चुनावी रैली पर हाईकोर्ट का आदेश- जहां वर्चुअल संभव नहीं, वहीं होगी सभा

पटना/मुजफ्फरपुरहे! माननीय…प्लीज मी लॉर्ड की तो सुन लीजिए। चुनाव है..प्रचार भी करना है लेकिन जनता की जिंदगी को दांव पर रख कर…ये तो कोई धर्म नहींं है। भाजपा के स्टार प्रचारक राजीव प्रताप रूडी और शाहनवाज हुसैन कोरोना पॉजिटिव हैं। दोनों नेता दिल्ली में अपने आवास पर ही क्वारेंटाइन हैं। इधर, पटना में डिप्टी सीएम सुशील मोदी, स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय भी बीमार हैं। हालांकि सुशील मोदी की रिपोर्ट तो निगेटिव आई है, लेकिन डॉक्टरों ने 5 दिन बाद दोबारा टेस्ट कराने को कहा है। इधर, मुजफ्फरपुर से कांग्रेस प्रत्याशी विजेंद्र चौधरी भी संक्रमित हैं। ये नेता कई दिन से चुनाव प्रचार में थे। दो दिन पहले सुशील मोदी ने सीएम नीतीश कुमार के साथ मंच साझा किया था। वहीं, चार दिन पहले परसा में रूडी थे। मंच पर ही रूडी के साथ इतने लोग जुट गए कि मंच ही टूट गया।

आयोग ने फिर दोहराया…लापरवाही बर्दाश्त नहीं
नई दिल्ली। चुनाव आयोग ने चुनावी रैलियों में कोरोना गाइड लाइन की अनदेखी पर सख्ती दिखाई है। आयोग ने राजनीतिक दलों से कहा है कि ऐसी लापरवाही जनता पर भारी पड़ सकती है। राजनीतिक दलों को चाहिए कि भीड़ के अनुशासन को बनाए रखने के लिए कठोर कदम उठाएं। गौरतलब है कि आयोग ने ही चुनावी सभा करने के लिए सशर्त अनुमति दी गई थी। और शर्त चुनाव आयोग की फाइलों में ही कैद होकर रह गए। शर्त थी कि मैदान में कम से कम 6 फीट की दूरी पर लोग होंगे। मास्क और सेनेटाइजर की व्यवस्था की जाएगी। लेकिन चुनावी सभाओं को देखकर लगता है कि हमारे नेताओं ने मान लिया है कि कोरोना खत्म हो चुका है। बड़ा सवाल…क्या यहां भी

लोकतंत्र लोगों के लिए है और जब लोगों का जीवन ही दांव पर लग जाए और तंत्र उसे संभाल न सके तो सवाल उठने लाजिमी हैं। अबतक सवाल उठाने वाले आमजन और उनके कुछ पैरोकार ही थे। पहली बार सवाल मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ ने पूछा…साथ ही अपने आदेश में जवाब भी स्पष्ट कर दिए। कानून के जानकारों की मानें तो खंडपीठ का आदेश सीधे बिहार में लागू नहीं होता। लेकिन बिहार के लिए यह आदेश नजीर जरूर बन सकता है। आयोग ने भी सख्ती की बात की, लेकिन उतनी ही जितनी चुनाव आचार संहिता लागू करते वक्त की थी। तुलनात्मक रूप से देखें तो एमपी से कहीं अधिक लापरवाही बिहार की रैलियों में है। अब देखना होगा कि ये सख्ती जनता खुद पर लागू करती है, प्रशासन बरतता है या फिर न्यायपालिका को ही हस्तक्षेप करना पड़ता है।

उम्मीदवार को चुनाव प्रचार का अधिकार है, तो लोगों को जीने और स्वस्थ रहने का हक है। उम्मीदवार के अधिकार से बड़ा लोगों के स्वस्थ रहने का अधिकार है। {राजनीतिक दलों की वर्चुअल मीटिंग नहीं हो पा रही है तो ही सभा-रैलियां हो सकेंगी। पार्टियों को बताना होगा कि वर्चुअल सभा क्यों नहीं हो सकती? -जस्टिस शील नागू व जस्टिस राजीव कुमार श्रीवास्तव, मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

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