लालू के समर्थकों के लिए संदेश, गांव-गांव जाकर पूछो- कोख में पल रहे तेजस्वी के बच्चे का क्या दोष है

राज़द के सभी विधायक और सांसद सुनिए। ज़मीन पर काम करने वाले कार्यकर्ता सुनिए। पटना में बैठे संगठन के अधिकारी सुनिए।हमारा लक्ष्य केवल बिहार में सत्ता पा लेने का नहीं था। हम सभी एक बड़ी लड़ाई का हिस्सा है। ये लड़ाई घरों में बैठकर नहीं लड़ी जा सकती। ट्विटर ट्रेंड्स से नहीं जीती जा सकती। बीते 30 वर्षों में लालू जी ने जो भी कमाया है, उसे अब खर्च करने का समय आ गया है। अगर यहाँ चूक गए तो लक्ष्य के क़रीब पहुँचकर भी हार जाएंगे।

तो निकलिए अपने घरो से। पहुँचिए गाँवों में। गर्भावस्था और प्रसव पीड़ा झेल चुकी घरेलू महिलाओं से बात कीजिए। उन्हें बताइए लालू की गर्भवती बहू को क्यों परेशान किया गया, राजश्री के कोख में पल रहे बच्चे का क्या दोष है। माँ का दर्द माँ समझती है। बिहार की महिलाएँ समझेंगी।

जाइए खेतों-खलिहानों में, भैंस की पीठ पर बैठे युवा तुर्क से मिलिए, किसान और खेतिहर मज़दूर से मिलिए। उन्हें बताइए सीबीआई किसके इशारे पर काम करती है। नदी-तालाब में मछली पकड़ने वालों को समझाइए लालू का असली अपराध क्या है।

जाइए अमानुष कही जाने वाली उन जातियों की टोली में जिन्हें लालू ने पढ़ने का अवसर दिया, बराबरी में बैठने का हक़ दिया, बोलने के लिए स्वर दिया, रहने के लिए घर दिया।

पहुँचिए चाय की टपड़ियों पर, किसी चौक पर नाई की दुकानों तक, जहां आए दिन नागपुर का ज्ञान परोसा जा रहा है। बताइए उन्हें जो रहा है वो अमानवीय है। बताइए तेजस्वी के रिश्तेदारों के घर से क्या मिला।

वहाँ भी जाइए जो आपको अपना मानते हैं। जो आपके साथ खड़े है। जो असल में अपने है। वो मुसलमान जो आपका झंडा उठाता है, आपके लिए ज़मीन पर लड़ता है, नारा लगाता है। जिनकी रगों में दौड़ता लहू लालूवाद की गवाही देता है।

ये सब लालू जी की कमाई हुई पूँजी है। इन्हें साथ जोड़िए। एक साथ लेकर चलिए। कम्युनिकेशन में गैप मत आने दीजिए।

क्योंकि टीवी आपके विरोध में खबरें दिखा रहा है, अख़बार आपके विरोध में लिख रहें है। आपके सभी लोग फ़ेसबुक ट्विटर नहीं चलाते। उनसे मिल के बात कीजिए। उन्हें सच्चाई से अवगत कराइए।

ये समय याचना का नहीं है, रण का है। आप ही इस लड़ाई के सारथी है। अब घोड़े खोल लीजिए।

लेखक : प्रियांशु कुशवाहा, युवा पत्रकार

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