विधान सभा चुनाव से पहले बीजेपी-जदयू में महाभारत शुरू, क्या नीतीश की अगुवाई में NDA चुनाव लड़ेगी?

बिहार (Bihar) की राजनीति (Politics) में एनडीए नेताओं (NDA LEADERS) के बयानबाजी से घमासान मचा हुआ है. पिछले कुछ दिनों से एनडीए के दो सहयोगी दल आपस में ही उलझ गए हैं. बीजेपी और जेडीयू के नेता एक दूसरे पर शब्दभेदी बाण चला रहे हैं. नेताओं के बयानों से साफ झलक रहा है कि बीजेपी-जेडीयू (BJP-JDU) में सब कुछ ठीक-ठाक नहीं चल रहा है. ऐसे में महत्वपूर्ण सवाल यह है कि क्या बीजेपी, नीतीश का साथ छोड़ना चाहती है या फिर नीतीश कुमार बीजेपी का साथ छोड़ना चाहते हैं? जानकारों का मानना है कि दोनों एक दूसरे का साथ छोड़ना चाहते हैं और दोनों दलों का अपना-अपना गुणा-गणित है. इसलिए आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए दोनों दल राज्य की जातिगत समीकरण साधने की नई रणनीति पर काम करना शरू कर दिया है.

अभी दो दिन पहले ही बीजेपी के एमएलसी संजय पासवान (Sanjay Paswan) ने कहा था कि नीतीश कुमार (NITISH KUMAR) को मुख्यमंत्री बनाने का मौका अब बीजेपी (BJP) को देना चाहिए. पासवान के इस बयान के बाद जेडीयू नेताओं (JDU LEADRES) ने कड़ी प्रतिक्रिया दी थी. जेडीयू नेताओं ने साफ कहा था कि इसका निर्णय बीजेपी नहीं ले सकती है. बीजेपी की ओर से बिहार में भी एनआरसी लाने की मांग चल रही हैबीजेपी की ओर से बिहार में भी एनआरसी लाने की मांग चल रही है

बता दें कि पिछले दिनों संजय पासवान का बयान उस समय आया था, जब बीजेपी की ओर से बिहार में भी एनआरसी लाने की मांग चल रही है. दूसरी तरफ जेडीयू एनआरसी के मुद्दे पर बीजेपी से उलट राय रख रही है. और तो और जेडीयू नेताओं का साफ कहना है कि अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में भी एनडीए की तरफ से नीतीश कुमार ही पार्टी का चेहरा होंगे.

गौरतलब है कि पिछले कुछ दिनों से दोनों तरफ से जिस तरह से वाकयुद्ध छिड़ा हुआ है, उससे एनडीए के अंदर सबकुछ ठीक कहने वाले भी अब चुप हो गए हैं. जेडीयू के एक बड़े नेता न्यूज 18 हिंदी से बात करते हुए कहते हैं, ‘बीते कुछ दिनों से दोनों पार्टियों के बीच तालमेल की घोर कमी आ गई है. बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व इसको लेकर चुपचाप बैठी हुई है. उनके तरफ से किसी भी तरह का कोई पहल नहीं किया जा रहा है.

बता दें कि बुधवार को दोनों पार्टियों के बीच खटास को कम करने के उद्देश्य से ही राज्य के उपमुख्यमंत्री और बिहार बीजेपी के सबसे बड़े नेता सुशील मोदी (Sushil Kumar Modi ) ने इस पर विराम लगाने की कोशिश की और अपने ट्वीट में लिखा कि 2020 का चुनाव भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में लड़ा जाएगा. हालांकि इसके बाद उन्होंने अपना ट्वीट डिलीट कर दिया. ऐसे में विपक्षी दलों ने ने चुटकी ले कर सवाल पूछ दिया कि आखिर किस मजबूरी के कारण सुशील मोदी को अपना ट्वीट डिलीट करना पड़ा और अब नीतीश कुमार क्या करेंगे? ये दिगर बात है कि बाद में सुशील मोदी का ट्विट फिर से उनके वॉल पर दिखने लगा था.

बता दें कि सूशील मोदी ने अपने ट्वीट में लिखा था, ‘नीतीश कुमार बिहार में NDA के कैप्टन हैं और 2020 में होने वाले अगले विधान सभा चुनाव में भी वही कैप्टन बने रहेंगे. ऐसे भी जब कैप्टन हर मैच में चौका और छक्का जड़ रहा हो और विरोधियों की पारी से हार हो रही हो तो किसी भी प्रकार के बदलाव का सवाल ही कहां उठता है?’ आखिर किस मजबूरी के कारण सुशील मोदी को अपना ट्वीट डिलीट करना पड़ा और अब नीतीश कुमार क्या करेंगेआखिर किस मजबूरी के कारण सुशील मोदी को अपना ट्वीट डिलीट करना पड़ा और अब नीतीश कुमार क्या करेंगे. जाहिर है इस पर सवाल खड़े होने लगे हैं. उन्होंने नीतीश के 2020 में सीएम बनने वाला ट्वीट ही क्यों डिलीट किया? बहरहाल जेडीयू इसे कोई बड़ी बात नहीं मान रही है. पार्टी के वरिष्ठ नेता और बिहार सरकार में मंत्री महेश्वर हजारी ने इसका बचाव किया है.

आखिर वह कौन सी चीज है जिसकी वजह से दोनों एक दूसरे का साथ छोड़ना चाहते हैं. वरिष्ठ पत्रकार संजीव पांडेय बातचीत में कहते हैं, ‘नीतीश कुमार को यह लगने लगा है कि आरजेडी की बीते दो लोकसभा चुनावों में जो करारी हरार हुई, उससे मुस्लिम मतदाताओं में आशंका पनपने लगी है कि आरजेडी अब उनकी लड़ाई नहीं लड़ सकती है. नीतीश कुमार को लगता है कि अगर वह बीजेपी का साथ छोड़ देंगे तो मुसलमानों का एक बहुत बड़ा तबका उनके साथ आ जाएगा. कुमार को यह भी लगता है कि पिछले 15 सालों में अतिपछड़ों के लिए जो काम किया है उसका बड़ा हिस्सा उनके साथ आएगा. जो गैरयादव, कुर्मी और कोयरी मतदाता हैं वह अभी भी बीजेपी के बजाए जेडीयू के साथ हैं. साथ ही जेडीयू को दलितों और महादलितों में भी एक बड़ा तबका वोट करती है. नीतीश कुमार को यह भी लगता है पिछले विधानसभा चुनाव में जेडीयू, आरजेडी और कांग्रेस के गठबंधन के दौरान अगड़ों का वोटबैंक आरजेडी से डर कर कांग्रेस में शिफ्ट हो गया था. अगर वह अगले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ गठबंधन कर लेते हैं अगड़ों को कुछ वोटबैंक हमारे साथ भी आ जएगा. कुमार शायद इस प्लान पर काम कर रहें हैं कि कांग्रेस, लेफ्ट के सभी धरों को मिलाकर वह विधानसभा चुनाव में उतरें.

संजीव पांडेय आगे कहते हैं, ‘बीजेपी का एक अलग गणित है. जेडीयू से अलग हो कर बीजेपी नीतीश कुमार को कई ऐसे मुद्दों पर घेरना चाहती है, जिससे नीतीश कुमार की परेशानी बढ़े. आसाम की तरह बिहार में सीमांचल इलाकों में घुसपैठिये की समस्या है. बीजेपी बिहार में भी एनआरसी करवाना चाहती है. विगत कई सालों से अक्सर यह सवाल उठता रहा है कि सीमांचल इलाकों में बाग्लादेशी नागरिक आ कर बस गए हैं. उनमें ज्यादातर संख्या मुसलमानों की है. बीजेपी चाहती है कि इसको मुद्दा बना कर सीमांचल इलाकों में हिदु वोट बैंक का ध्रुवीकरण किया जाए और बीजेपी को पिछले दोनों लोकसभा चुनाव में किशनगंज सीट को छोड़ दें तो लाभ मिला है. बीजेपी को ये भी लगता है कि जहां पूरे देश में हम अच्छी सफलता हासिल कर रहे हैं तो बिहार में अकेले दम पर क्यों नहीं कर सकते हैं.’

पांडेय आगे कहते हैं, ‘पं बंगाल इसका उदाहरण है. पं बंगाल में बीजेपी ने बीते लोकसभा चुनाव में 18 सीटों हासिल कर नया इतिहास रचा है. पं बागल जैसे राज्य में जहां विपक्ष का मजबूत किला हुआ करता था वह जब सेंध लगा सकते हैं तो बिहार में क्यों नहीं. बीजेपी को लगता है कि 2014 लोकसभा चुनाव में बिना नीतीश और बिना आरजेडी के साथ लिए जब बीजेपी जीत सकती है तो अब क्यों नहीं. 2019 लोकसभा चुनाव में तो जेडीयू की मजबूरी थी कि वह बीजेपी के साथ आए, क्योंकि मोदी लहर चल रही थी और नीतीश कुमार को अंदाजा हो गया था कि वह आरजेडी के साथ जाएंगे तो नुकसान हो होगा.’हिंदी पट्टी में नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने यादव पोलिटिक्स को ध्वस्त कर दिया हैहिंदी पट्टी में नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने यादव पोलिटिक्स को ध्वस्त कर दिया है

यादव वोटर्स का रुख क्या होगा ? अब सवाल यह उठता है कि लालू यादव की अपनी जाति यादव मतदाता का रुख क्या होगा. कहा जा रहा है कि यादवों में भी पिछले दो लोकसभा चुनावों में लगातार हार के बाद हताशा का माहौल है. यादव वोटरों को लगने लगा है कि जिस तरह से देश की हिंदी पट्टी में नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने यादव पोलिटिक्स को ध्वस्त कर दिया है उससे ये लोग भी अपना ठौर तलाशने में लग गए हैं. यूपी में मुलायम सिंह यादव और बिहार में लालू प्रसाद यादव की यादव पॉलिटिक्स बीजेपी की रणनीति के सामने लगातार विफल साबित हो रही है. वैसे यादव भा अब बेहतर विकल्प की तलाश करने लगे हैं. उनको भी लगने लगा है कि उनके पास बेहतर विकल्प क्य है. जिला स्तर पर यादवों के छोटे-छोटे गुट हैं, जिनका अपना आर्थिक और सामाजिक हित है वे लोग अब नए ठिकाने की तलाश में लग गए हैं. उन यादवों को लगने लगा है कि अगले 5 सालों तक बिहार और उत्तर प्रदेश में कोई यादव मैन स्ट्रीम पॉलिटिक्स में आ नहीं सकता इसलिए वह अपना झुकाव बीजेपी की तरफ मोड़ रहे हैं. इसलिए आने वाले समय में यादव वोटरों का भी बंदरबांट होना तय है.

क्या नीतीश कुमार कांग्रेस को साथ लेकर गठबंधन बना सकते हैं?क्या नीतीश कुमार कांग्रेस को साथ लेकर गठबंधन बना सकते हैं? ऐसे में बिहार की राजनीतिक गलियारे में यह चर्चा चल रही है कि आखिर गठबंधन का होगा क्या? जिन वोटरों पर नीतीश कुमार अपना दावा ठोक रहे हैं उन वोटरों पर बीजेपी भी क्लेम कर रही है. नीतीश कुमार को लगता है कि लोकसभा चुनाव में पिछड़ा, अतिपिछड़ा, दलित या महादिलत वोटर्स जरूर मोदी को वोट देते हैं लेकिन जब विधानसभा का चुनाव होता है तो ये लोग नीतीश कुमार को ही वोट देंगे. अब जबकि लालू प्रसाद यादव जेल में हैं और परिवार का विवाद ने पार्टी के संगठन को काफी कमजोर कर दिया है. ऐसे में नीतीश कुमार आरजेडी के एक बड़े वोट बैंक पर टकटकी लगाए हुए हैं. ऐसा माना जा रहा है कि नीतीश कुमार को उनके रणनीतिकारों ने यह भी कहा है कि लेफ्ट, कांग्रेस और जेडीयू के गठबंधन होने से ऊंची जातियों के वोट बैंक में भी जेडीयू सेंध लगा सकती है.

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