मनोज तिवारी या रवि किशन का सांसद बनना भोजपुरी के लिए एक बिमारी है

PATNA : मैंने कुछ दिन पहले फेसबुक पे लिखा था की क्या कोई ऐसा क्षेत्र है जहां किसी भाषा में एक दशक से भी ऊपर कभी अश्लील कभी फूहड़ करने वाला कोई व्यक्ति वहाँ से संसद में चुना जाता है । मैं बात रवि किशन की कर रहा हूँ । हालांकि यहां गलती रवि किशन या मनोज तिवारी की नहीं है, यहां गलती भाजपा की है जिसने ऐसे लोगों को टिकट बांटे जो अपने बच्चों के सामने भी सर उठा के नहीं बता सकते की बेटा ये देखो ये मैं नाच रहा हूँ या ये मेरी फिल्म है, इक्का दुक्का छोड़कर । इनका संसद में जाना त्रासदी क्यों है ? इस चीज़ को समझिये और ये किसकी त्रास्दी है इसको समझिये । ये त्रासदी है उस पहचान के जिन्दा रहने की उस उम्मीद की जिसके लिए बिहारी और उत्तर प्रदेश वाले सालों से देश दुनिया में लड़ रहे हैं । मेरे भाषा के सिनेमा – संगीत को देश का आम आदमी में एक बहुत ही हेय दृष्टि से देखता है । हम भले भिखारी ठाकुर या शारदा सिन्हा या और कुछ नाम ले सकते हैं लेकिन आम पंजाबी, आम दिल्लीवाला, आम बंगाली, आम मराठी हम भोजपुरी भाषियों और साधारण बिहारियों और उत्तर प्रदेश वालों के बारे में यही समझता है की इनकी भाषा का सिनेमा फूहड़ है अश्लील है इनके संगीत में ही लड़की को लॉलीपॉप की तरह चूसने की बात है और लहंगा चोली और औरतों के शरीर पे गाने बनते हैं जो हिट होते हैं ।

तो रवि किशन लगातार फूहड़ फिल्मे करते रहे हैं और ऐसा नहीं है की साफ़ सुथरी फिल्मे नहीं की हैं लेकिन ज्यादातर फूहड़ निम्न दर्जे की और अश्लील फिल्मे की हैं । उनसे पूछिए तो वो तुरंत अपनी कुछ “अच्छी” फिल्मों के नाम गिनाने लगते हैं । अरे रवि बाबू, आसाराम बापू भी अच्छा काम करते थे, गरीबों को लंगर, अस्पताल स्कूल इत्यादि, इज़्ज़त तो कभी कभी ही लूटते थे । मनोज तिवारी, जिन लोगों के साथ वोट मांगते पपकड़े जाते हैं उनके गाने मनोज तिवारी खुद नहीं सुनते हैं और ना ही उनके बच्चे कभी सुनेंगे । लेकिन ये उसी समाज का नेतृत्व कर रहे हैं जिनके संस्कृति भाषा पहचान का शोषण ही नहीं भक्षण भी किया है ।

दरअसल होता क्या है दिल्ली या पूना के किसी बढ़िया कॉलेज में जब फर्स्ट इयर में किसी उन्नीस साल की लड़की या लड़के को उसके सीनियर प्यार से ही सही कहते हैं की अरे वो लॉलीपॉप या वो लहंगा उठा देब या चोली लहंगा हुक नाभि जैसे किसी गाने पे नाच के दिखाओ या गाके दिखाओ तो वहाँ पे वो सोचती है की क्यों बताया की मैं बिहार से हूँ या पूर्वांचल के किसी हिस्से से हूँ । वो लड़की या वो लड़का अगले ४ साल यही सोचता है की बस आज के दिन कोइ मेरी बिहारी पहचान पे या पूर्वांचली पहचान पे चुटकी ना ले ले । स्कूल कुअलेज ऑफिस इत्यादि में ऐसा होता है और तब हम कोसते हैं इन अश्लीलता के सरगनाओं को । हमने क्या किया ? जो लोग अश्लीलता फूहड़ता के सरगना थे उनको हमने संसद में पहुंचा दिया और उन्होंने जितने सांस्कृतिक अपराध किये उसको दरकिनार करके “माननीय सांसद” के पद पे सजा दिया । भाजपा ने टिकट दिया क्यूंकि उन्हें तो भंजाना था । वो चाहते तो किसी अच्छे बढ़िया आदमी को दे देते । लेकिन एक तो वो योगी की सीट और दूसरा भोजपुरी भाषियों का एक ऐसा वर्ग जो बेचारा इस नशे का आदि है वो बढ़ चढ़ के वोट करेगा एक खोखले से राष्ट्रवाद में फंसकर । तो ये जो संसद बनने से रवि किशन के फूहड़ता को एक मान्यता मिली है वो उन लोगों के लिए ज़हर हो गया जो ये सोचते थे की एक दिन अश्लीलता मिट जाएगी । अब होगा ये की कई हज़ार लोग ये सोचेंगे की भाई अश्लीलता फूहड़ता बेचने वाले तो संसद विधायक यहां तक की विनय बिहारी जैसा अश्लील लिखने वाला आदमी मंत्री तक बन गया और वो भी युवा खेल कूद और संस्कृति विभाग का, तो हम क्यों नहीं बन सकते ।

वो तो भगवान् का शुक्र मनाइये की दिनेश लाल हार गया नहीं तो भोजपुरी के लिए और भी बड़ी त्रासदी होती । दिनेश लाल बेचारे से बैर नहीं है, उसने माफ़ी मांगी थी लेकिन भाजपा किस तरह नंगी हो गई, वो बड़ी दिक्कत है । मोदी जी प्रधान मंत्री वैसे भी बन जाते कोई दिक्कत नहीं थी लेकिन इन लोगों के दम पे ? आज भोजपुरी भाषी भाजपा के घोर समर्थक चाहे जितना भी छाती चौड़ा कर लें लेकिन रवि किशन और मनोज तिवारी जैसे लोगों का संसद जाना पुरे भोजपुरिया समाज के लिए त्रास्दी है । जो अपनी मातृभाषा को बेचकर और बेचने वालों के साथ सांठ गाँठ करता हो पैसे और पावर के लिए उनका हमारे देश के संसद में बैठना शर्मनाक ही नहीं बल्कि ऐतिहासिक दाग है ।
लेखक : नीतिन नीरा चंद्रा, फिल्म निर्माता

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