पितृपक्ष होगा दो सितंबर से शुरू, पितरों के तर्पण के लिए ग्रह-गोचरों का बन रहा खास संयोग

सनातन धर्मावलंबियों का पवित्र पितृपक्ष भाद्रपक्ष शुक्ल पूर्णिमा बुधवार दो सितंबर से शुरू हो रहा है। अगस्त्य तर्पण के साथ ही इस बार पितरों का तर्पण पहले दिन से ही शुरू हो जायेगा। एक पखवारे तक चलने वाले पितृपक्ष के दौरान पितरों का श्राद्ध और तर्पण किया जायेगा।

पितृपक्ष का समापन आश्विन मास की अमावस्या यानी 17 सितंबर को होगा। इस पखवारे के दौरान श्रद्धालु गंगा सहित पवित्र अन्य नदियों के किनारे और घरों में श्रद्धालु अपने अपने पितरों को याद करके पिंडदान श्राद्ध व तर्पण करेंगे। हालांकि सनातन धर्म को माननेवाले जो तर्पण के अधिकारी हैं, को तो सालों भर नित्य देवता, ऋषि एवं पितर का तर्पण करना चाहिए। ऐसा नहीं कर सकें तो कम-से-कम पितृपक्ष में तो अवश्य तर्पण, अन्नदान, तथा संभव हो तो पार्वण श्राद्ध करना चाहिए। मान्यता है कि तर्पण करने से देव ऋषि तथा पितृ ऋण से मुक्ति मिलती है तथा जन्म कुंडली का पितृ दोष का निवारण होता है।

इन पूर्वज पितरों का होगा श्राद्ध व तर्पण
ज्योतिषाचार्य पं. विप्रेंद्र झा माधव ने शास्त्रों के हवाले से बताया कि परम्परा के अनुसार पिता, पितामह, प्रपितामह, माता, पितामही, प्रपितामही, मातामह, प्रमातामह, वृद्धप्रमातामह, मातामही प्रमातामही, वृद्ध प्रमातामही, के अलावे अन्य स्वर्ग गत सगे संबंधियों को गोत्र और नाम लेकर तर्पण करना चाहिए। तर्पण के बाद निम्न मंत्र से प्रार्थना करनी चाहिए:-ऊं देवताभ्य: पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च, नम: स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव नमो नमः। इसके करने से देव ऋषि तथा पितृ ऋण से मुक्ति मिलती है तथा जन्म कुंडली का पितृ दोष निवारण होता है।

काला तिल व जल लेकर होगा तर्पण
ज्योतिषाचार्य पीके युग ने बताया कि प्रात:काल स्नान के बाद काला तिल और गंगाजल या जल से पितरों का तर्पण होगा। दक्षिण मुख होकर तर्पण किया जायेगा। साथ ही पिंडदान करने का भी खास महत्व है। इस दौरान श्रीमद्भागवत पाठ,गीता व गजेंद्र मोक्ष का पाठ किया जायेगा।

मातृनवमी 11और अमावस्या 17 को है,सभी स्त्री व पुरुष पितरों का होगा तर्पण, श्राद्ध
ज्योतिषी पं. माधव के मुताबिक पितृपक्ष के दौरान जिस तिथि को जिन पूर्वजों की मृत्यु हुई हो उस दिन ब्राह्मण भोजन कराना चाहिए। तिथि पता नहीं होने पर मातृनवमी को स्त्री वर्ग के निमित्त तथा अमावस्या के दिन पुरुष वर्ग के निमित्त ब्राह्मण भोजन कराने का विधान है। इस वर्ष 11 सितंबर को मातृनवमी है। वहींं अमावस्या 17 सितंबर को है। शास्त्रों के अनुसार पितृपक्ष में, पुण्यतिथि के दिन तथा अमावस्या तिथि को पितर लोग वायु रूप में घर के दरवाजे पर आकर सुबह से शाम तक इन्तजार करते हैं तथा अपने पुत्रों /वंशजों द्वारा तर्पणादि कार्य नहीं करने पर क्षुधा की पूर्ति नहीं होने के कारण कुपित होकर अपने लोक को लौट जाते हैं। इसमें एक और अहम बात ज्ञातव्य है कि हमलोग भगवान को जल अर्पित करने दूर-दूर तक जाते हैं। भगवान को जल, प्रसादादि अर्पित करने वाले बहुत भक्त हैं किन्तु मेरे पितर तो केवल मेरे ही द्वारा दिए गए पिंडदान तथा तर्पण से तृप्त होते हैं।

पितृपक्ष में ग्रह -गोचरों का विशेष संयोग : ज्योतिषी युग के मुताबिक इस बार पितृपक्ष के दौरान ग्रह -गोचरों का खास संयोग बन रहा है। एक पखवारे के दौरान सात सर्वार्थ सिद्धि योग,पांच सिद्धियोग, सात अमृत योग,का संयोग बनेगा। साथ ही 13 सितंबर को रवि पुष्य योग भी बनेगा। वहीं इस दौरान मंगल,गुरु,शनि और सूर्य अपने अपने स्वगृही स्थानों पर रहेंगे।

वर्ष पितृपक्ष की मुख्य तिथियां :— 2 सितम्बर –महालयारंभ, अगस्त्य मुनि तर्पण, पितृपक्षीय,तर्पणारंभ। 10 सितम्बर –जीमूतवाहन व्रत, 11 सितम्बर–मातृनवमी 17 सितम्बर–पितृपक्षांत, महालया । 17 सितम्बर शाम से मलमास आरंभ

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