चिराग ने पिता को कंधा दिया, ‘रामविलास अमर रहें’ के नारे लगे; दीघा घाट पर अंतिम संस्कार किया जाएगा

लोकजनशक्ति पार्टी (लोजपा) के संस्थापक रहे रामविलास पासवान की अंतिम यात्रा उनके पटना वाले घर से निकल चुकी है। दीघा घाट पर राजकीय सम्मान से अंतिम संस्कार किया जाएगा। पासवान की अंतिम यात्रा शुरू होने से पहले एसके पुरी स्थित उनके आवास पर माहौल काफी भावुक हो गया था। बेटे चिराग पासवान ने जैसे ही पिता को कंधा दिया, लोगों की आंखें नम हो गईं। ‘रामविलास अमर रहें’ के नारे लगे। पार्थिव शरीर को सेना के वाहन पर रखा गया।

शुक्रवार शाम 7.55 बजे पासवान का पार्थिव शरीर पटना पहुंचा था। एयरपोर्ट पर ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने रामविलास को श्रद्धांजलि दी। नीतीश की आंखों में नमी थी और चिराग पासवान से उनकी आंखों-आंखों में ही बात हुई। रामविलास के बेटे और लोजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग ने पिछले दिनों नीतीश पर कई बार तीखे हमले किए थे।

रामविलास की बेटी और दामाद को पटना एयरपोर्ट पर अंदर जाने से रोका गया, तो हंगामा हो गया। बेटी आशा और दामाद अनिल कुमार साधु ने आरोप लगाया कि सुरक्षाकर्मी उन्हें अंदर नहीं जाने दे रहे थे। इस दौरान वहां पहुंचे उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी की कार को भी अनिल ने रोक दिया। सुरक्षाकर्मियों की काफी कोशिश के बाद अनिल कार के सामने से हटे।

शुक्रवार को पासवान का पार्थिव शरीर दिल्ली में उनके 12 जनपथ वाले सरकारी घर पर अंतिम दर्शनों के लिए रखा गया था। वहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने श्रद्धांजलि दी। मोदी के साथ भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा और केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद भी थे। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और कांग्रेस नेता राहुल गांधी भी पासवान को श्रद्धांजलि देने पहुंचे थे।

रामविलास पासवान का 74 साल की उम्र में गुरुवार को दिल्ली में निधन हो गया। वे पिछले कुछ महीनों से बीमार थे और 11 सितंबर को अस्पताल में भर्ती हुए थे। एम्स में 2 अक्टूबर की रात उनकी हार्ट सर्जरी हुई थी। इससे पहले भी एक बायपास सर्जरी हो चुकी थी।

1969 में पहली बार विधायक बने पासवान अपने साथ के नेताओं, लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार से सीनियर थे। 1975 में जब आपातकाल की घोषणा हुई तो पासवान को गिरफ्तार कर लिया गया, 1977 में उन्होंने जनता पार्टी की सदस्यता ली और हाजीपुर संसदीय क्षेत्र से जीते। तब सबसे बड़े मार्जिन से चुनाव जीतने का रिकॉर्ड पासवान के नाम ही दर्ज हुआ।

2009 के चुनाव में पासवान हाजीपुर की अपनी सीट हार गए थे। तब उन्होंने NDA से नाता तोड़ राजद से गठजोड़ किया था। चुनाव हारने के बाद राजद की मदद से वे राज्यसभा पहुंच गए और बाद में फिर NDA का हिस्सा बन गए। 2000 में उन्होंने अपनी लोकजनशक्ति पार्टी (लोजपा) बनाई। पासवान ने अपने राजनीतिक जीवन में 11 बार चुनाव लड़ा और 9 बार जीते। 2019 का लोकसभा चुनाव उन्होंने नहीं लड़ा, वे राज्यसभा सदस्य बने। अभी मोदी सरकार में खाद्य एवं उपभोक्ता मामलों के मंत्री थे।

पासवान के नाम कई उपलब्धियां हैं। हाजीपुर में रेलवे का जोनल ऑफिस उन्हीं की देन है। अंबेडकर जयंती के दिन राष्ट्रीय अवकाश की घोषणा पासवान की पहल पर ही हुई थी। राजनीति में बाबा साहब, जेपी, राजनारायण को अपना आदर्श मानने वाले पासवान ने राजनीति में कभी पीछे पलट कर नहीं देखा। वे मूल रूप से समाजवादी बैकग्राउंड के नेता थे।

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