CM बनने का सपना टूटा… दे दिहलन जनता खींचके तमाचा, हीं हीं हीं हीं हंस दिहले रिंकिया के पापा

दे दिहलन दिल्ली जनता खींचके तमाचा, हीं हीं हीं हीं हंस दिहले रिंकिया के पापा…

मनोज तिवारी नाम के कैरेक्टर की चर्चा होते ही सबसे पहले क्या बातें सामने आती है? 1 बगलवाली जान मारेली…2. रिंकिया के पप्पा…ही ही हंस देली 3. का समाचार बा…मंगरुआ बीमार बा 4. बेबी बीयर पीके…

हां तो इस सबके लिए इनको दिल्ली की जनता अपना सीएम मान लेती क्या? मनोज तिवारी जैसे कलाकारों ने भोजपुरी भाषा को देश और दुनिया के सामने अश्लीलता और बेहूदगी का परिचय बना कर रख दिया। आप जाइये किसी पार्टी में, जहां पंजाबी-गुजराती-मराठी व अन्य भाषा के गानों पर लोग थिरकते रहेंगे लेकिन जब बात बिहार के गानों की होगी तो लगाबे लू जब लिपिस्टिक या फिर नथुनिया जान मारेली ही बजा दिया जाएगा…

अरे भाई लोगों ये गाने बिहार की पहचान नहीं है लेकिन मनोज तिवारी जैसे लोगों ने सांस्कृतिक बीमारी का संक्रमण इस कदर फैला दिया है कि हमारे आपके जैसे लोग चीख-चीखकर भी कहेंगे तो लोग मानेंगे नहीं।

अक्टूबर में बिहार पर आधारित एक गंभीर विषय पर चर्चा व सेमिनार के कार्यक्रम के सिलसिले में कुछ लोगों ने कहा कि मनोज तिवारी से भी संपर्क किया जाए क्योंकि वे जनप्रतिनिधि हैं। मनोज तिवारी ने संदेशा भेजवाया किय पहले तो इस कार्यक्रम का थीम बदल दो, बिहार को हटाकर पूर्वांचल कर दो और हम लोगों ने उनके इस प्रस्ताव को सिरे से खारिज कर दिया।

कई बार इनसे मुलाकात का वक्त मांगा, इनके व इनके पीए के नंबर पर कॉल किया लेकिन भाई साहेब को ये डर सता रहा था कि बिहार के कार्यक्रम में चले जाने पर पूर्वांचल( काल्पनिक नाम जिसका कोई अस्तित्व नहीं है) का वोट बैंक ना खराब हो जाए। अब मान लोग Manoj Tiwari ‘Mridul’ की मोदी जी की लहर में ही आप जैसे लोग संसद में पहुंचे हुए हैं। राजनीति में दुर्गंध फैलाने की कुचाल को दिल्ली वालों ने कुचल दिया।

-PANKAJ PRASOON, EDITOR NEWS OF BIHAR

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