उपर आसमान नीचे पासवान, रिकार्ड वोटों से जीतने का रिकार्ड रामविलास के नाम, 1969 लड़ा पहला चुनाव

राम विलास पासवान ने 1989 लोकसभा चुनाव में रिकॉर्ड जीत दर्ज की थी. जनता दल से लड़ते हुए उनको 6,15,129 लाख वोट मिले थे. उन्होंने कांग्रेस के महाबीर पासवान को 5 लाख वोट से हराया था. महाबीर पासवान को 1,10,681 वोट मिले थे. इससे पहले भी वो रिकॉर्ज जीत दर्ज कर चुके हैं. उन्होंने 1977 में भारतीय लोक दल के टिकट से चुनाव लड़ा था और 4.2 लाख वोट से जीत दर्ज की थी. वह फिलहाल लोजपा के अध्यक्ष हैं और मोदी सरकार में केंद्रीय मंत्री हैं.

केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान का गुरुवार को दिल्ली में नि/धन हो गया। वे 74 साल के थे। वे पिछले कुछ दिनों से बीमार थे और दिल्ली के एस्कॉर्ट हॉस्पिटल में भर्ती थे। उनके बेटे चिराग पासवान ने ट्वीट कर इस बात की जानकारी दी।रामविलास पासवान पिछले करीब एक महीने से अस्पताल में भर्ती थे। एम्स में 2 अक्टूबर की रात को उनकी हार्ट सर्जरी की गई थी। यह पासवान की दूसरी हार्ट सर्जरी थी। इससे पहले भी उनकी एक बायपास सर्जरी हो चुकी थी।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने चिराग पासवान को फोन कर केंद्रीय मंत्री के स्वास्थ्य के बारे में जानकारी ली थी।

रामविलास पासवान ने खगड़िया के काफी दुरुह इलाके शहरबन्नी से निकलकर दिल्ली की सत्ता तक का सफर अपने संघर्ष के बूते तय किया। इसके बाद कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। लिहाजा वह पांच दशक तक बिहार और देश की राजनीति में छाये रहे। इस दौरान दो बार उन्होंने लोकसभा चुनाव में सर्वाधिक मतों से जीतने का विश्व रिकॉर्ड भी कायम किया।

देश के छह प्रधानमंत्रियों की कैबिनेट में मंत्री रहे। राजनीति की नब्ज पर उनकी पकड़ इस कदर रही है कि वह वोट का एक निश्चित को इधर से उधर ट्रांसफर करा सकते हैं। यही कारण है कि वह राजनीति में हमेशा प्रभावी भूमिका निभाते रहे। इनके राजनीतिक कौशल का ही प्रभाव है कि उन्हें यूपीए में शामिल करने के लिए सोनिया गांधी खुद चलकर उनके आवास पर गई थीं।

‘ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर’ इस कहावत को चरितार्थ करने वाले मृदुभाषी पासवान छह प्रधानमंत्रियों के साथ काम कर चुके हैं। 1996 से 2015 तक केन्द्र में सरकार बनाने वाले सभी राष्ट्रीय गठबंधन चाहे यूपीए हो या एनडीए, का वह हिस्सा बने। इसी कारण लालू प्रसाद ने उनको ‘मौसम विज्ञानी’ का नाम दिया था। अब तो वह खुद भी स्वीकारते हैं कि वह जहां रहते हैं सरकार उन्हीं की बनती है। मतलब राजीतिक मौसम का पुर्वानुमान लगाने में वे माहिर हैं। वे समाजवादी पृष्ठभूमि के बड़े नेताओं में एक हैं। देशभर में उनकी पहचान राष्ट्रीय नेता के रूप में है। हाजीपुर लोकसभा क्षेत्र से वह कई बार चुनाव जीते हैं, लेकिन दो बार उन्होंने सबसे अधिक वोट से जीतने का रिकॉर्ड बनाया।

सत्ता की चाबी : वर्ष 2005 में बिहार की सत्ता की चाबी उनके हाथ लग गई। उस समय उनकी पार्टी के 29 विधायक जीतकर आए थे। किसी दल को बहुमत नहीं होने के कारण सरकार नहीं बन रही थी। श्री पासवान अगर उस समय नीतीश कुमार के साथ या लालू प्रसाद के साथ जाते तो प्रदेश में सरकार बन सकती थी। मगर उन्होंने शर्त रख दी कि जो पार्टी अल्पसंख्यक को मुख्यमंत्री बनाएगी उसी का साथ वह देंगे। उनकी इस शर्त पर कोई खरा नहीं उतरा और दोबारा चुनाव में जाना पड़ा। बाद में उसी साल नवम्बर में हुए चुनाव में नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए को बहुमत मिला और सरकार बनाई।

2009 में हार गए थे लोस चुनाव : वह 2004 के लोकसभा चुनाव जीते, पर 2009 में हार गए। 2009 में पासवान ने लालू प्रसाद की पार्टी राजद के साथ गठबंधन किया। पूर्व गठबंधन सहयोगी कांग्रेस को छोड़ दिया। 33 वर्षों में पहली बार वे हाजीपुर से जनता दल के रामसुंदर दास से चुनाव हार गए। उनकी पार्टी लोजपा 15वीं लोकसभा में कोई भी सीट जीतने में सफल नहीं हो सकी। साथ ही उनके गठबंधन के साथी और उनकी पार्टी भी अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाई और 4 सीटों पर ही सिमट गई। उस समय लालू के सहयोग से वह राज्यसभा में पहुंच गये। बाद में हाजीपुर क्षेत्र से 2014 के चुनाव में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में वह फिर से एनडीए में आ गए और संसद में पहुंकर मंत्री बने। उसी चुनाव में बेटा चिराग भी पहली बार जमुई से सांसद बना।

1983 में बनाई दलित सेना : वर्ष 1975 में जब भारत में आपातकाल की घोषणा की गई तो उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। 1977 में रिहा होने पर वे जनता पार्टी के सदस्य बन गए और पहली बार इसके टिकट पर हाजीपुर से संसद पहुंचे और उन्होंने सबसे अधिक अंतर से चुनाव जीतने का विश्व रिकॉर्ड अपने नाम किया। वे 1980 और 1984 में हाजीपुर निर्वाचन क्षेत्र से 7वीं लोकसभा के लिए चुने गए। 1983 में उन्होंने दलित मुक्ति और कल्याण के लिए एक संगठन दलित सेना की स्थापना की। 1989 में लोकसभा के लिए फिर से चुने गए और उन्हें विश्वनाथ प्रताप सिंह सरकार में केंद्रीय श्रम और कल्याण मंत्री बने। उसी समय मंडल आयोग की सिफारिशें लागू की गईं। 1996 में उन्होंने लोकसभा में सत्तारूढ़ गठबंधन का भी नेतृत्व किया, क्योंकि तत्कालीन प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा राज्यसभा के सदस्य थे। उसी साल वे पहली बार केंद्रीय रेल मंत्री बने। उन्होंने 1998 तक उस पद को संभाला। इसके बाद वे अक्टूबर 1999 से सितंबर 2001 तक केंद्रीय संचार मंत्री रहे, जब उन्हें कोयला मंत्रालय में स्थानांतरित किया गया और वे इस पद पर अप्रैल 2002 तक बने रहे। मगर इसी बीच 2000 में लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) बनाने के लिए वे जनता दल से अलग हो गए। 2004 के लोकसभा चुनावों के बाद पासवान यूपीए में शामिल हो गए और यूपीए सरकार में उन्हें रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय और इस्पात मंत्रालय में केंद्रीय मंत्री बनाया गया।

पहली बार 1969 में लड़े चुनाव : पहली बार वे 1969 में एक आरक्षित निर्वाचन क्षेत्र से संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के सदस्य के रूप में बिहार विधानसभा पहुंचे। 1974 में राज नारायण और जेपी के प्रबल अनुयायी के रूप में लोकदल के महासचिव बने। वे व्यक्तिगत रूप से राज नारायण, कर्पूरी ठाकुर और सत्येंद्र नारायण सिन्हा जैसे आपातकाल के प्रमुख नेताओं के करीबी रहे हैं।

व्यक्तिगत जीवन : रामविलास पासवान का जन्म 5 जुलाई 1946 में हुआ था। उनका पैतृक गांव खगड़िया जिले के अलौली स्थित शहरबन्नी गांव है। उनकी शादी 1960 में राजकुमारी देवी के साथ हुई थी। बाद में 1981 में उस पत्नी को तलाक देकर दूसरी शादी 1983 में रीना शर्मा से की। उनकी दोनों पत्नियों से तीन पुत्रियां और एक पुत्र है। उन्होंने कोसी कॉलेज खगड़िया और पटना यूनिवर्सिटी में पढ़ाई की। पटना विश्वविद्यालय से उन्होंने एमए और लॉ ग्रेजुएट की डिग्री ली। वह नॉनवेज पसंद करते हैं। मछली उनकी पहली पसंद है।

बड़े फैसले : हाजीपुर में रेलवे का जोनल कार्यालय खुलवाए , केन्द्र में अंबेडकर जयं ती पर छुट्टी घोषित कराई

केन्द्रीय मंत्री : 1989 में पहली बार केन्द्रीय श्रम मंत्री , 1996 में रेल मंत्री , 1999 में संचार मंत्री , 2002 में कोयला मंत्री , 2014 में खाद्य एवं उपभोक्ता संरक्षण मंत्री, 2019 में खाद्य एवं उपभोक्ता संरक्षण मंत्री

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