साइकिल पंचर बनाने वाले का बेटा बना जज साहब, मां करती है कपड़ा सिलाई, रिजल्ट सुन रो पड़े दोनों
पिता बनाते हैं पंचर, मां ने सिलाई कर पढ़ाया, बेटे ने पहले ही प्रयास में ‘जज’ बन पूरी कर दी मुराद : आज जो कहानी हम आपको सुनाने जा रहे हैं उसे पढ़ने के बाद आप नासिर किया सोचने पर विवश हो जाएंगे बल्कि आप रो पड़ेंगे. आज की कहानी का जो हीरो है वह जज साहब बना है. उसका जन्म गरीब परिवार में हुआ था और उसके पिता साइकिल पंक्चर बनाने का काम करते हैं. मां घर घर से कपड़ा लाती है और सिलाई कढ़ाई का काम करती है. मां-बाप दोनों ने मिलकर किसी तरह बेटे को पढ़ाने का सपना देखा. बेटा भी जी जान लगाकर पढ़ता रहा और आखिरकार वह दिन आया जिस दिन दोनों मां बाप का सपना साकार हुआ.

इंडिया डॉट कॉम की खबर के अनुसार सिनेमा केवल मनोरंजन के लिए नहीं है, इससे हर तरह की प्रेरणा ली जा सकती है. कुछ लोग सिनेमा देख जुर्म करना सीख जाते हैं तो कुछ लोग इससे प्रेरणा प्राप्त कर अपनी और अपनों की किस्मत संवार देते हैं. उत्तर प्रदेश के प्रयागराज की अफसाना उन में से हैं जिन्होंने सिनेमा से प्रेरणा लेकर तंगहाली में भी अपने बच्चों को पढ़ाया. आज अफसाना के एक बच्चे ने उनकी मेहनत का मूल्य चुका दिया है.
दरअसल अफसाना ने राजेश खन्ना की 1991 में आई फिल्म घर-परिवार देखी. इस फिल्म में एक अभिनेत्री लोगों के कपड़े सिल कर अपने बच्चों को पढ़ाती है. इस फिल्म का उन पर गहरा असर पड़ा. घर के हालत ऐसे थे कि साईकिल रिपेयरिंग से उनके पति परिवार का खर्च मुश्किल से चला पा रहे थे. ऐसे में बच्चों को पढ़ाना बेहद मुश्किल था लेकिन फिल्म देख कर अफसाना ने ये सोच लिया था कि वो भी सिलाई करेंगी और अपने बच्चों को पढ़ाएंगी.

अफसाना की इस सोच ने काम किया और उनका समर्पण काम आया. आज उनके बेटे ने उनकी मेहनत का फल दिया है और पहले ही प्रयास में PCS-J की परीक्षा पास कर ली है. रिजल्ट के बाद जब बेटे ने मां से कहा कि, ‘मां, मैं जज बन गया’ तब उन्हें लगा कि उनकी मेहनत आज रंग लाई है. अफसाना की आंखों में खुशी के आंसू थे क्योंकि उन्होंने अपनी सोच को हकीकत होते देख लिया.
दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के अनुसार अफसाना, उनके पति शहजाद अहमद और तीन बच्चे प्रयागराज जिला मुख्यालय से करीब 30 किमी दूरी पर बरई हरख गांव में रहता है. घर के बगल में ही शहजाद के पिता ने 1985 में साईकिल रिपेयरिंग की दुकान शुरू की थी. शहजाद आज इसी दुकान से अपने परिवार का भरण-पोषण कर रहे हैं. पढ़ाई में उनका मन नहीं लगता था और वह 10वीं में फेल हो गए. जिसके बाद उन्होंने पिता से साईकिल रिपेयरिंग का काम सीखा और दुकान पर बैठने लगे. कुछ वक्त के बाद बगल में ही छोटे भाई को जनरल स्टोर की दुकान खुलवा दी. अब दोनों भाई दिनभर अपनी दुकान पर काम करने लगे.
पति की साईकिल रिपेयरिंग की दुकान से परिवार का खर्च ही मुश्किल से चलता था. ऐसे में तीन बच्चों की पढ़ाई का खर्च निकालना मुश्किल था. फिर शहजाद की पत्नी अफसाना ने पैसे इकट्ठा करके किसी तरह सिलाई मशीन खरीदी और गांव की ही महिलाओं के कपड़े सिल बच्चों की पढ़ाई का जिम्मा उठाया. उनके बड़े बेटे ने पढ़ाई करके प्राइवेट नौकरी ज्वॉइन कर ली. उनके दूसरे नंबर के बेटे अहद अहमद ने 8वीं के बाद ये कहा कि उसे पढ़ाई के लिए प्रयागराज जाना है. घर के हालत इतने अच्छे ना होने के बावजूद अफसाना ने पढ़ाई का महत्व समझते उए उसे प्रयागराज भेजा.

यहीं से अहद ने 12वीं तक की पढ़ाई के बाद 2014 में इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में BA LLB का इंट्रेंस दिया. उनके नंबर सिलेक्शन लायक आए लेकिन 38 हजार की सालाना फीस का वो इंतजाम नहीं कर पाए. हालांकि बाद में माता-पिता ने कर्ज लेकर बेटे की पढ़ाई पूरी कराई. BA LLB करने के बाद उन्होंने एक सीनियर के जरिए इलाहाबाद हाईकोर्ट में थोड़ी बहुत प्रैक्टिस शुरू की लेकिन कोविड कोर्ट बंद होने के बाद प्रैक्टिस भी बंद हो गई.
इसके बाद से ही अहद ने घर पर रहकर पीसीएस-जे की तैयारी शुरू कर दी. पैसे की तंगी के कारण उन्होंने कोचिंग भी नहीं ली. उन्होंने बताया कि, “उनकी प्री परीक्षा बहुत अच्छी गई. जिसके बाद उन्होंने मेंस की परीक्षा तैयारी शुरू कर दी. अपनी मेहनत के दम पर उन्होंने मेंस परीक्षा भी निकाल ली. अब उन्हें इंटरव्यू राउंड पार करना था. जब वह इंटरव्यू देकर बाहर निकले तो संतुष्ट नहीं थे क्योंकि वह कुछ सवालों में असहज हो गए थे. उन्हें लगा कि यहां अपना बेहतर नहीं दे पाए.
30 अगस्त की शाम तक उनके मन में पास होने को लेकर दुविधा थी लेकिन जब यूपी लोक सेवा आयोग ने रिजल्ट जारी किया तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा. पहले अहद ने रिजल्ट नहीं देखा क्योंकि उन्होंने तय किया था कि जब पास हो जाएंगे तो कोई न कोई दोस्त फोन जरूर करेगा. हुआ भी कुछ ऐसा ही. एक दोस्त ने फोन किया और बताया कि वह 157वीं रैंक के साथ पास हो गए हैं.
पहले उन्हें इस बात पर यकीन नहीं हुआ लेकिन जब वो अपने परिणाम को लेकर सुनिश्चित होगए तब उन्होंने सबसे पहले अपनी मां के पास पहुंच कर उन्हें कहा कि, ‘मां मैं जज बन गया.’ मां ने अहद को गले से लगा लिया. आंखों से आंसू बह निकले. उन्हें उनकी वर्षों की तपस्या का सुखद फल मिल गया था
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