हर साल तिल के दाने जितनी बढ़ जाती है इस शिवलिंग की लंबाई, वैज्ञानिक भी नहीं सुलझा पाए रहस्य

आज साइंस ने इतनी तरक्की कर ली है कि किसी भी घटना के होने के पीछे वैज्ञानिक कारण खोजा जाता है, जो काफी हद तक सही भी है। लेकिन कई मामलों में आज भी साइंस पिछड़ा हुआ मालूम होता है, फिर चाहे वह मृत्यु के बाद आत्म का गायब हो जाना हो या फिर ईश्वरी शक्ति का होना।

विज्ञान न तो ईश्वर की शक्ति को पूरी तरह से मानता है और न ही दैवीय शक्तियों से इंकार करता है, जिसकी वजह से वैज्ञानिक भगवान और मंदिरों से जुड़े कई रहस्यों के सुलझाने की कोशिश करते रहते हैं। ऐसा ही एक अनसुलझा रहस्य मतंगेश्वर महादेव मंदिर (Matangeshwar Temple) से जुड़ा हुआ है, जिसे जीवित शिवलिंग की उपाधि दी जाती है।

मध्य प्रदेश के खजुराहो (Khajuraho) में मौजूद मंतगेश्वर महादेव मंदिर (Matangeshwar Temple) लाखों करोड़ों श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र है, जहाँ स्थापित शिवलिंग को जीवित शिवलिंग माना जाता है। कहा जाता है कि मंतगेश्वर मंदिर में स्थापित शिवलिंग का आकार लगातार बढ़ता रहता है, जिसकी वजह से इसे जीवित शिवलिंग की उपाधि दी जाती है।

मतंगेश्वर मंदिर में स्थापित शिवलिंग की लंबाई लगभग 9 फीट है, जो पूरी तरह से पत्थर से बना हुआ है। यह शिवलिंग जमीन के ऊपर 9 फीट और जमीन के अंदर भी 9 फीट की गहराई तक समाया हुआ है, जो हर साल एक इंच की लंबाई के साथ बढ़ता है।

मतंगेश्वर शिवलिंग को लेकर मान्यता है कि यह शिवलिंग सृष्टी के निर्माण और अंत को दर्शाता है, जिसकी वजह से इसकी लंबाई हर साल बढ़ती रहती है। माना जाता है कि जिस तरह इस शिवलिंग जमीन के अंदर स्थित पाताल लोक तक पहुँच जाएगा, उस दिन इस पूरी दुनिया का अंत हो जाएगा।

मतंगेश्वर मंदिर और उसके गर्भगृह में स्थापित शिवलिंग का जिक्र पुराणों में भी मिलता है, जिसमें इसे जीवित शिवलिंग बताया गया है। कहा जाता है कि मतंगेश्वर शिवलिंग की उत्पत्ति की कथा धर्मराज युधिष्ठिर से जुड़ी हुई है।

दरअसल भगवान शिव ने धर्मराज युधिष्ठिर को मरकत नामक एक चमत्कारी मणि सौंपी थी, जो बाद में युधिष्ठिर के जरिए मतंग ऋषि के पास पहुँच गई थी। मतंग ऋषि ने उस जादुई मणि को राजा हर्षवर्मन को सौंप दिया, जिसे राजा ने मणि की सुरक्षा के लिए उसे जमीन के अंदर गाड़ देने का फैसला किया था।

इस काम के लिए राजा हर्षवर्मन ने मतंग ऋषि की मदद ली, जिन्होंने शिवलिंग के ठीक नीचे मणि को जमीन में दफन कर दिया था। इसके बाद 900 से 925 ईसा पूर्व में शिवलिंग के आसपास मंदिर निर्माण के कार्य को पूरा किया गया और उसका नाम मतंगेश्वर मंदिर रखा गया। माना जाता है कि वह जादुई मरकत मणि आज भी शिवलिंग के ठीक नीचे मौजूद है, जिसकी रक्षा स्वंय महादेव करते हैं।

इस तरह बीतते समय के साथ मतंगेश्वर शिवलिंग आसपास के नगरों और राज्यों में रहने वाले लोगों के आस्था का केंद्र बन गया। माना जाता है कि मतंगेश्वर मंदिर में महा मृत्युंजय मंत्र का जाप करने से किसी भी व्यक्ति को आकाल मौत से बचाया जा सकता है।

मतंगेश्वर मंदिर में स्थापित जीवित शिवलिंग की वजह से यह मंदिर पूरे भारत वर्ष में मशहूर है, जहाँ हर भक्त की मन की मुराद पूरी होती है। मतंगेश्वर मंदिर के पुजारी की मानें तो यह शिवलिंग हर साल कार्तिक माह में शरद पूर्णिमा के दिन एक इंच यानी तिल के दाने के आकार जितना बढ़ जाता है।

इसके बाद हर साल शरद पूर्णिमा के अगले दिन शिवलिंग की लंबाई नापी जाती है, जो हमेशा पिछली रात के मुकाबले 1 इंच बढ़ा हुई होती है। इतना ही नहीं मतंगेश्वर शिवलिंग जमीन के ऊपर जितना बढ़ता है, उसकी लंबाई जमीन के अंदर भी उतनी ही बढ़ती है।

ऐसा नहीं है कि मतंगेश्वर मंदिर (Matangeshwar Temple) और उसके गर्भगृह में स्थापित जीवित शिवलिंग सिर्फ भारत में ही मशहूर है, बल्कि इसकी चर्चा विदेशों में हो चुकी है। कई वैज्ञानिकों की टीम ने मतंगेश्वर मंदिर में हर साल बढ़ने वाले शिवलिंग के रहस्य को सुलझाने की कोशिश की, लेकिन वह किसी भी नतीजे पर नहीं पहुँच पाए।

आखिरकार वैज्ञानिकों को अपने शोध कार्य को बिना किसी निष्कर्ष के ही बंद करना पड़ा, क्योंकि उन्हें यह समझ नहीं आ रहा था कि एक पत्थर से बना शिवलिंग हर साल तिल के दाने के आकार जितना कैसे बढ़ जाता है। शायद इसलिए विज्ञान भी ईश्वर के अस्तित्व को मानने से पूरी तरह से इंकार नहीं करता है।

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