गुनगुन थानवी के नाम खुला पत्र, लोकप्रियता पाने के लिए बाबा नागार्जुन को बदनाम मत करो

गुनगुन थानवी जी,

आप जिस मानसिक स्थिति में हैं, उसमें संभव है कि जो मैं अभी कहने जा रहा हूँ, वह वर्तमान परिस्थिति में आपके समझ में नहीं आए। बावजूद इसके, मैं प्रयास करता हूँ।

अपने जो जनकवि यात्री/नागार्जुन पर यौ/न उत्पीड़न के संगीन आरोप लगाए हैं उसके पीछे आपकी मंशा क्या है वह आप ही जानती होंगीं, मगर किसी के मृत्यु के 21 वर्ष बाद उसपर इतने संगीन आरोप लगाना क्या नैतिकता के विरुद्ध नहीं है? कई लोगों ने इस विषय पर आपकी लंबी चुप्पी पर सवाल उठाए हैं और जिस वक्त की आप बात कर रही हैं उस समय मे बाबा की सेहत की बात भी की है। मैं इन तर्कों से सहमत होते हुए एक और बात की ओर आपका ध्यान आकृष्ट करना चाहूंगा।

बाबा का सार्वजनिक जीवन बहुत लंबा रहा। इस दौरान वे कितनो के घर गए। मगर इस लंबे अंतराल में किसी और ने इस तरह का आरोप उनपर क्यों नहीं लगाया? या फिर ऐसा है कि बाबा वैसे तो सब के साथ सदाचारी थे, बस एक आपके साथ व्यभिचारी हो गए? या फिर आप यह कहना चाहती हैं कि इतने दिनों में केवल आप ही एक साहसी अवतरित हुई हैं और बांकी किसी में ऐसा साहस हुआ ही नहीं?

मोहतरमा, लोकप्रियता प्राप्त करने के और भी तरीके हैं, उनका प्रयोग कोजिये। यूं ही किसी पर बेवजह कीचड़ मत उछालिये। वह भी तब जब आरोपी अपने पक्ष को रखने के लिए मौजूद ही नहीं है। अगर आपके साथ सचमुच कुछ गलत हुआ था तो आपको बहुत पहले इस बात का खुलासा कर देना चाहिए था। अगर बाबा के विराट व्यक्तित्व का डर था, तो भी उनकी मृ/त्यु 21 साल पहले हो गई, फिर भी इतनी देरी क्यों?

एक और बात कहना चाहूंगा आपसे। आपने अपने पोस्ट में उक्त ‘घटना’ के कारण अपने डर की बात की है। आज मैं कहता हूँ कि मैं डर गया हूँ। मेरे साथ इस देश के सारे पुरुष डर गए हैं। और वह डर यह है कि हम कितनी भी साफ-सुथरी जीवन बिता लें, मगर हम अपने मृ/त्यु के बाद भी सुरक्षित नहीं है। रित्रहनन करने की शायद कोई समय सीमा नहीं होती!

मौजूदा समय में ऐसे मामलों में सहानुभूति स्त्रियों को ही मिलती है, और साधारणतः यह सही भी है। हालात ही ऐसे हैं। स्त्रियों की सुरक्षा हमारी नैतिक उत्तरदायित्व है। मगर कृपया इस बात का गलत फायदा मत उठाइये। स्पष्ट कर दूं कि आपका ‘बोलना’ गलत नहीं है, गलत है जिसपर आरोप लगाया है उसके अनुपस्थिति में ‘असमय बोलना’, जो कि एक नितांत गैरजिम्मेदाराना और अनैतिक हरकत है।

देखियेगा, निराधार आरोपों के वजह से कहीं ‘शेर आया, शेर आया’ वाली स्थिति ना हो जाए।

अत्यंत चिंतित,
मनोज शाण्डिल्य

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