जनगणना करने का अधिकार सिर्फ केन्द्र सरकार के पास है…हाई कोर्ट में सुनवाई के दौरान आखिर हुआ क्या…

पटना 5 मई 2023 : जाति जनगणना पर पटना हाई कोर्ट द्वारा अंतरिम रोक लगा दी गई है. पटना हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस ने बिहार सरकार को साफ आदेश देते हुए कहा है कि तुरंत इस पर रोक लगाया जाए और इस बात विशेष ध्यान दिया जाए कि जो डांटा अब तक कलेक्ट हुआ है उसे किसी के साथ साझा ना किया जाए… फैसले के बाद लोगों के मन में सवाल उठने लगे हैं कि आखिर कार पटना हाई कोर्ट में क्या हुआ. बिहार सरकार के वकील ने क्या कहा और याचिकाकर्ता के वकील ने क्या कहा. सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस क्या क्या बोले… आइए आपको डिटेल में बताते हैं…

कोर्ट ने सर्वे और जनगणना में अंतर बताते हुए कहा कि सर्वे में किसी खास का डाटा इकट्ठा कर उसका विश्लेषण किया जाता है, जबकि जनगणना में प्रत्येक व्यक्ति का विवरण इकट्ठा किया जाता है। कोर्ट ने कहा कि जब विधायिका के पास कानून बनाने की शक्ति है तो फिर क्यों दोनों सदनों से जाति आधारित सर्वे प्रस्ताव को पारित करा कैबिनेट से मंजूरी ली गई। विधायिका को जाति आधारित सर्वे करने के लिए सीधे कानून बना देना चाहिये था।

कोर्ट ने कहा कि जाति आधारित सर्वे एक प्रकार की जनगणना है। जनगणना करने का अधिकार सिर्फ केन्द्र सरकार के पास है। राज्य सरकार जाति आधारित सर्वे नहीं करा सकती है। कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि यह मौलिक अधिकार से जुड़ा मामला है। बता दें कि सात जनवरी से जातीय गणना शुरू हुई थी।

महाधिवक्ता पीके शाही ने आवेदकों की ओर से उठाये गए सभी सवालों का जवाब पूरी मजबूती से कोर्ट में रखा। उन्होंने कहा कि अभी तक 80 प्रतिशत काम पूरा हो गया है। इसके लिए आकस्मिक निधि से एक पैसा भी नहीं निकाला गया है। इसके लिए बजाप्ता बजटीय प्रावधान किया गया है। उन्होंने कहा कि प्रथम दृष्टया यह कोई मामला बनता ही नहीं है कि आवेदकों को अंतरिम आदेश दिया जाए। राज्य सरकार गहन विचार के बाद जाति सर्वेक्षण करा रही है। उन्होंने गोपनीयता भंग होने के सवाल पर जवाब देते हुए कहा कि जाति का खुलासा करना गोपनीयता का उल्लंघन नहीं है।

आवेदकों की ओर से अधिवक्ता अभिनव श्रीवास्तव तथा धनंजय कुमार तिवारी ने कोर्ट को बताया कि जनगणना करने का अधिकार किसके पास है। उन्होंने कहा कि सिर्फ केंद्र सरकार को जनगणना करने का अधिकार है। राज्य सरकार जातिगत सर्वेक्षण की आड़ में जातिगत गणना नहीं करा सकती। वहीं अधिवक्ता दीनू कुमार ने आकस्मिकता निधि से 500 करोड़ रुपये खर्च करने का मुद्दा उठाते हुए कहा कि राज्य सरकार को इस निधि से खर्च करने के पूर्व वित्त विभाग से अनुमति लेनी है। अधिवक्ता शाश्वत ने ट्रांसजेंडरों की ओर से मुद्दा उठाते हुए कहा कि ट्रांसजेंडरों की व्यक्तिगत पहचान है।

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