जंगलराज के लालू और सुशासन बाबू में है अंतर, एक ने वशिष्ठ बाबू को सत्कार दिया, दूसरे ने दुत्कारा

जंगलराज के खलनायक लालू और सुशासनराज के दिव्य पुरुष नीतीश बाबू में अंतर देखिए। साल 1994 छपरा के डोरीगंज में कचरे के ढ़ेर पर पड़े एक विक्षिप्त पर किसी सज्जन की नजर पड़ी। वो उसे चाय पीलाने की गरज से फुटपाथ की दुकान पर अपने संग लेते आया। संयोग देखिए उस वक्त भोजपुर के दो सहोदर भाई कमलेश राम और सुदामा राम वहाँ मौजूद थे।

उनकी नजर जब उस विक्षिप्त पर पड़ी तो वो चौके और कहा ” अरे ये तो हमारे गाँव के वशिष्ठ बाबू हैं।” उन्होंने ही वहाँ मौजूद लोगों को बताया इनका नाम देश-दुनिया में है। ये महान गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह हैं। खबर जंगल की आग की तरह पूरे सूबे में फैली। अखबारों के माध्यम से जैसे ही ये खबर तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव को लगा वो खुद वशिष्ठ बाबू के घर गए उनके आंगन में बिछे खाट पर बैठे उस वक्त पास की चौकी पर वशिष्ठ बाबू पेट के बल लेटे हुए थे। लालू को एक महान विभूति की ऐसी हालत देखी नहीं गई।

उन्होंने घोषणा की कि चाहे बिहार को बंधक ही क्यों न रखना पड़े, इनका इलाज विदेश तक कराएंगे। लालू प्रसाद ने 1994 में वशिष्ठ बाबू के बेहतर इलाज के लिए बेंगलूरु के निमहंस अस्पताल में सरकारी खर्चे पर भर्ती कराया। 1997 तक उनका इलाज चला। स्थिति में सुधार हुआ तो वे अपने गाँव बसंतपुर लौट आये। तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू यादव ने वशिष्ठ बाबू एवं उनके परिजनों की माली हालत सुधारने के लिए उनके भाई-भतीजे को सरकारी नौकरी दी। इतना ही नहीं जिन दो भाइयों कमलेश राम और सुदामा राम ने वशिष्ठ बाबू को विक्षिप्त हालत में खोजा था उन्हें भी लालू ने आपूर्ति विभाग में नौकरी दी और हमारे सुशासन बाबू ने उनकी मौत के बाद उनकी लाश को घर ले जाने के लिए एम्बुलेंस तक उपलब्ध नहीं कराया।

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