मोदी सरकार ने RTI कानून को बनाया केंद्र की कठपुतली, लोक सभा-राज्य सभा में संसोधित बिल पास
संसद ने गुरुवार को सूचना का अधिकार (आरटीआई) कानून में संशोधन संबंधी विधेयक को मंजूरी दे दी। राज्यसभा में गुरुवार को भारी हंगामे, धक्का मुक्की और विपक्ष की तमाम आपत्तियों के बावजूद सरकार ने इसे ध्वनिमत से पारित करा लिया। विपक्ष के संशोधन प्रस्ताव को 75 के मुकाबले 117 मतों से खारिज कर दिया गया। केंद्र का अधिकार बढ़ेगा : बदलाव के बाद अब सूचना आयुक्तों का वेतन, भत्ते, सेवा शर्तें और कार्यकाल केंद्र सरकार नियमावली बनाकर तय करेगी। इसकी समीक्षा करने का अधिकार केंद्र को होगा। माना जा रहा है कि बदलाव के बाद सूचना आयुक्तों का दर्जा न्यायाधीशों के समकक्ष नहीं रह जाएगा।
प्रतिष्ठा से जुड़ा था विधेयक: आरटीआई संशोधन विधेयक सरकार की प्रतिष्ठा से जुड़ा था। इस पर बीजद टीआरएस और वाईएसआर कांग्रेस का समर्थन मिलने से सरकार की स्थिति मजबूत हो गई। विपक्ष विधेयक को प्रवर समिति के पास भेजने की मांग कर रहा था,जिसे सरकार ने अस्वीकार कर दिया। ।
कागज फाड़कर फेंके गए: हंगामे की वजह से चार बार सदन थोड़ी-थोड़ी देर के लिए स्थगित करना पड़ा। इस दौरान कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, डीएमके, सपा सहित कई विरोधी दलों की ओर से आसन के सामने नारेबाजी चलती रही। कागज फाड़कर फेंके गए। शुरू में शोर शराबे में सत्ता पक्ष के सांसदों ने चर्चा में भागीदारी की लेकिन बाद में चार बजे के करीब चर्चा पर आम सहमति बनी।।
धक्का-मुक्की भी हुई: प्रस्ताव पर मतदान के समय हाल ही में टीडीपी से भाजपा में आए सांसद सी एम रमेश को कुछ सदस्यों को मतदान की पर्ची देते हुए देखा गया। विपक्षी सदस्यों ने इसका कड़ा विरोध किया। आपस में धक्का मुक्की भी हुई। कई सदस्य आसन के समक्ष आ गए।
केंद्रीय मुख्य सूचना आयुक्त व सूचना आयुक्तों का वेतन मुख्य निर्वाचन आयुक्त एवं निर्वाचन आयुक्तों के बराबर है। संशोधन के बाद केंद्र तय कर सकेगा। ’ राज्यों के मुख्य सूचना आयुक्तों और सूचना आयुक्तों के वेतन-भत्ते व सेवा शर्तें निर्धारित की जा सकेंगी। ’ सूचना आयुक्तों का कार्यकाल अभी पांच वर्ष है। सरकार इसकी समीक्षा कर सकती है।
2005 एक्ट के मुताबिक अगर किसी की नियुक्ति सूचना आयुक्त या मुख्य सूचना आयुक्त के तौर पर होती है और वह व्यक्ति सरकारी नौकरी के तहत पेंशन या भत्ता पा रहा है तो उसकी सैलरी से उतने पैसे की कटौती कर ली जाती है। नए नियम के मुताबिक अब इस बात का फैसला केंद्र सरकार के हाथों में आ गया है।
अगर हम उदाहरण के तौर पर समझें तो सूचना आयुक्त की सैलरी अगर 1 लाख रुपये होता है और वह पहले से 25 हजार रूपये पेंशन और भत्ता पा रहा है। उस हालत में सरकार सूचना आयुक्त के खाते में 1 लाख 25 हजार रूपये नहीं देगी। पेशन और भत्ता पाने की स्थिति में भी सरकार पेंशन और भत्ते के पैसे को काट कर देती है। यानि आपको हर हाल में 1 लाख रूपये से ज्यादा नहीं मिलेंगे।
क्या है आरटीआई एक्ट 2005 : करीब 14 साल पहले यानी अक्तूबर 2005 में देश को एक नया कानून मिला था। इस कानून को “सूचना का अधिकार” यानी आरटीआई कानून के नाम से जाना जाता है। इसके तहत किसी भी नागरिक को सरकार के किसी भी काम या फैसले के बारे में सूचना लेने का अधिकार मिला हुआ है।