देश का हर यूट्यूबर्स बनना चाहता है मनीष कश्यप, उन्हें पत्रकारिता नहीं करना, डॉलर कमाना है

पटना : बिहार के मिथिला क्षेत्र में एक कहावत है. कुकर्म नाम या सुकर्म नाम… अर्थात नाम कुकर्म से हो या सुकर्म से, बस नाम होना चाहिए. इसी बात को दूसरे तरीके से कहा जाए तो… बदनाम हुए तो क्या नाम ना होगा… कहा जा सकता है. इन दिनों यह कहानी सन ऑफ बिहार अर्थात मनीष कश्यप पर एकदम सटीक बैठता है. बेचारा गिरफ्तारी के डर से और बिहार पुलिस से बचने के लिए दर-दर भटक रहा है और भागा फिर रहा है. कभी फेसबुक पर लाइव आकर बिहार के डिप्टी सीएम तेजस्वी को चैलेंज कर रहा है कि 2025 में आपको बिहार का मुख्यमंत्री नहीं बनने देंगे तो कभी कहता है कि मेरे ऊपर फर्जी केस किए गए हैं सोचिए मेरे परिवार वालों का क्या हाल होता होगा.

मनीष कश्यप एक यूट्यूबर्स हैं और सच तक न्यूज़ चलाते हैं. उनका यह नाम आजतक से चुराया हुआ है. टीवी टुडे ग्रुप वाले आज तक के बाद लगभग देश के हर एक स्टेट के नाम से डिजिटल चैनल चलाते हैं. हर नाम के अंत में तक लगा हुआ है. उदाहरण के लिए बिहार तक. उत्तर प्रदेश तक. मध्य प्रदेश तक. संभवत यही कारण है कि मनीष कश्यप ने अपने ब्रांड के पीछे तक लगाया. सरनेम तिवारी छोड़कर उसने अपने गोत्र कश्यप को टाइटल बना लिया. इसलिए बहुत लोग उसे अंजना ओम कश्यप का संबंधी मानते हैं. वास्तविकता की अगर बात की जाए तो आज तक का सच तक से और अंजना ओम कश्यप का मनीष कश्यप से कोई लेना देना नहीं है.

2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के जीतने के बाद नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बनते हैं. और डिजिटल इंडिया की शुरुआत होती है. जिओ कंपनी 4G लॉन्च करने के साथ-साथ लोगों को मुफ्त में डाटा उपलब्ध करवाती है. पटना सहित पूरे बिहार में लगभग हर एक आदमी के हाथों में स्मार्टफोन पहुंच जाता है. यह वही दौर था जब नए-नए यूट्यूबर्स या डिजिटल क्रिएटर्स जन्म ले रहे थे. उस समय रील्स का जमाना नहीं था.

अन्ना आंदोलन की सफलता के बाद से और मोदी के पीएम बनने के बाद. हाथों में तिरंगा लेना और सेना की वर्दी पहन कर वीडियो बनाना आम बात हो गई थी. एक चीज और हुआ था. जो कोई भी एंकर स्क्रीन पर दिखता था वह वंदे मातरम या भारत माता की जय से अपनी शुरुआत करता था. कांग्रेसी नेताओं को देशद्रोही आसानी से साबित कर दिया जाता था. और जो कोई सरकार पर उंगली उठाता था उसे पाकिस्तान चले जाने को कह दिया जाता था.

याद कीजिए आप ने कई ऐसे वीडियो क्रिएटर्स को देखा होगा जो सेना की वर्दी में आकर वीडियो बनाते थे. आपको लगता था कि ये लोग सच में सेना के अंग है. वैसे बाद के दिनों में धीरे-धीरे पोल खुलता गया और लोगों के बीच सच्चाई सामने आती गई. यह वही दौर था जब ध्रुव राठी, आकाश चोपड़ा जैसे लोग जानकारी जुटाकर वीडियो बना रहे थे तू दूसरी और मनीष कश्यप जैसे लोग बिहार की जनता की भावनाओं से जमकर खेल रहे थे और व्यूज बटोर रहे थे. भारत में 4G आने के साथ-साथ फेसबुक और यूट्यूब का वीडियो मोनेटाइज होना आसान हो गया था.

यह वही दौर था जब दैनिक अखबार के न्यूज़ पोर्टल के अतिरिक्त लाइव सिटीज और लाइव बिहार नामक वेबसाइट का जन्म हो चुका था. यह दोनों वेबसाइट पल-पल की खबर लोगों तक पहुंचा रहे थे. फेसबुक इंस्टेंट के माध्यम से लाखों करोड़ों रुपए की कमाई हो रही थी. दिल्ली में लल्लनटॉप नामक वेबसाइट का जन्म हो चुका था. लाइव सिटी या लाइव बिहार की आमदनी को देखने के बाद संभवत news4nation और फर्स्ट बिहार जैसे वेब पोर्टल ने बिहार में अपना ऑफिस खोल कर काम करना आरंभ कर दिया था.

यहाँ एक बात और बता देना अति आवश्यक है कि डॉलर की कमाई क्या होती है यह बिहार के पत्रकारों से पहले आईटी के छात्रों ने बहुत पहले जान लिया था. इसलिए कुछ बीटेक छात्रों के समूह ने सबसे पहले फेसबुक पेज बनाया और उसके फॉलोवर्स को लाखों तक पहुंचा दिया. इन लोगों ने लोगों की भावना से कैसा खेला जाता है शायद उसका अध्ययन कराया होगा. कुछ नाम सुनिए आपको अपने आप सब कुछ पता चल जाएगा. एक बिहारी सब पे भारी नामक फेसबुक पेज को कौन भूल सकता है. पटना का कोई रवीश है जो इसे चलाता है. मुजफ्फरपुर नाउ…संतोष चौधरी गुवाहाटी से इसका संचालन करते हैं. अब आप सोच रहे होंगे कि एक बिहारी सब पर भारी या मुजफ्फरपुर नाउ सहित अन्य पोर्टल वाले कैसे काम करते थे. तो जवाब साफ है. यह दिनभर कंप्यूटर या लैपटॉप लेकर बैठते थे और अन्य वेबसाइट की खबरों को कट कॉपी पेस्ट करके अपने वेबसाइट पर चेप लिया करते थे.

मैंने पहले ही आपको बता दिया है कि कमाई करने का रेवेन्यू मॉडल बिहार के पत्रकारों से पहले आईटी के छात्रों ने जान लिया था. क्योंकि इनके फेसबुक पेज पर पाठक की संख्या लाखों में थी इसलिए व्यूज जमकर आ रहे थे. उदाहरण के लिए ऐसा समझा जाए कि प्रभात खबर ने खबर को प्रकाशित किया तो प्रभात खबर की वेबसाइट पर जाकर मात्र 500000 लोगों ने पढ़ा. लेकिन जब उसी खबर को एक बिहारी सब पर भारी या मुजफ्फरपुर नाव पर प्रकाशित किया गया तो उसे 50 करोड़ लोगों ने पढ़ा. रिवेन्यू मॉडल को समझना हो तो एक लाख व्यूज पर 25 1500 से 3000 आमदनी हो जाया करती थी.

अब तक जो कहानी मैंने आपको सुनाई वह स्क्रिप्ट आर्टिकल की थी. लेकिन वीडियो मोनेटाइज होते ही मानो डिजिटल की दुनिया में क्रांति आ गई हो. मैं पटना लाइव बिहार से ट्रांसफर होकर नोएडा लाइव बिहार ऑफिस में पहुंच चुका था. टीवी चैनल के अतिरिक्त नोएडा डिजिटल न्यूज़ पोर्टल के लिए महा समुद्र सा लग रहा था. बड़े-बड़े ऑफिस लेकर 15 से 20 लोगों को रखकर 24 आवर काम किया जा रहा था. और सबका सोर्स ऑफ इनकम लाखों-करोड़ों में जबरदस्त था.

यह वही दौर था जब खबर को चलाने के लिए जानबूझकर बीजेपी के सपोर्ट में या पीएम मोदी के सपोर्ट में बनाया जाता था. नए-नए ग्रुप बन चुके थे. बीजेपी वाले ग्रुप में तो लोगों की संख्या लाखों में थी. तब तक किसी भी ग्रुप में खबर पोस्ट करने पर एडमिन अप्रूव वाला झंझट नहीं हुआ करता था. आसान भाषा में समझा जाए तो मोदी जी के गुणगान से संबंधित किसी न्यूज़ लिंक को बीजेपी वाले ग्रुप में ठेल दीजिए. देखते ही देखते पोस्ट ना सिर्फ वायरल हो जाएगा बल्कि व्यूज लाखों-करोड़ों में होगी.

दिल्ली नोएडा में बैठे डिजिटल क्रिएटर्स जहां स्टूडियो में बैठकर ज्ञान दे रहे थे और वीडियो बना रहे थे वहीं बिहार की सड़कों पर उतर कर कुछ लोग लाइव रिपोर्टिंग कर रहे थे. इन लोगों को पत्रकारिता से कोई लेना-देना नहीं था. यह जानते थे कि अगर मैंने किसी को फेसबुक लाइव में पीट दिया तो भी वीडियो वायरल होंगे और आमदनी होगी. और अगर किसी ने मुझे पीट दिया तो भी वीडियो वायरल होगा और आमदनी होगी.

बिहार में मनीष कश्यप और विकास राज इसमें से सबसे प्रमुख है. दोनों अलग-अलग दिशा में जाकर वीडियो बनाते थे और दोनों का एंगल अलग होता था. मनीष कश्यप जहां वंदे मातरम और जय हिंद से वीडियो की शुरुआत करता था और लोगों के मन में राष्ट्रभक्ति भर देता था. वह बात बात पर सरकार को टारगेट करता था. वह अपनी शब्दावली से ऐसा दिखाता था कि मानो सभी परेशानियों का जड़ बिहार के लोग या बिहार सरकार है. उदाहरण के लिए पटना बाढ़ में डूबा तो वह बीच पानी में जाकर रिपोर्टिंग करने लगा. लोगों के पास ना सिर्फ फ्री टाइम हुआ करते थे बल्कि इंटरनेट का डाटा भी काफी सस्ता हो गया था और अनलिमिटेड हो चुका था. अभी यहाँ जरा रुक कर सोचिए की नौटंकी देखने में किसे मजा नहीं आता. व्यूज का गेम कब साजिश पर पहुंच गया यह किसी को समझ ही नहीं आया.

अयांश मामले में तो मनीष कश्यप ने सारी सीमाएं पार कर दी. फर्जी रिपोर्ट बनाकर बच्चे की बीमारी का नाम लेकर बिहार सहित देश भर के लोगों से पैसे बटोरे गए और उसका बंदरबांट किया गया. इसी बीच एक और लड़के का जन्म होता है जो दावा करता है कि उसने मनीष कश्यप द्वारा किए जा रहे आयांश घोटाले का पर्दाफाश किया है. वह मनीष कश्यप के स्टाइल में ही रिपोर्टिंग करता है और नियम को ताक पर रखकर अपना काम करते जाता है.

पत्रकारिता की इस नई दौर में रेलाई ठोकाई जैसे शब्दों का जन्म हो चुका था. इधर पटना में दो-चार लोग यूट्यूब पर कमाई कर रहे थे उधर दूसरी ओर इन लोगों की शानो शौकत को देखकर हर एक जिले और हर एक प्रखंड में एक यूट्यूबर्स जन्म ले रहा था. अब इन लोगों के पहुंचने से पहले ही जिले वाले खबर को ब्रेक करने लगे थे. अब इन लोगों का काम बस इतना रह गया था कि जो कोई भी सेंसेटिव मुद्दा हो उसके यहां पहुंचे और वीडियो बनाओ.

आपको वायरल बॉय सोनू और अररिया का एक मर्डर केस तो याद ही होगा. आरती का इंटरव्यू लेने के लिए हजारों यूट्यूब वाले अररिया में डेरा डाले रहे. पहले इन लोगों ने आरती और उसके प्रेमी की खबर को दिखा दिखाकर डॉलर कमाया बाद में जब आरती की शादी उसके प्रेमी के भाई से हो गया तो फिर खुद जज बनकर मीडिया ट्रायल करने लगे.

अब लौटते हैं मनीष कश्यप पर…. मनीष कश्यप इन सभी यूट्यूब चलाने वालों से अलग था. क्योंकि उसका रूप और उसके बोलने की शैली लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता था. उसके फेसबुक और यूट्यूब पर फैन फॉलोइंग लगातार दिन दोगुना और रात चौगुना बढ़ता गया. वर्तमान समय की बात करें तो सच तक का फेसबुक फैन फॉलोइंग 2.9 मिलियन अर्थात 29 लाख है. वही यूट्यूब पर 6.43 लाख अर्थात 64 लाख है.

इनको पता था कि मैं अगर कोई भी वीडियो बनाउ तो कम से कम एक करोड़ लोगों तक वह आसानी से पहुंच जाएगा. एक मिलियन व्यूज अर्थात 1000000 व्यूज आना आम बात है. संभवत यही कारण था कि मनीष कश्यप जहां भी जाता था उसकी नौटंकी को रिकॉर्ड करने के लिए उसका एक आदमी हमेशा कैमरा को ऑन रखता था. याद कीजिए कैसे व टोल टैक्स पर एक कर्मचारी से उलझता है और कैसे कोलकाता ट्रैफिक पुलिस के एक अधिकारी को फटकार लगाने लगता है. इतना ही नहीं बिहार के एक विश्वविद्यालय की सिंडिकेट बैठक में कैमरा ऑन करके डायरेक्ट घुस जाता है.

डॉलर की कमाई इन दोनों लड़कों के साथ साथ बिहार के हर एक यूट्यूब चलाने वालों के सर के ऊपर चढ़कर बोल रहा है. इसी बीच तमिलनाडु का वह प्रकरण आता है जिसमें दावा किया जाता है कि बिहारी मजदूरों को तमिलनाडु से मारपीट कर भगाया जा रहा है. मनीष कश्यप इस मामले में वीडियो बनाते हैं और हर एक बार की भांति मनीष कश्यप को काउंटर करने के लिए विकास राज तमिलनाडु पहुंच जाते हैं. मनीष कश्यप की पत्रकारिता जहां right-wing के लिए काम करती है वही विकास राज की पत्रकारिता यादव समर्थकों के लिए अग्रेसिव होती है. अगर आप लोगों को याद होगा तो छपरा कांड के बाद विकास राज का एक वीडियो वायरल हुआ था जिसमें वह जमकर लोगों को गाली दे रहा था.

जब विकास राज जेल गया था तो उसके समर्थक आंदोलन कर रहे थे यूट्यूब पर वीडियो बना रहे थे और वी सपोर्ट विकास राज हैस्टैग चला रहे थे. अब जब मनीष कश्यप की जेल जाने की बारी आई है तो 100 में से 90 यूट्यूब और फेसबुक पेज चलाने वाली लोग मनीष कश्यप का समर्थन कर रहे हैं. यह जानते हैं कि अभी मनीष कश्यप के सपोर्ट में बोलने से व्यूज लाखों-करोड़ों में जाना लगभग तय है. डॉलर की कमाई होनी निश्चित है.

एक तरह से कहा जाए तो मनीष कश्यप हो या विकास राज. सच तक न्यूज़ हो या एक्सपोज मीडिया इन्हें पत्रकारिता से कोई लेना-देना नहीं बल्कि डॉलर कमाना है…

जारी…

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