पंचायत चुनाव : हाईकोर्ट का फैसला, पार्षद-मुखिया-सरपंच को अयोग्य कर सकता है राज्य चुनाव आयोग

पटना हाईकोर्ट के तीन जजों की फुल बेंच ने एक महत्वपूर्ण फैसले से यह तय किया है कि पंचायत व नगरपालिका चुनावों के पहले या उसके बाद, उम्मीदवारों की अयोग्यता पर फैसला लेने का अधिकार बिहार राज्य निर्वाचन आयोग को भी है। केवल उन्हीं मामलों पर राज्य निर्वाचन आयोग सुनवाई नहीं कर सकता है, जहां विशुद्ध रूप से चुनाव प्रक्रिया या किसी उम्मीदवार के निर्वाचन पर विवाद हुआ हो। ऐसे मामलों में राज्य निर्वाचन आयोग में केस दायर करने की बजाए निचली अदालत में चुनाव याचिका दायर करनी होगी। हाईकोर्ट के इस फैसले से स्थानीय निकाय चुनावों में तेजी से बढ़ रहे उम्मीदवारों की अयोग्यता के मामलों की सुनवाई के लिए राज्य निर्वाचन आयोग की शक्ति पर उठ रहे सवालों का समाधान हो गया है। अब ऐसे मामले तेजी से निपटेंगे।

निर्वाचित प्रतिनिधियों की अयोग्यता से जुड़े ऐसे कई बिंदुओं पर हाईकोर्ट की कई खंडपीठ का अलग फैसला होने से मामले को फुल बेंच को रेफर किया गया था। मुख्य न्यायाधीश एपी शाही, न्यायमूर्ति अंजना मिश्रा व न्यायमूर्ति राजीव रंजन प्रसाद की बेंच ने यह फैसला सुनाया। कोर्ट, रजनी कुमारी व अन्य की एलपीए की सुनवाई कर रहा था। कोर्ट ने इसे निष्पादित भी कर दिया। 200 पन्नों के फैसले में हाईकोर्ट ने कहा कि राज्य निर्वाचन आयोग को उम्मीदवारों को अयोग्य घोषित करने का अधिकार, बिहार पंचायती राज कानून व बिहार नगरपालिका कानून से मिलता है। उम्मीदवार योग्य हैं या अयोग्य, इस पर निर्णय लेने की शक्ति है।

यदि चुनाव नतीजे के दिन कोई प्रत्याशी अयोग्य था, यदि इस मुद्दे पर कोई चुनाव याचिका दायर की गई हो, तब फिर उस उम्मीदवार को अयोग्य घोषित करने के लिए आयोग सुनवाई नहीं कर सकता। क्योंकि एक ही विवाद पर दो अलग प्राधिकार सुनवाई नहीं कर सकता है। कोर्ट ने आयोग को इस बात की छूट दी कि वह चाहे तो निकाय चुनाव से पहले अयोग्यता के बिंदु पर सुनवाई सकता है।

म्युनिसिपल एक्ट 2007 के सेक्शन 18 और पंचायती राज अधिनियम 2006 की धारा 136 के तहत राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा चुनाव लड़ने के पूर्व या बाद में चुने गए प्रतिनिधियों को अयोग्य करार देने के आधार दिए गए हैं। मामूली अंतर के साथ दोनों ही मामलों में अयोग्यता की बुनियाद एक ही है। मसलन, निर्वाचित व्यक्ति का भारत का नागरिक न होना, जिसे विस चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य करार दिया गया हो, जो किसी सरकारी सेवा में हो, अदालत जिसे मानसिक रूप से अक्षम ठहरा चुकी हो, जो सरकारी सेवा से बर्खास्त हो, जो अदालत से छह माह या उससे अधिक की सजा पा चुका हो, भ्रष्टाचार में संलिप्त पाया गया हो, जिस पर निर्वाचन के दौरान म्युनिसिपैलिटी के कर बकाया हों …आदि।

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