बिहार के मिथिला क्षेत्र में लोगों का जबरन धर्म परिवर्तन करवा रहे हैं कथा वाचक अनिरुधाचार्य…
मिथिला के हिन्दुओ को वैष्णव बनाने की मुहिम चल रही हैं. सरेआम कहा जा रहा हैं कि मांस मछली नहीं खाओ. गरीब जनता का ज़बरन धर्म परिवर्तन कराया जा रहा हैं. साक्त धर्म को लेकर दुष्प्रचार किया जा रहा हैं. जो काम इस इलाके में चर्च नहीं कर पाया वो ये वैष्णव करने का प्रयास कर रहे हैं.
बिहार के दरभंगा जिला में कुशेश्वरस्थान स्थित महिसौत नामक गांव में इन दिनों कथावाचक अनिरुद्ध आचार्य का प्रवचन चल रहा है. रोज लाखों लोग इस कथा को सुनने दूर-दूर से आते हैं. सोशल मीडिया पर गौर करें तो अनिरुद्ध आचार्य ने अपने ऑफिशियल अकाउंट से वीडियो अपलोड किए हैं. महाराज जी आसपास के लोगों के घर जाते हैं. उनका हाल चाल लेते हैं और दावा करते हैं कि कथा के माध्यम से समाज में बड़ा परिवर्तन आएगा.
कथा के बीच में वे मिथिला के लोगों से जय सियाराम के बदले जय श्री राम का नारा लगाने को प्रेरित करते हैं और वैष्णव बनने का संदेश देते हैं. अनिरुद्ध आचार्य लोगों को कहते हैं कि लोगों को मांस मछली का सेवन नहीं करना चाहिए. यह सभी चीज तामसी भोजन है. से जितनी जल्दी हो छोड़ दिया जाना चाहिए.
इसी बीच कुछ लोगों में अनुरोध आचार्य के इस प्रवचन का विरोध करना शुरू कर दिया है. उनका कहना है कि अनिरुद्ध आचार्य मिथिला क्षेत्र में जबरन धर्म परिवर्तन करवा रहे हैं. मिथिला क्षेत्र आरंभ से ही साक्त रहा है अर्थात मां शक्ति का भक्ति करता रहा है. यहां के लोग शुरू से मांस और मछली का सेवन करते हैं. मिथिला की मछली विश्व भर में प्रसिद्ध है. तुलसीदास की रामचरितमानस के अनुसार भगवान राम के विवाह के अवसर पर भी राजा जनक के यहां लोगों ने उपहार में मछली दिया था.
यहां आज भी गोसाई घर में दुर्गा पूजा हो या कोई अन्य मांगलिक आयोजन… बलि देने की परंपरा रही है. दुर्गा पूजा के दौरान तो लोग महाप्रसाद ग्रहण किए बिना नहीं रह सकते. यहां महाप्रसाद का मतलब है बली दिया हुआ मांस. प्रसाद को बनाने में प्याज लहसुन का प्रयोग नहीं होता है.
विरोध करने वालों का यह भी कहना है कि अनिरुद्ध आचार्य ने मिथिला की संस्कृति को समझे बिना ज्ञान देना शुरू किया है. यह जान लेना चाहिए कि देश भर में जहां-जहां शक्तिपीठ है वहां बलि देने की परंपरा रही है. चाहे वह असम का कामाख्या हो या बाबा धाम का देवघर. चाहे कोलकाता का काली घाट हो या सहरसा का उग्रतारा स्थान. यहां आज भी लाखों लोग बलि प्रदान देने आते हैं और श्रद्धा पूर्वक से महा प्रसाद ग्रहण करते हैं.
ट्विटर पर राकेश कश्यप नामक एक यूजर कहते हैं कि डाक्टर अगर चाय छोड़ने को बोले तो मरीज दूसरे डाक्टर के पास चले जाते है, यहां तो मछली और मांस का सवाल है, इन बाबा को अष्टमी के दिन मिथिला में बुलाने चाहिए, और बलि प्रदान दिखाना चाहए l
अंकित सिंह राठौड़ का कहना है कि अरे भाई उनका काम है कहना उनको ये पता नहीं होगा की मिथिला क्षेत्र है यहां के ब्राह्मण झा, ठाकुर, चौधरी, खां टाईटल लगाते हैं ये पता नहीं होगा
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