब बन्न भऽ गेलनि। जखन दक्षकेँ एकर पता चललनि तँ ओ दौगल महादेव लग एला आ हुनका चन्द्रमाकेँ अपन माथपरसँ उतारि देबऽ लेल कहलथिन। महादेव ई बात अस्वीकार कऽ देलनि आ कहलनि जे ओ अपन शरणमे आयल केर तिरस्कार नञि कऽ सकै छथि।

दक्ष प्रजापति तहियासँ अपन जमाय महादेवसँ असौजन कऽ लेलनि। दक्ष अपन तामसकेँ देखबऽ लेल एकगोट पैघ यज्ञक आयोजन केलनि। ओहिमे सभ देवता आ मुनिकेँ नोतलनि, मुदा महादेवकेँ छोड़ि देलनि। यज्ञ प्रारम्भ भेल। लोक सभ देखबा लेल ओमहर जाय लगल। देवता लोकनि अपन विमानसँ बिदा भेला। सभकेँ अपन नैहर दिस जाइत देखि सती एकर कारण महादेवसँ पुछलनि। सती जखन बुझलनि जे हुनक नैहरमे एतेक पैघ यज्ञ भऽ रहलनि अछि तँ ओ महादेवसँ बिना नोत ओतऽ जेबा लेल जिद्द ठानि देलनि। अन्तमे महादेव हुनका अपन सेवक वीरभद्रक संग नैहर पठा देलनि।

सती जखन अपन पिताक यज्ञस्थलीमे पहुँचली तँ क्यौ हुनका बैसबो धरि लेल नञि कहलनि। सभ हिनका दिस ताकि-ताकि कनफुसकी करऽ लगला। ओहि ठाम महादेवक निन्दा सेहो भऽ रहल छलनि। ई सभ देखैत-देखैत आ महादेवक निन्दा सुनैत-सुनैत जखन सतीकेँ असह्य भऽ गेलनि तखन ओ धधकैत यज्ञकुण्डमे कूदि आत्मदाह कऽ लेलनि। ई देखि हुनका संग आयल वीरभद्र ओतऽ भारी उत्पात मचबऽ लागल। दक्षक गर्दनि काटि लेलक। यज्ञ मण्डलकेँ तहस-नहस कऽ देलक। देवता आ मुनिगणकेँ मारि भगेलक। महादेवकेँ जखन पता लगलनि तँ ओहो ओतऽ पहुँचि गेला। हुनका क्रोधमे देखि देवता सभ कल जोड़ि क्षमाप्रार्थी भेला। ओ सभ कहलनि जे ाअहाँकेँ अपमानित करबाक दण्ड दक्ष पाबि गेला। आब जँ यज्ञ सम्पन्न नञि होयत तँ संसारक अनिष्ट भऽ जायत आ बिनु यजमानक जीने यज्ञ कोना होयत?

ते ँ हुनका कहुना जियाउ। अन्तमे औढरदानी महादेव द्रवित भऽ गेला आ यज्ञमे बान्हल बतूक मूड़ी काटि दक्षक धड़सँ जोड़ि देलनि। ओ पुन: जीवित भऽ गेला आ बो-बो करऽ लागल। महादेवकेँ हुनका भेटल एहि दण्ड आ हुनका बो-बो करैत देखि महादेवकेँ बड़ नीक लगलनि। तहियेसँ लोकसभ महादेवक पूजाक अन्तमे बो-बो करैत अछि जाहिसँ ओ प्रसन्न होइ छथि। दक्षक जीबि गेलाक बाद यज्ञ समाप्त भेल, मुदा सतीक विछोहसँ महादेव बताह भऽ गेला। ओ सतीक शवकेँ कनहापर राखि लेलनि आ जतऽ-ततऽ बौआय लगला। विष्णु भगवानकेँ जखन ई स्थिति नञि सहल भेलनि तखन ओ अपन चक्रसँ सतीक शवकेँ काटि-काटि खसबऽ लगला। सतीक अंग जतऽ-जतऽ भूमिपर खसल से सभ सिद्धपीठ भऽ गेल। विष्णु भगवान महादेवकेँ परामर्श देलनि जे ओ कठिन तपस्या करथु, सती जखन पुन: जन्म लेती तखन ओ हुनका प्राप्त भऽ जेती। महादेव तखन कैलाश छोड़ि हिमालयक घनघोर जंगलमे जा तपस्यामे लीन भऽ गेला।

पतिव्रताक कथा : एक गोट राजाकेँ दू गोट कन्या छलनि। एक गोट कन्याक नाम छल कुमरव्रता आ दोसरक पतिव्रता। कुमरव्रता नाम एहि लेल जे ओ भरि जन्म कुमारि रहबाक व्रत नेने छली। ओतहि पतिव्रता अपन पतिएकेँ सर्वस्व बूझथि आ हुनके सेवामे लीन रहथि। पतिए केर आज्ञानुसार सभ काज करथि। राजा पतिव्रताक विवाह एक गोट राजकुमारसँ करेने छला। हुनका सासुर पठा देने छला। ओही ठाम कुमरव्रताकेँ नन्दन वनमे एक कुटी बना हुनक रहबाक व्यवस्था कऽ देलनि।

एक दिन एक सिद्ध योगी ओहि वन दऽ जाइ छला। एगो कौआ हुनका माथपर चटक कऽ देलकनि। योगी क्रोधित भऽ कौआकेँ श्राप दऽ देलनि। कौआ जरि कऽ भस्म भऽ गेल। योगी भिक्षाटन करैत-करैत पतिव्रता ओहि ठाम पहुँचला। पतिव्रता योगीसँ कहलनि- नन्दन वनमे आगि लागि गेल छै। ओहि वनमे हमर बहिनक कुटी छनि। ओकरा बचा कऽ आउ ताबत हम तुलसीकेँ बेढ़ दै छी। ओहि ठामसँ आयब तखन भीख देब। साधु हुनका डेरेलनि- हमरा जँ भिक्षा नञि देब तँ श्राप दऽ देब। ताहिपर पतिव्रता कहलथिन- हम कौआ नञि छी जे अहाँक श्रापसँ भस्म भऽ जायब। ई सुनि साधु अवाक रहि गेला जे ई स्त्री तँ हमरोसँ बेसी सिद्ध अछि। ओ साधु तुरन्त नन्दन वन गेला। ओतऽ ओ देखलनि जे समस्त वनमे आगि लागल छै। मात्र कुमरव्रताक कुटी प्रतिव्रताक प्रभुत्वसँ बाँचल छल। तखन साधु कुमरव्रतासँ कहलनि- अहाँ भरि जन्म कुमारि रहि कऽ तपस्या केलहुँ, मुदा अपन कुटीकेँ नञि बचा सकलहुँ। अहाँक कुटी पतिव्रताक प्रभावसँ बाँचल अछि। तेँ ई सिद्ध भेल जे कुमरव्रतासँ पतिव्रता पैघ होइत अछि।

ई सुनि कुमरव्रता सेहो निश्चय केलनि जे ओहो बियाह कऽ पतिव्रता बनि जेती। भोर हेबापर जाहि पुरुषक दर्शन हुनका सभसँ पहिने हेतनि तिनकेसँ विवाह कऽ लेती। भोर हेबापर हुनक नजरि एक गोट कुष्ठ रोगीपर पड़लनि। ओकर शरीर कुष्ठसँ गलल जा रहल छल। तैओ कुमरव्रता निश्चयक अनुसार ओकरे अपन स्वामी बना लेलनि। ओकरा अपन कुटीमे आनि ओकर सेवा करऽ लगली। ओ दिन-राति स्वामीक सेवा करथि, किन्तु स्वामीक रोग बढ़ल जानि। अन्तमे एक दिन हुनक पति कहि देलनि जे आब हम बेसी दिन नञि जीब। तेँ हमरा तीर्थ करा दीयऽ। ओ अपन पतिकेँ ढाकीमे लऽ माथपर उठा बिदा भेली। बाटमे एक गोट ऋषि सूलीपर लटकल तपस्या कऽ रहल छला। जखन ओ माथपरसँ ढाकी उतारऽ लगली तँ ऋषिक डाँरमे चोट लागि गेलनि। ऋषिक सम्पूर्ण शरीर कनकनाय लगलनि। ऋषि हुनका श्राप दऽ देलथिन- जाहि स्वामी लेल तोँ ऋषिकेँ एतेक कष्ट पहुँचेलेँ से स्वामी सूर्योदयसँ पहिने मरि जेथुन। ई सुनि हुनका बहुत दु:ख भेलनि आ ओ ओही ठाम बैसि गेली। ओ भगवान सूर्यक व्रत करऽ लगली। ओ पहिनो तते तपस्या केने छली जे हुनक विधवा होयब असम्भव छल। ऋषिक शापसँ पति तँ मरि गेलथिन, मुदा सतीक तपस्याक प्रभावसँ ओ फेर जीबि उठलथिन। हुनकर शरीर सेहो पूर्ण स्वस्थ भऽ गेलनि।

एहि तरहेँ सतीक महिमा कतेको तरहेँ महिमा देखल गेल अछि। तेँ सती सीता, सावित्री, अनसूया, बिहुला आदिक गुण-गान एखनो धरि होइत अछि। जँ कोनो स्त्री मनसँ अपन पतिक सेवा करै छथि तँ हुनका कोनो प्रकारक क्लेश नञि होइ छनि। ओ सती सीता-सावित्री जकाँ यशस्वी आ अमर होइ छथि।

प्रस्तुति : अमलेन्दु शेखर पाठक

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