मैथिली कथा….कबुला

नीरज कुमार ‘नीरज’

एहु बेर कामेश नहि एलै पूजामे । तामसे बिक्ख भेल छलि काकी । मुदा सरापियौ नहि सकैत छलि । एक्के टा बेटा । इष्ट मंत्र हिनकहि सँ लेने छलनि । किछु कहबै तँ पड़ि जेतै श्राप बनि कए । क्षोभ सँ मोन कोनादनि भऽ रहल छलनि । पोती आबि कए पुछलकनि दादी मंदिर नहि चलब ! चलू ने साँझ देबाक बेर भऽ गेलै । कोनो
उत्तर नहि देलथिन । मोनहि मोन भगवती केँ स्मरण करऽ लहलीह ।

हे भगवती क्षमा करब ! आ अनायास कऽल जोड़ि आँखि बन्न कऽ लेलीह ! आँखि बन्न करिते जेना बारह बरख पहिनेक दृश्य आँखिक सोझाँ आबि बेरा-बेरी नाचऽ लगलनि ! “इस्कूल सँ सँगी सब सँग साइकिल पर कामेश गामपर आबि रहल छल । कातिक मास छलै । किछु दिन पहिने दशमी पूजा भेल छल । जकर किछु-किछु चेन्ह मंदिरकआगाँमे एखनहुँ छलै । मेला मे जे दोकान सब लागल छल तकर खुट्टा सभक दरी । चाह आ पानि पीबऽ बला पिलास्टिकक गिलास । जतऽ-ततऽ कात-करौत मे पानकपीकसँ लाल भेल माटि । आ सेनुर-पिठार लागल महिषा । एकटा बरफ बेचऽ बला सेहो डगर कात , बेलक गाछ तर ठाढ नजेर एलै । आँखिए-आँखि मे इशारा भेलै आ सब साइकिल बरफबलाकेँ चारू भाग सँ घूड़ जकाँ घेर लेलकै । ललका- पीरा-उजरा बरफ चोभय लागल सभ । फेर कामेशक नजेर महिषा दीस गेलै आ ओकर मोन वितृष्णा सँ भरि गेलै । ओकर कान छागरक मेमियेबाक आवाज सँ जेना भरि गेलै । आब ओकर आँखिक सोझाँ बलि पड़ैत छागर , खड्ग लेने ठाढ बलिदान करैत पुजेगरी सेहो नाचऽ लगलै । आब ओकरा चारू भाग रक्त , छटपटैत मुड़ी काटल छागर , मुँह खोलैत बन्न करैत छागरक मुड़ी आँखि निड़ारने मुड़ीक ढेरी आ रक्त केर टीका करैत ,
मैयाक जयकारा लगबैत भीड़ सबटा जेना बिजलौका जेना रहि-रहिकए चमकऽ लगलै । रौ सबटा बरफ पिघैल गेलौ , खो ने । मात्र बरफक काठी ओकर हाथ मे रहि गेलै। एक भाग काठी फेकैत ओ साइकिल गुड़केलक ।

कनि रगेद कऽ फानि के साइकिल पर बैसल । सँगी सब दू लग्गा पाछुए छलै । डगर पर साइकिल चढले छलै कि पाछू सँ अबैत मोटरसाइकिल ओकर साइकिल के उड़ेने चलि जाइत रहल ।
बीच सड़क पर ओ बेसोह पड़ल छल । माथ फुटि गेल छलै । कियो जाऽ के ओकर माय केँ कहलकै । छाती पीटैत , हाक्रोश करैत माय लऽग एलै । चारू भाग लोक सब ठाढ़ । किनको किछु फुरियै नहि रहल छलै ।

भरि पाँज बेटा के पकड़ि लेलनि । बाबू रौ बाबू ! ई कि भऽ गेलौ रौ बाबू । हे मैया , अहींक देल ई हमर बेटा थीक ।हम निपुत्री भऽ केँ कोना जीबि सकब हे भगवती । कि हठात बेटा केँ छोड़ि काकी मंदिर दीस दौगलीह । भगवती के पीड़ी पर माथ पटकऽ लगलीह । हे मैया हे मैया । एहेन जुलुम नहि करू हे मैया । हमर प्राण लऽ लियऽ हे माता मुदा हमर बेटाक प्राण बकसि दियऽ हे जगदंबा । हमर बुढारीकेर आस जुनि तोड़ू हे माता । हे माता हम जानक बदला जान , जोड़ा करिया छागर चढायब हे माता ! हमर बेटाक प्राण बकसि दियऽ हे माता ।

बच्चा के होश आबि गेलै । दुर्गा महारानी की जय ! एहि आवाजसँ दिशा गुँजायमान भऽ गेल । पट्टी बान्हल जाय लागल बच्चाकेँ । पण्डित जी सेहो आबि गेल छलाह । मंदिरक बड़का घंटी बाजऽ लागल । थोड़ेक निरमाल आ बिभूत बच्चाक माथ पर लेपल गेल । कोटि-कोटि आभार मोनहि मोन भगवती केँ दैत काकी बेटा लग दौगलीह । सँगी सब उठापुठा कए ओकरा गामपर अनलक । जाबऽ कामेश चलऽ फिरऽ नहि लागल , काकी सिरमा लग सँ टसकबो नहि केलीह । सेवा ओ बेटा के करैत छलीह मुदा
चित्त सदिखन भगवती सँ कयल कबुला पर रहैत छलनि ..!”

गै दादी चल ने मंदिर । सब चलि गेलै । ऐँ …..! काकी वास्तविकताक घरातल पर एलीह । बेटा कबुला सधेबाक लेल एखनहुँ तैयार नहि । रौ कामेश ! तोहर कबुला थिकहुतैँ तोहर रहब अत्यावेश । हम आब बूढ भेलहुँ ! कर्जा माथ पर लऽ केँ हम नै जाइ चाहैत छी एहि संसार सँ । मुदा बालमन मे पैसल , ओ दृश्य कामेश पुन: देखबाक लेल तैयार नहि ! काकी आइ ठानि लेलीह जे पण्डित सँ सबटा गप कहि , विचार लेतीह । की कबुला हुनक बेटाकएनहु बिनु सधायल जा सकैत अछि ! की भगवती हुनकर विवशता नहि बुझथिन्ह ! प्रसाद भरि गाम बाँटिदेल जायत।
एहि निश्चय केर सँग काकी मंदिर मे साँझ देमय लेल विदाभऽ गेलीह । सँग मे दुनू पोती सेहो छलनि !

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