प्रवासी मजदूरों के कारण 2014 के चुनाव में हारे थे नीतीश, लाकडाउन में चुन-चुनकर ले रहे हैं ब’दला

मैं समय हूं बिहार के निर्माता श्री बाबू के कार्यकाल को भी देखा हूं, लालू प्रसाद के समाजिक न्याय वाली सरकार को भी देखा है। और 2005 से नीतीश कुमार के कार्यकाल को भी देख रहा हूं ।
श्री बाबू और अनुग्रह नारायण सिंह के बीच के सियासत का भी सांक्षी रहा हूं ।और लालू प्रसाद के समाजिक न्याय के उस संघर्ष का भी सांक्षी रहा हूं जब शरद यादव ,जार्ज और नीतीश लालू प्रसाद को छोड़कर समता पार्टी बनाये थे ।

मैं नीतीश के उस राजनीति का भी सांक्षी हूं जब नीतीश, जार्ज और दिग्विजय सिंह को किनारे करने के लिए शरद यादव का कैसे इस्तेमाल किये, मैं उस घड़ी का भी सांक्षी हूं जब बांका लोकसभा क्षेत्र से दिग्विजय सिंह चुनाव जीत गये थे और जीत से नीतीश इतने मर्माहत थे कि बिहार में लोकसभा चुनाव में एनडीए कि बड़ी जीत के बावजूद मीडिया से बात तक नहीं किये थे ।

मैं उस दौर का भी सांक्षी हूं जब नीतीश शरद यादव को दूध की मक्खी कि तरह बाहर फेक दिया ,लेकिन ये सब राजनीति में चलता है सियासत तो इसी को कहते हैं,कलयुग है ना आप धर्म राज युधिष्ठिर कहां ये लायेंगे । लेकिन नीतीश कुमार अपने राज्य के बच्चों और मजदूर के साथ जो व्यवहार कर रहे हैं वो समझ से पड़े हैं, आज तक ऐसा मैंने नहीं देखा जो कोई शासक अपनी प्रजा को उसके किये का सजा दे रहा हो ।

हलाकि मैं नीतीश के इस कदम को राज धर्म के विरुद्ध मानता हूं लेकिन ये भी सच है कि ये वही लोग है जो राष्ट्रीय फलक पर आजादी के बाद, पहली बार बिहार को देश का नेतृत्व मिलने कि सम्भावना को पूरी तौर पर क्षीण कर दिया गया.

जी है मैं बात कर रहा हूं 2014 के लोकसभा चुनाव का, नीतीश कुमार रेल मंत्री के रुप में और बिहार के सीएम के रुप में 2014 तक बिहार के विकास के लिए जो काम किया औऱ साथ ही जिस तरीके से बिहार में सुशासन को स्थापित किया, आप नीतीश कि लाख आलोचना कर ले लेकिन वो काल बिहार के राजनैतिक,आर्थिक और सांस्कृतिक रुप से इतिहास के पन्नों में आजादी के बाद के कालखंड में स्वर्णिम काल के रुप में लिखा जायेगा ।

2014 के लोकसभा चुनाव में अगर बिहार की जनता नीतीश के साथ खड़ी रहती तो आज देश विपक्ष विहीन नहीं रहता, देश कि राजनैतिक फिजा कुछ और होती ।लेकिन काल को ये मंज़ूर नहीं था ,मुझे तो याद है आप शायद भूल गये होगे, किस तरीके से यही प्रवासी मजदूर गुजरात के विकास का माँडल लेकर गाँव गाँव में घूम कर कह रहे थे कि ये चुनाव देश का है जिसके नेता मोदी हैं जिन्होंने गुजरात को स्वर्ग बना दिया ,ये चुनाव नीतीश कुमार का नहीं है जब नीतीश कुमार का चुनाव आयेगा तब आप उनको वोट करिएगा ।

उस समय यही कोटा वाले प्रवासी मज़दूरों के पीछे खड़े थे और गांव गांव घूम कर मोदी का प्रचार कर रहे थे, परिणाम क्या हुआ छह सीट को छोड़ दे तो सारे सीटों पर जदयू के उम्मीदवारों का जमानत जप्त हो गया और मोदी को झंझारपुर जैसे सीट जहां कभी बीजेपी लोकसभा औऱ विधानसभा का चुनाव नहीं लड़ा था जब से जनसंघ और भाजपा बनी तब भी लेकिन वो भी सीट बीजेपी जीत गया ।

ऐसा भी नहीं है कि जदयू के हार के लिए नीतीश कि राजनैतिक शैली जिम्मेवार नहीं रही फिर भी बिहार के वोटर ने जिस तरह का आचरण दिखाया ,सजा के वो हक़दार तो हैं ये कह कर कि प्रजा ईश्वर के समान है सिर्फ इसी नीति के सहारे इन्हें माफी नहीं दी जा सकती है ।

12 से 15 सीट भी नीतीश को 2014 के लोकसभा चुनाव में आ जाता तो आज बिहार कि कौन कहे देश कि राजनैतिक फिजा बदल गयी रहती, सारा विपक्ष नीतीश के साथ खड़ा रहता औऱ फिर देश का नेतृत्व कौन करेगा इसके विकल्प कि बात नहीं होती।

खैर मैं तो समय हूं क्या हुआ, किसके कारण हुआ ,इसकी विवेचना तो मैं नहीं कर सकता ।
लेकिन इतिहास में जब कभी बिहार कि बात आयेगी तो इस काल कि चर्चा जरुर होगी हाहहाहाहा लेकिन नीतीश जैसा शासक मैंने नहीं देखा जो जनता को भी उसके गलती का सजा देने से चुका नहीं है। लेकिन ये राजधर्म नहीं है ।

-SANTOSH SINGH, EDITOR, KASHISH NEWS

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