अलविदा कमाल खान, आप इस दुनिया में नहीं रहे विश्वास नहीं होता, श्रद्धांजलि

कमाल तो ‘कमाल’ थे। उनका जाना tv की एक बहुत संतुलित और मारक आवाज़ का जाना है। किसी भी धर्म से जुड़े क्लिष्ट विषय को बहुत न्यूट्रल हो कर रख देते थे, मानवीय स्टोरीज की तह में बस जाते थे और पॉलिटिकल स्टोरी में राजनीति की सड़ान्ध को बिना किसी नाटकीय हाव भाव के सामने ला देते थे। एक भी शब्द, वाक्य फलतू नही। PTC में उनकी टाइमिंग, फ्रेम, शब्द आपको लंबे वक्त तक अपने मोह में जकड़े रखते थे। आप उसमे डूबते उतारते और वाह – आह करते रहिएगा।

उनके live देखे तो पहली ही नज़र मे लगता था कि ये रिपोर्टर , अपने दर्शकों के लिये तस्सली से वक्त लिए बैठा है। उसमे आजकल के रिपोर्टर्स की तरह सब कुछ ‘उगल’ देने की जल्दबाजी नहीं थी बल्कि अपने दर्शकों से tv पर पहली appearence के साथ एक राब्ता बना लेना है। बिल्कुल शांत चेहरा, पुराने हीरो जैसे बालों और एकदम सलीके से ड्रेस अप हुए कमाल किसी भी मसले के बैकग्राउंड को सबसे ज्यादा अहमियत देते थे।

तुलसी की चौपाई, रसखान, कबीर, कुरान की आयतों, शायरी का उल्लेख/इस्तेमाल जिस तरीके से वो अपनी रिपोर्ट में करते थे, वो दुर्लभ है।

राम पर रिपोर्ट जो उन्होंने की, वो आखिर मुख्यधारा मीडिया में कौन कर पाया? हलाला (तलाक देकर उसी औरत से शादी कराने के लिये उस महिला की दूसरे से शादी कराना) पर रिपोर्ट मुख्यधारा मीडिया में कौन कर पाया?

जब 19 साल के थे, अपने शहर लखनऊ रहते थे और कमाल खान को सुनते थे तो इस जिक्र से भी रोमांचित हो जाते थे कि उन्होंने एक हिन्दू पत्रकार से शादी की। ऐसा लगता था ये आदमी जैसा tv पर दिखता है वैसा ही प्रगतिशील अपने जीवन में भी है। वो किसी धर्म से ऊपर मनुष्य के ज्यादा करीब लगते थे।

हमारे लखनऊ की गंगा जमुनी संस्कृति का एक सितारा चला गया। आपको विदा कहने का मन नही होता।

seetu tiwari, patna

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