बिहार लोक सभा चुनाव परिणाम पर नया खुलासा, काउंटिंग में कई जगहों पर EVM में हुई गड़बड़ी !

PATNA (DAILY BIHAR LIVE) चुनाव आयोग ईवीएम और वीवीपैट को लेकर लाख दावे क्यों ना करें लेकिन सच है कि कहीं ना कहीं कुछ तो गड़बड़। विपक्षी दल की बातों से आप भले सहमत ना हो कि ईवीएम हैक की जा सकती है, लेकिन यह तो मानना ही होगा कि ईवीएम में बहुत खामियां हैं। आखिर जिस ईवीएम में दस वोट गिरे वहां गिनती के समय पंद्रह या पांच कैसे हो गया। द क्विंट की रिपोर्ट के बाद सत्यहिंदी ने बिहार में हुए चुनाव परिणाम पर एक विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित की है। इससे साफ पता चलता है कि चुनाव प्रणाली में सुधार करने की आवश्यक्ता है।

इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) को लेकर हर दिन हैरान करने वाले ख़ुलासे हो रहे हैं। हाल ही में न्यूज़ वेबसाइट ‘द क्विंट’ ने ख़बर दी थी कि देश भर में 373 लोकसभा सीटों पर डाले गए वोट और ईवीएम से ग़िने गए वोटों की संख्या में अंतर है। उसके बाद न्यूज़ वेबसाइट न्यूज़ क्लिक ने ख़बर की है कि उत्तर प्रदेश और बिहार की 120 लोकसभा सीटों में 119 सीटों पर डाले गए वोटों की संख्या और ईवीएम की ग़िनती में निकले वोटों की संख्या में अंतर है। इस तरह के ख़ुलासों से पूरी चुनावी प्रक्रिया को लेकर ढेरों सवाल खड़े होते हैं क्योंकि चुनाव आयोग ईवीएम से निष्पक्ष चुनाव के दावे करता रहा है लेकिन इन आंकड़ों को देखकर उसके दावे किसी के गले नहीं उतरते। बता दें कि न्यूज़ क्लिक ने पिछले हफ़्ते भी ख़बर की थी कि उत्तर प्रदेश और बिहार की कुछ सीटों पर डाले गए वोटों और ग़िनती किए गए वोटों की संख्या में अंतर है।

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न्यूज़ क्लिक ने कुल ग़िने गए वोटों का आंकड़ा चुनाव आयोग से और दोनों राज्यों की प्रत्येक सीट पर कितने मतदाता हैं, इसका आंकड़ा इन राज्यों के निर्वाचन आयोग की वेबसाइट से लिया है। इन सीटों पर कितने फ़ीसदी वोटिंग हुई, यह आंकड़ा चुनाव आयोग की ओर से लाँच किए गए वोटर टर्नआउट ऐप और इन राज्यों के निर्वाचन आयोग की वेबसाइट से लिया गया है। इसमें पोस्टल बैलेट को शामिल नहीं किया गया है। बता दें कि इन दोनों ही राज्यों में बीजेपी को जोरदार सफलता मिली है और उसे कुल मिली 303 सीटों में इन दोनों राज्यों का अहम योगदान है।

पटना साहिब की सीट पर नज़र डालें तो यहाँ कुल 21,36,800 मतदाता हैं। 19 मई को सातवें चरण में यहाँ 43.1% मतदान हुआ था, इसका मतलब यह है कि यहाँ 9,20,961 वोट पड़ने चाहिए थे। लेकिन ईवीएम में जब वोटों की ग़िनती हुई तो ये 9,78,602 निकले। इसके बाद सभी लोग हैरान हो गए कि आख़िर ऐसा कैसे हो सकता है कि ईवीएम में 57,641 ज़्यादा वोटों की ग़िनती हो जाए। इस सीट पर बीजेपी उम्मीदवार रवि शंकर प्रसाद ने कांग्रेस के उम्मीदवार शत्रुघ्न सिन्हा को 2,84,657 मतों के अंतर से हराया था।

इसी तरह की गड़बड़ी कई अन्य लोकसभा सीटों पर भी हुई है, जहाँ डाले गए वोट और ईवीएम की ग़िनती में निकले वोटों में अंतर रहा। ऐसी सीटों में पूर्वी चंपारण जहाँ से बीजेपी के उम्मीदवार राधामोहन सिंह जीते हैं वहाँ अंतर 15,077 वोटों का रहा, पश्चिमी चंपारण जहाँ से बीजेपी के उम्मीदवार संजय जायसवाल जीते हैं, 15,368 वोटों का अंतर रहा, श्योहार जहाँ से बीजेपी की उम्मीदवार रमा देवी जीती हैं, 14,424 वोटों का अंतर रहा, वाल्मीकि नगर जहाँ से जेडीयू के उम्मीदवार वैद्यनाथ प्रसाद जीते हैं, 13,803 वोटों का अंतर रहा, शामिल हैं।

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इसके अलावा उजियारपुर की सीट जहाँ से बीजेपी के नित्यानंद राय जीते हैं, 12,742 वोटों का अंतर रहा, मुज़फ़्फ़रपुर से बीजेपी के अजय निषाद जीते हैं, यहाँ 10,335 वोटों का अंतर रहा, समस्तीपुर से लोजपा के रामचंद्र पासवान जीते हैं, यहाँ 13,300 वोटों का अंतर रहा, खगड़िया से लोजपा के चौधरी महबूब अली कैसर जीते हैं, यहाँ 11,126 वोटों का अंतर रहा, शामिल हैं। इसके अलावा बिहार की अररिया सीट से बीजेपी के ही प्रदीप कुमार सिंह (10,624 वोटों का अंतर) और सिवान से जेडीयू की कविता सिंह (7,590 वोटों का अंतर) की सीटें भी शामिल हैं।

बिहार की 17 अन्य लोकसभा सीटें ऐसी हैं जहाँ पर ईवीएम की ग़िनती में 4000 से लेकर 8000 वोट ज़्यादा निकले हैं। इनमें किशनगंज सीट जहाँ से कांग्रेस के मोहम्मद जावेद जीते हैं, यहाँ 4,265 वोट ज़्यादा निकले, झंझारपुर जहाँ से जेडीयू के रामप्रीत मंडल जीते हैं, 8,847 वोट ज़्यादा निकले, औरंगाबाद जहाँ से बीजेपी के सुशील कुमार सिंह जीते, 7,533 वोट ज़्यादा निकले, वैशाली जहाँ से लोजपा की वीणा देवी जीती हैं, 7,256 वोट ज़्यादा निकले और सीतामढ़ी की सीट शामिल है जहाँ से जेडीयू के ही सुनील कुमार पिंटू जीते हैं, यहाँ 7,556 वोट ज़्यादा निकले हैं।
बिहार में 6 लोकसभा सीटें ऐसी हैं, जहाँ पर हज़ारों वोटों को ग़िना ही नहीं गया। इन सीटों पर डाले गए वोट और ईवीएम की ग़िनती में निकले वोटों का अंतर काराकाट में 98,214 वोट, सासाराम में 49,087 वोट, जहानाबाद में 28,338 वोट, पाटलिपुत्र में 19,410 वोट, बक्सर में 16,804 और आरा में 10,027 वोटों का रहा। इन 6 सीटों में से चार पर बीजेपी को जीत मिली है जबकि दो पर जेडीयू जीती है। जहानाबाद सीट पर तो जेडीयू के चंदेश्वर प्रसाद सिर्फ़ 1,751 वोटों से जीते हैं और काराकाट से जेडीयू के ही उम्मीदवार महाबली सिंह 84,542 वोटों के अंतर से जीते हैं।

दिलचस्प बात यह है कि जहानाबाद की सीट को लेकर तीन अलग तरह के दस्तावेज़ उपलब्ध हैं, जिनमें डाले गए वोट और वोटिंग फ़ीसदी में अंतर है। जहानाबाद सीट पर आरजेडी के उम्मीदवार को जो दस्तावेज़ दिए गए हैं उनमें इस सीट पर 51.77% मतदान होने की बात कही गई है जबकि बिहार के मुख्य चुनाव अधिकारी की वेबसाइट पर यही आंकड़ा 54% का बताया गया है। अब बात वोटर टर्न आउट एप की बात करें तो उस पर यह आंकड़ा 53.67% है। जबकि फ़ॉर्म 20 पर वोटिंग का यह आंकड़ा 52.02% है। इस तरह की गड़बड़ियाँ बिहार की अन्य सीटों पर और मध्य प्रदेश में भी सामने आई हैं।

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पिछले हफ़्ते भी जब न्यूज़ क्लिक ने इस तरह की गड़बड़ियों को लेकर ख़बर छापी थी और चुनाव आयोग की प्रवक्ता शेफाली शरण से बात करने की कोशिश की थी लेकिन शेफाली ने किसी भी कॉल और मैसेज का यह कर जवाब नहीं दिया था कि वह शहर से बाहर हैं। इस बारे में उठे कई सवालों को मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा और अन्य दो चुनाव आयुक्तों अशोक लवासा और सुशील चंद्रा को उनकी ई-मेल पर भेजा गया लेकिन किसी ने भी इसका जवाब नहीं दिया।

बिहार के बाद अब बात करें उत्तर प्रदेश की तो यहाँ की 80 में से 50 सीटों पर भी ऐसी ही स्थिति देखने को मिली कि डाले गए वोटों और ईवीएम की ग़िनती से मिले वोटों में अंतर रहा। सबसे अज़ब हालात लखनऊ में देखने को मिले जहाँ से नई सरकार में रक्षा मंत्री बने राजनाथ सिंह उम्मीदवार थे। लखनऊ लोकसभा सीट पर कुल वोटरों की संख्या 20,38,725 थी और राज्य निर्वाचन आयोग की वेबसाइट के मुताबिक़ यहाँ 53.53% मतदान हुआ। इसका मतलब यह हुआ कि लखनऊ में 10,91,329 वोट पड़ने चाहिए थे लेकिन जब वोटों की ग़िनती की गई तो यह 15,771 वोट ज़्यादा निकले। राजनाथ सिंह को यहाँ से 3,47,302 वोटों से जीत मिली है।

इसके अलावा दो अन्य लोकसभा सीटों पर भी 6,000 से लेकर 9,000 वोट ज़्यादा निकले। इनमें से एक सीट मथुरा है। वोटर टर्न आउट ऐप के मुताबिक़, यहाँ कुल 60.48% मतदान हुआ यानी 10,88,229 वोट डाले गए। लेकिन जब ईवीएम में मतों की ग़िनती की गई तो कुल वोट 10,98,112 निकले। अब हैरान करने वाली बात यह है कि ये 9,883 वोट ईवीएम में कहाँ से आए। यहाँ पर बीजेपी की उम्मीदवार हेमा मालिनी को 2,93,471 वोटों से जीत मिली है।
इसी तरह उत्तर प्रदेश की एक सीट बाग़पत में ईवीएम से वोटों की ग़िनती करने पर 6,167 वोट ज़्यादा निकले और बदायूँ में 7,395 वोट ज़्यादा निकले। केवल फतेहपुर सीकरी सीट ही उत्तर प्रदेश की 80 सीटों में से अकेली सीट है जहाँ पर सभी आंकड़े एक-दूसरे से मिलते हैं।
उत्तर प्रदेश की एक और सीट मछलीशहर का चुनाव परिणाम भी हैरान करने वाला है। इस लोकसभा सीट पर मतदाताओं की संख्या 18,45,484 है और यहाँ पर छठे चरण में 12 मई को 55.7% मतदान हुआ। इस हिसाब से यहाँ कुल 10,27,935 वोट डाले जाने चाहिए थे लेकिन जब ईवीएम से वोटों की ग़िनती की गई तो यह 10,32,111 निकले। इस तरह यहाँ 4,176 वोट ज़्यादा निकले और यहाँ बीजेपी प्रत्याशी को मात्र 181 वोटों से जीत मिली है।

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लेकिन जब ईवीएम में गड़बड़ियों को लेकर इतनी ख़बरें सामने आ रही हैं तो कम से कम विपक्षी राजनीतिक दलों को एक मंच पर आकर इसका पुरजोर विरोध करना चाहिए। लेकिन ऐसा होता नहीं दिखता।इस मामले में न्यूज़ क्लिक से बात करते हुए पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एस.वाई. कुरैशी ने कहा था कि इस मामले में राजनीतिक दलों को अदालत का दरवाजा खटखटाना चाहिए। कुरैशी के अलावा अन्य दो पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एचएस ब्रम्हा और एन. गोपालस्वामी ने भी कहा था कि चुनाव आयोग को इस मामले में जवाब देना चाहिए।

ये तो हुई ईवीएम में वोटों की ग़िनती को लेकर गड़बड़ियों की बात। चुनाव आयोग काफ़ी दिन तक इस मामले में चुप्पी साधे रहा लेकिन अब आयोग ने जवाब दिया है तो वह भी ‘काबिलेतारीफ़’ है। आयोग ने इन गड़बड़ियों को लेकर कहा है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में मनुष्यों ने वोट डाले थे न कि भूतों ने। आयोग ने कहा है कि उसकी वेबसाइट पर डाले गए मतदान प्रतिशत के आंकड़े प्रोविजनल थे और इन्हें बदला जाना था। आयोग ने प्रेस विज्ञप्ति में कहा है कि उसकी वेबसाइट पर मतदान का जो प्रोविजनल डेटा दिया गया है वह फ़ाइनल डेटा नहीं है।

निश्चित रूप से यह हैरान करने वाली बात है कि आख़िर इतनी सारी सीटों पर ऐसी गड़बड़ी कैसे हो सकती है। आयोग की ओर से इस बात का कोई संतोषजनक जवाब नहीं दिया जा रहा है कि ईवीएम से आख़िर ज़्यादा वोट कैसे निकल सकते हैं। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र कहे जाने वाले भारत में चुनाव प्रक्रिया में अगर इतनी गड़बड़ियाँ होंगी तो लोग वोट देने से तो कतराएँगे ही चुनाव आयोग जैसी प्रतिष्ठित संस्था का भी नाम ख़राब होगा। इसलिए आयोग को ‘भूतों ने नहीं दिए वोट’ इस तरह का बयान देने के बजाय इसे लेकर उठ रहे सवालों का समाधान करना चाहिए।

साभार : सत्यहिंदी( यह खबर मूल रूप से सत्य हिंदी डॉट कॉम पर प्रकाशित हुई है)

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