PATNA (Roshan Jha): इन दिनों उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में कुंभ मेले का आयोजन हो रहा है. 14 जनवरी 2025 को इसका विधिवत शुभारंभ किया गया और 26 फरवरी 2025 को इसका समापन होना है. पहले दिन से लेकर अब तक रोज लाखों करोड़ों लोग गंगा स्नान करने के लिए संगम घाट पर पहुंच रहे हैं. स्थिति का आकलन इस बात से कर लीजिए कि प्रयागराज जाने और आने वाली ट्रेनों में स्थिति बद से बदतर है. बिहार के लोगों में प्रयागराज जाने का तो एक अलग ही पागलपन दिखाने को मिल रहा है. वही बिहार बॉर्डर से उत्तर प्रदेश में सड़क के रास्ते प्रवेश करने के साथ ही महजम दिखाने को मिल जाता है. गाड़ी या ट्रेन से उतरने के बाद संगम घाट जाने के लिए लोगों को पांच से दस या दस से बीस किलोमीटर पैदल चलने को कहा जाता है।
ऐसे में आज हम आपके लिए एक स्पेशल स्टोरी लेकर आए हैं जिसमें हम आपको यह बताने जा रहे हैं कि बिहार में भी हर 12 साल पर महाकुंभ मेला और हर छह साल पर अर्द्धकुंभ मेला का आयोजन होता है, लेकिन इसे विडंबना ही कहा जाए कि इस मेले को सफल बनाने के लिए ना तो केंद्र सरकार की ओर से और ना ही बिहार सरकार की ओर से किसी तरह की कोई सुविधा दी जाती है. ना तो स्पेशल बजट का ऐलान किया जाता है और ना ही इसका प्रचार प्रसार किया जाता है.
प्रयागराज कुंभ मेला ने इतना तो साबित कर दिया कि अगर अच्छे से मेला का आयोजन किया जाए और इसकी ब्रांडिंग की जाए तो लोगों की भीड़ लगातार इसमें दिखने को मिलती है. कुंभ मेले का आयोजन भले धार्मिक हो लेकिन इसका इंपैक्ट बहुत ही व्यापक होता है. करोड़ अरबों का रोजगार होता है. होटल उद्योग का मुनाफा होता है. क्या अमीर और क्या गरीब डायरेक्ट या इनडायरेक्ट सबको लाभ पहुंचता है. फिर सवाल उठता है कि बिहार में जो महाकुंभ मेला लगता है उसके बारे में बिहार के लोग ही अनजान क्यों है.
बिहार में कहां लगता है महाकुंभ मेला
बिहार की राजधानी पटना से लगभग 105 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है बेगूसराय जिला.इसे मिथिला और मगध का बार्डर भी माना जाता है। यहां मां गंगा साक्षात अवतरित होकर भक्तों को दर्शन देती है. मान्यता है कि जो भी मिथिला क्षेत्र के सिमरिया घाट पर जाकर गंगा स्नान करते हैं उन्हें न सिर्फ मन चाहा फल प्राप्त होता है बल्कि जीवन की सारी बाधाओं से मुक्ति मिल जाती है. आप बरौनी रेलवे स्टेशन या बरौनी जीरोमाइल से रिक्शा पकड़ कर भी सिमरिया घाट तक जा सकते हैं. अगर कोई आदमी एयरपोर्ट यात्रा अर्थात विमान यात्रा की मदद से आना चाहते हैं तो या तो उन्हें दरभंगा एयरपोर्ट पर आना होगा या दरभंगा एयरपोर्ट पर.

कब से हो रहा सिमरिया में महाकुंभ मेले का आयोजन
बिहार के सिमरिया घाट पर साल 2011 में पहली बार अर्ध कुंभ का आयोजन किया गया था. जानकारों की माने तो वर्तमान समय में चार प्रमुख स्थानों पर महाकुंभ मेले का आयोजन होता रहा है. इनमें प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक का नाम शामिल है, लेकिन अगर हम वैदिक काल मैं प्रकाशित पुराणों का अध्ययन करते हैं तो पता चलता है कि भारत में 12 स्थानों पर कुंभ मेले का आयोजन हुआ करता था जो बाद के दिनों में किसी कारणवश इसका आयोजन बंद कर दिया गया. आसान भाषा में कहा जाए तो जिन 12 स्थान पर महाकुंभ मेले का आयोजन हुआ करता था उसमें बिहार का सिमरिया भी शामिल है. इसके बाद साल 2017 में इसी सिमरिया घाट पर पूर्ण कुंभ का आयोजन और साल 2023 में फिर से अर्ध कुंभ का सफल आयोजन किया जा चुका है.
सिमरिया कुंभ के बारे में करपात्री अग्निहोत्री परमहंस स्वामी चिदात्मन जी महाराज कहते हैं कि कुंभ का इतिहास समुद्र मंथन से जुड़ा है. हिंदू सनातन धर्म के सभी पुराणों में समुद्र मंथन का उल्लेख मिलता है. देव और असुरों ने मिलकर समुद्र मंथन करने का फैसला लिया था. बिहार में स्थित मंदार पर्वत को समुद्र मंथन के लिए मछनी बनाया गया था. पहले बिहार और अब झारखंड में स्थित ऐतिहासिक बासुकीनाथ मंदिर अर्थात बासुकी नाग को रस्सी बनाकर समुद्र मंथन को संपन्न किया गया था. अब तक जितने अध्ययन हुए हैं उसके अनुसार साक्ष्य और प्रमाण मौजूद है कि मिथिला वह पावन भूमि है जहां समुद्र मंथन हुआ था. इसी मिथिला धरती पर भगवान विष्णु ने समुद्र मंथन के बाद मोहिनी रूप धारण कर देवता और दानवों के बीच अमृत का वितरण किया था.

क्या कहते हैं पंचांग बनाने वाले पंडित विद्वान
कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय द्वारा प्रकाशित विश्वविद्यालय पंचांग मिथिला पंचांग, वैदेही पंचांग सहित भारत वर्ष में प्रकाशित होने वाली अन्य पंचांगों में भी सिमरिया कुंभ को लेकर उल्लेखित किया गया है.
आखिरकार वेद पुराण में क्या लिखा है
शास्त्रों में शाल्मली वन की चर्चा है जहाँ बृहस्पति के तुला राशि में गोचर के दौरान पूर्ण कुम्भ लगता था. शाल्मली वन का अर्थ होता है सेमल का वन. यही शाल्मली घिसते—घिसते सिमरिया बन गया। पत्रकार विजयदेव झा अपने एक आलेख में कहते हैं कि रुद्रयामलोक्तामृतिकरणप्रयोग के श्लोक को देखा और पढ़ा जा सकता है
“धनुराशिस्थिते भानौ गंगासागरसङ्गमे, कुम्भ राशौ तु कावेययां तुलाके शाल्मलीवने”
सूर्य, चंद्र, गुरु के अनुकूल खौगोलिक स्थिति के अनुसार सिंह राशि में नासिक, मिथुन में जग्गनाथ ओडिशा, मीन राशि में कामाख्या (असम), धनु राशि में गंगा सागर (बंगाल), कुम्भ राशि में कुम्भकोंणम अर्थात तमिलनाडु, तुला राशि में शाल्मली वन अर्थात सिमरिया (मिथिला), वृश्चिक राशि में कुरुक्षेत्र (हरियाणा), कर्क राशि में द्वारिका (गुजरात), कन्या राशि में रामेश्वरम (तमिलनाडु), तदुपरि हरिद्वार, प्रयाग और उज्जैन में पूर्णकुंभ का आयोजन होता है।

वाल्मीकि रामायण और रुद्रामलोकत्तामृतिकरणप्रयोग के अनुसार इसके एक श्लोक में स्पष्ट लिखा है जिसका हिंदी अनुवाद इस तरह है कि—ताड़का वध के बाद राम और लक्ष्मण अपने गुरु विश्वामित्र के साथ जनकपुर के लिए विदा होते हैं। वहां पर धनुष यज्ञ और सीता स्वयंवर का आयोजन हो रहा है। जनकपुर जाने के समय सभी लोग गंगा पार करने के लिए गंगा घाट पर आते हैं। राम और लक्ष्मण को उनके पुवर्ज सगर की कहानी सुनाते हुए गुरु बताते हैं कि बहुत पहले अर्थात प्राचीन समय की बात है तिरहूत अर्थात मिथिला क्षेत्र में हिमालय पर यंत्र समुद्र का विस्तार हुआ करता था। उसी के उत्तर तट पर कैलाश से थोड़ी दूर पर गंगा सागर का संगम तथा वहीं दक्षिण तट पर मंदार पर्वत भी था। इसी स्थान पर अजरत्व अमरत्व एवम आरोग्य लाभ के लिए देवता एवं राक्षसों ने मिलकर बासुकी को डोरी, कश्यप के पीठ पर स्थित कर मंदार पर्वत को पत्नी बनाकर समुद्र मंथन कर अमृत प्राप्त किया था। यह स्थान संप्रति बिहार प्रांत के बेगूसराय जिला मुख्यालय से नेतृत्व कोण में अवस्थित शाल्मली वन सिमरिया घाट सिद्ध होता है।
धर्मशास्त्र में समुद्र मंथन के जिस भौगोलिक परिवेश सीमा चौहद्दी की चर्चा की गई है उसको आज भी परखा जा सकता है। वर्तमान समय में सिमरिया धाम के दक्षिण भूभाग के बौंसी क्षेत्र में मंदार पर्वत है। संथाल परगना के दारुक वन में वासुकी नाग द्वारा स्थापित बासुकिनाथ महादेव है। जब भगवान शिव ने समुद्र मंथन से निकले हलाहल विष का पान किया था तब विष के प्रभाव से व्याकुल हो चले शिव ने विश्व के प्रभाव को कम करने के लिए जनकपुर से 50 मील उत्तर जूटा पोखरि नाम से प्रसिद्ध पुष्करणी मैं स्नान और विश्राम किया था। इसी मिथिला भूमि पर भगवान शिव ने हलाहल को पीकर विश्व की रक्षा की थी।

कहा जाता है कि जब समुद्र मंथन से अमृत निकला था और राक्षस उस अमृत घट को देवता से छीनना चाहते थे तो 11 वर्षों तक विष्णु विभिन्न स्थानों पर भ्रमण करते हुए और छिपते हुए तक इस अमृत घट की रक्षा की और 12 वें वर्ष में इसी सिमरिया स्थान में मोहिनी रूप धारण कर देवताओं को दीपावली के दिन अमृत पान करवाया था।
सिमरिया घाट में हजारों साल से कार्तिक महीने में श्रद्धालु कल्पवास करते हैं। जब सूर्य तुला राशि में होते हैं, क्योंकि समुद्र मंथन के दौरान अमृत तभी निकला था जब सूर्य तुला राशि में थे। इसलिए इस अवधि में गंगा नदी के सिमरिया घाट पर लोग कार्तिक महीने में 1 महीना तक कल्पवास करते हैं। गंगाजल को अमृत मान कर सेवन करते हैं। सवाल उठता है कि आखिर कार्तिक महीना में लोग सिमरिया घाट में ही कल्पवास क्यों करते हैं किसी अन्य जगह पर क्यों नहीं। यह प्रमाणित करता है कि सिमरिया में कुंभ का आयोजन होता था। चैत महीने में विशाखा नक्षत्र वारुणी योग होता है जिस युग में गंगा स्नान को मोक्षदायिनी माना जाता है और जिस स्थान पर यह मेला लगता था उस स्थान का नाम कभी वारुणी था जो आज का बरौनी है।
मिथिला में नदी की पूजा होती है. कभी विद्यापति के काव्य को पढ़िये! आपको गंगा संरक्षण का सूत्र उनके काव्य में मिल जाएगा। ऋषि मुनियों ने महाकुम्भ, अर्धकुम्भ, कल्पवास को इसी प्रयोजन से बनाया की साल में देश के सभी हिस्से के लोग एक स्थान पर एकत्र हो सकें जिससे भारत का सांस्कृतिक और धार्मिक एकता बनी रहे और समागम होता रहे।कईयों को यह भी नहीं पता होगा कि सिमरिया में गंगा नदी और वाया नदी का संगम है।
ज्योतिष और धर्मशास्त्र के प्रकांड विद्वान वयोबृद्ध पंडित कालीकांत मिश्र कहते हैं कि शास्त्रों में वर्णित शाल्मली वन आजका सिमरिया है जो समुद्र मंथन से लेकर विष्णु का मोहिनी रूप में अमृत वितरण से लेकर गज ग्राह युद्ध का गवाह रहा है। मिथिला के विद्वानों ने अपने अकाट्य तर्क और धर्मशास्त्रों के मान्य रेफरेंस के आधार पर प्रमाणित कर दिया कि तुला का पूर्णकुम्भ शाल्मली अर्थात सिमरिया में ही होता था।

राजा जनक के द्वारा की गई थी कल्पवास की शुरुआत
ऐसी मान्यता है कि राजा जनक के द्वारा ही यहां कल्पवास की शुरुआत की गई थी और जीवन के अंतिम काल में उन्होंने यही अपने शरीर का परित्याग किया था. लोग एक महीने तक अपने जीवन के मोह-माया से दूर रहकर सिमरिया में वास करते हैं, जिससे कि उनके स्वास्थ्य पर भी अनुकूल प्रभाव पड़ता है और आत्मा भी पवित्र होती है. वहीं विभिन्न स्थानों से आए श्रद्धालुओं ने बताया कि मिथिलांचल प्रदेश के लिए सबसे प्रसिद्ध तपोभूमि सिमरिया ही है.
सिमरिया कुंभ का विरोध करते रहे आचार्य किशोर कुणाल
बिहार राज्य धार्मिक ट्रस्ट बोर्ड के अध्यक्ष आचार्य किशोर कुणाल अब इस दुनिया में नहीं हैं। वे दिन रात धार्मिक कार्य में लगे रहते थे, लेकिन आश्यचर्य की बात है कि उन्होंने सिमरिया कुंभ का शुरू से लेकर विरोध किया। इंडिया टुडे को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि, किसी भी धार्मिक ग्रंथ में इस बात का उल्लेख नहीं है कि कुंभ मेला सिमरिया घाट पर हुआ करता था. ऑल इंडिया अखाड़ा परिषद-सभी कुंभ मेलों की आयोजक-ने इस कदम को नामंजूर कर दिया है. किसी नई धार्मिक परंपरा की शुरुआत नहीं की जानी चाहिए. वैसे भी अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने इसे धर्म विरुद्ध करार दिया है.

सिमरिया कुंभ को लेकर संस्कृत विश्वविद्यालय का बड़ा दावा
बिहार के सिमरिया में कुंभ का मेला उचित है या अनुचित इसको लेकर कई सालों से विचार विमर्श आ अध्ययन सह शोध कार्य चल रहा था। 15 अक्तूबर, 2010 को कामेश्वर सिंह संस्कृत विश्वविद्यालय दरभंगा द्वारा विद्वत परिषद की एक बैठक बुलाई जाती है जिसमें गहन मंथन के बाद तय किया जाता है कि सिमरिया प्राचीन कुंभस्थली है. विश्वविद्यालय के पंचांग विभाग ने तय किया कि तुला की संक्रांति में वृहस्पति का योग होने पर पूर्ण कुंभ और मेष की संक्रांति में वृहस्पति का योग होने पर अर्द्ध कुंभ का योग बनता है.

साल 2017 में कुंभ का उद्घाटन करने पहुंचे सीएम नीतीश कुमार
आपको जानकर आश्चर्य लगेगा कि जिस कुंभ मेले के बारे में बिहार के अधिकांश लोग नहीं जानते हैं उसी कुंभ का उद्घाटन करन के लिए साल 2017 में खुद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पहुंचे थे। इस दौरान उन्होंने कहा था कि बिहार की धरती ऐतिहासिक रही है और सिमरिया हमेशा से पुण्य भूमि और मुक्ति की धरती मानी जाती है। उन्होंने कहा कि कुंभ लगना अच्छी बात है, इसमें लाखों लोग आएंगे तो बिहार का ही गौरव बढ़ेगा। उन्होंने सिमरिया महाकुंभ की औपचारिक घोषणा की मांग पर कहा कि जब देशभर के संत-महात्मा, अखाड़ों के साधु एक स्वर से इसे अनुमोदित कर रहे हैं तो वो इससे अलग नहीं हैं।