मगध में श्रेष्ठ है पटना का पुण्यार्क मंदिर, कृष्ण के पुत्र साम्ब ने कुष्ठ से मुक्ति के लिए बनवाया था

PATNA : बिहार का महापर्व छठ सूर्य की उपासना का भी पर्व है। बिहार के मगध क्षेत्र में कई बेहद प्राचीन सूर्य मंदिर हैं। इनके स्थापना की कहानी भी बहुत रोचक है। इन मंदिरों में सबसे ख़ास पटना जिले के पंडारक में स्थित पुण्यार्क सूर्य मंदिर को माना जाता है। वजह कि यह एकमात्र सूर्य मंदिर है जो, हिन्दू धर्म में सबसे पवित्र मानी जाने वाली गंगा नदी के तट पर स्थित है। पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही मान्यताओं के अनुसार इस मंदिर की स्थापना भगवान श्रीकृष्ण और उनकी एक पटरानी जांबवंती के पुत्र साम्ब ने की थी। ऐसा उन्होंने एक श्राप से छुटकारा पाने के लिए किया था। कहानी ये है कि श्रीकृष्ण की पटरानी जांबवंती बहुत सुंदर थी, इसलिए उनसे हुए पुत्र साम्ब भी अति सुंदर थे और इस बात का उन्हें घमंड हो गया। इसी घमंड में साम्ब ने देवर्षि नारद का अपमान कर दिया था। नारद ने अपने अपमान का बदला लेने के उद्देश्य से श्रीकृष्ण को यह झूठी बात बताई कि साम्ब का उनकी गोपियों के साथ प्रेम संबंध है। नारद ने धोखे से साम्ब को गोपियों के साथ जल क्रीड़ा करने के लिए भेज दिया और कृष्ण को यह दृश्य दिखा भी दिया। इसी से क्रोधित हुए कृष्ण ने साम्ब को श्राप दिया, जिसकी वजह से उन्हें कुष्ठ रोग हुआ और सौंदर्य नष्ट हो गया।

साम्ब ने बाद में जब नारद से क्षमा याचना की तो उन्होंने कुष्ठ रोग ख़त्म करने के उपाय स्वरुप बारह सालों तक सूर्य की उपासना करने तथा बारह स्थानों पर सूर्य मंदिर की स्थापना करने को कहा। ऐसा करने पर ही साम्ब का कुष्ठ ठीक हुआ। इन कहानियों के आधार पर पुरातत्ववेताओं ने सभी मंदिरों की खोज की, लेकिन ग्यारह ही मिले। साम्ब द्वारा स्थापित 12 सूर्य मंदिरों में से पांच तो केवल मगध क्षेत्र में ही हैं। इन मंदिरों के नाम हैं – नालंदा जिले मे बड़गांव का सूर्य मंदिर (बड़ार्क), ओंगरी का सूर्य मंदिर (ओंगार्क), औरंगाबाद जिले में देव का सूर्य मंदिर (देवार्क), पटना जिले के पालीगंज में उलार का सूर्य मंदिर (उलार्क) तथा बाढ़ में पंडारक का सूर्य मंदिर (पुण्यार्क)। इन सभी प्रसिद्ध व पौराणिक सूर्य मंदिरों में सबसे पवित्र गंगा नदी के तट पर स्थित पुण्यार्क को ही माना जाता है। मंदिर के मुख्य गर्भ गृह में स्थापित अष्टदल सूर्ययंत्र के अतिरिक्त काले रंग के पत्थर से बनी सूर्य की एक अत्यंत प्राचीन प्रतिमा है। यह प्रतिमा कोणार्क आदि प्राचीनतम व प्रसिद्ध सूर्य मंदिरों में विद्यमान प्रतिमा के जैसी ही है। प्रतिमा के हाथ कमर तक हैं और दोनों हाथों मे पद्म है। सिर पर त्राण, कमर में कटार, गले में माला और पैरों में बूट जैसे परिधान हैं। मूल प्रतिमा के अगल-बगल में दंड, पिंगल, देवियां, अनुचर, अनुचरियां एवं सारथी तथा प्रतिमा के ऊपर में गंधर्व की आकृति बनी है। 1934 के प्रलयंकारी भूकंप में क्षतिग्रस्त हो जाने के बाद इस मंदिर का समय-समय पर जीर्णोद्धार करते हुए एक नवीन, भव्य व आकर्षक स्वरूप दे दिया गया है।

छठ के अवसर पर यहां दूर-दूर से हजारों की संख्या में श्रद्धालु भक्त पहुंचते हैं। स्थानीय लोगों की मानें तो बरसों से ‘पुण्यार्क मंदिर विकास समिति’ के तत्वाधान में जन सहयोग से ‘पुण्यार्क सूर्य महोत्सव’ का आयोजन किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि पुण्यार्क मंदिर मे आस्थापूर्वक पूजन-अर्चन करने से कुष्ठ व चर्म रोग से ग्रसित रोगियों को निश्चित रूप से मुक्ति मिलती है। यहां प्रतिदिन भीड़ तो होती ही है, खासकर रविवार को भी बड़ी संख्या में लोग पहुंचते हैं। पुण्यार्क सूर्य मंदिर पटना जिले के बाढ़ शहर से 12 किलोमीटर दूर पंडारक गांव में गंगा के तट पर स्थित है। यह पूर्वोत्तर रेलवे के दानापुर मंडल के अंतर्गत मोकामा और बाढ़ स्टेशन के बीच स्थित पुनारख नामक पुराने ब्रिटिशकालीन रेलवे स्टेशन के पास है। पुण्यार्क का ही अपभ्रंश नाम पहले पुनारख अब पंडारक के रूप में प्रचलित है।

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