सीतामढ़ी में तड़प-तड़प कर मरा मरीज, लेकिन नहीं हुई कोरोना जांच

Patna:कोरोना के कहर के शिकार बन रहे लोगों को बिहार में भगवान भरोसे छोड़ चुकी सरकार की बेरहमी का एक और मामला सामने आया है. सीतामढ़ी में कोरोना का संदिग्ध मरीज तड़प तड़प कर मर गया लेकिन उसकी जांच नहीं हुई. हालत ये हुई कि उसकी मौत के बाद परिजनों को लाश के साथ डीएम ऑफिस में धरना देना पड़ा. लेकिन सरकारी पदाधिकारी ताबडतोड़ झूठ बोलते रहे.

तड़प-तड़प कर मरा मरीज, नहीं हुई जांच

घटना के बारे में मिल रही जानकारी के मुताबिक सीतामढ़ी के डुमरा प्रखंड के बसवरिया चौक निवासी 31 साल के राजकुमार साह बीमार थे. पिछले कई दिनों से उन्हें बुखार, सर्दी-खांसी और सांस लेने में तकलीफ की शिकायत थी. मृतक के परिजनों ने बताया कि राजकुमार साह बीमार हुए तो वे उन्हें लेकर एक निजी अस्पताल में गये. निजी अस्पताल के डॉक्टर ने जब कोरोना के लक्षण देखा तो सदर अस्पताल जाने की सलाह दी जिसके बाद उन्हें सदर अस्पताल ले जाया गया.

मृतक के परिजनों के मुताबिक जब वे बीमार राजकुमार साह को सदर अस्पताल ले गये तो वहां के डॉक्टर ने पर्ची पर कोविड-19 जांच के लिए लिखा मगर साथ में ये भी कह दिया कि बड़े अधिकारियों की मंजूरी मिलने के बाद ही कोरोना की जांच होगी. मरीज के परिजनों को बडे अधिकारियों से मंजूरी लेकर आने को कहा गया. लाचार परिजन बड़े अधिकारियों के पास चक्कर लगाते रहे लेकिन किसी ने कुछ नहीं सुना. हार कर उन्होंने बाहर से दवा खरीदकर मरीज को खिलाया. इससे बुखार और सर्दी तो ठीक हो गई लेकिन खांसी जारी रही. शुक्रवार रात में खांसी और तेज हो गई और सांस लेने में भी दिक्कत हो रही थी. परिजन मरीज को लेकर सदर अस्पताल गए जहां उन्हें मृत घोषित कर दिया गया.

शव के साथ डीएम ऑफिस में धरना

राज कुमार साह की मौत के बाद भी परिजन उनकी कोरोना जांच कराने की मांग करते रहे लेकिन किसी ने कुछ नहीं सुना. सदर अस्पताल में कोई बात करने तक को तैयार नहीं था. लाचार होकर परिजनों ने शव को एंबुलेंस पर लादा और डीएम ऑफिस पहुंच गये. वे शव के साथ डीएम ऑफिस के सामने धरना पर बैठ गये. इसके बाद वहां पहुंची पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों ने उन्हें मुआवजे का आश्वासन देकर हटाया और शव का दाह-संस्कार करा दिया. लेकिन मौत के बाद भी कोरोना की जांच नहीं हुई.

लगातार झूठ बोलते रहे सरकारी अधिकारी

राज कुमार साह की मौत के बाद जब उनके परिजन डीएम ऑफिस के सामने धरना पर बैठे तो प्रशासन में खलबली मची. जिला प्रशासन की ओर से सफाई देने के लिए जिला जनसंपर्क पदाधिकारी परिमल कुमार को भेजा गया. परिमल कुमार ने मीडिया के सामने कहा कि कोरोना से मौत की अफवाह फैलायी जा रही है. मरीज को कभी सदर अस्पताल में लाया ही नहीं गया. मौत के बाद शव के साथ परिजन अस्पताल पहुंचे थे. जिला प्रशासन ने यहां तक कह दिया कि जब जांच नहीं हुई तो कोरोना से मौत की बात कैसे कही जा सकती है. प्रशासन लगातार इस बात से इंकार करता रहा कि मरीज का कभी सदर अस्पताल में इलाज भी हुआ था.

दूसरी ओर मृतक के पिता दुखा साह ने सदर अस्पताल में बेटे के इलाज की वह पर्ची दिखाई जिसपर राज्य स्वास्थ्य समिति, बिहार लिखा था. मरीज की पंजीकरण संख्या 60820ए23119 और टोकन नंबर 23 है. 17 जुलाई को मरीज को सदर अस्पताल में देखा गया था. पर्ची पर डॉ. रितेश कुमार तरुण का नाम अंकित है. उधर अस्पताल के डॉक्टर रितेश तरुण ने इलाज करने और अपने नाम वाली पर्ची की बात तो स्वीकार की. लेकिन साथ में ये भी जोड़ दिया कि परची पर जो भी लिखा गया है वो उन्होंने नहीं लिखा था.

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