पोती को पढ़ाने के लिए दादा ने घर तक बेच दिया, अब ऑटो में ही खाते और सोते हैं

मुंबई के रहने वाले एक बुज़ुर्ग ऑटो रिक्शा ड्राइवर ‘देसराज’ (Deshraj) की कहानी आजकल सोशल मीडिया पर छाई हुई है। जिन्होंने अपनी पोती की पढ़ाई के लिए अपना घर भी बेच दिया, ताकि वह अपनी पढ़ाई पूरी करके सफल अध्यापिका बने। अब बेघर देसराज ने अपनी ऑटो रिक्शा को ही घर बना लिया और ऑटो में ही खाना-पीना और सोना होता है। सोशल मीडिया पर इनकी कठिनाई में भी मुस्कुराती हुई तस्वीर और दिल को छू लेने वाली कहानी वायरल हो गई है और बहुत से लोगों ने इनकी सहायता करने की गुहार भी की है।

देसराज मुंबई में ऑटो रिक्शा चलाने का काम करते हैं। जब उनके दो बेटों की मृत्यु हो गई तो सारे परिवार को संभालने का भार उनके ऊपर आ गया। ह्यूमन्स ऑफ बॉम्बे को जब उन्होंने इंटरव्यू दिया तो सोशल मीडिया पर लोगों ने संवेदना जताई। देसराज ने बताया कि 6 वर्ष पूर्व उनका एक बेटा अचानक लापता हो गया था। वह काम करने के लिए घर से कह कर गया लेकिन फिर कभी घर वापस नहीं आया। उसके 8 दिन के बाद ही देसराज के 40 वर्षीय बेटे की लाश मिली। वे कहते हैं कि उनको अपने बेटे के दुःख में रोने का मौका भी नहीं मिला।

इसके बाद सारे परिवार की जिम्मेदारी बुजुर्गो देशराज पर आ गई। लेकिन उन्होंने अपनी जिम्मेदारी को बखूबी निभाया और ऑटो चलाकर परिवार का पालन पोषण किया। इसके बाद भाग्य ने उन्हें एक और घाव दिया। उनके छोटे बेटे ने अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली। देसराज बताते हैं कि ” ड्राइविंग करते समय, मुझे एक फ़ोन आया-‘ आपके बेटे का शव प्लेटफॉर्म नंबर 4 पर मिला है, जिसने अपनी जीवन लीला समाप्त ली है।

मैंने दो बेटों के अंतिम संस्कार की चिता जलाई है, एक बाप के लिए इससे ज़्यादा बुरी बात क्या हो सकती है? दोनों बेटों की मृत्यु के बाद भी देशराज ने हिम्मत नहीं आ रही और अपने परिवार की जिम्मेदारी उठाते रहे। अपनी पोते पोतियों के लिए खाने पीने और स्कूल भेजने की सारी व्यवस्था वही करते थे।

अब दोनों बेटों के गुजर जाने के बाद देसराज के ऊपर अपनी बहू और 4 पोते-पोतियों की जिम्मेदारी आ गई थी। जिस समय उनकी पोती 9वीं कक्षा में पढ़ती थी, तब उसने पढ़ाई छोड़ने को भी कहा था लेकिन देसराज ने अपनी पोती को ऐसा करने से मना किया और उसे भरोसा दिलाया कि उसे जितना पढ़ना है वह पढ़े। फिर ज़्यादा कमाई हो इसके लिए उन्होंने लंबी शिफ्ट में काम करना शुरू कर दिया। प्रातः 6 बजे वे घर से निकलते और फिर देर रात तक ऑटो चलाते थे। इस तरह उन्हें हर महीने 10 हज़ार रुपए की कमाई हो जाती थी। देसराज कहते हैं कि ₹10000 में से ₹6000 तो केवल उनके पोते पोतियो की स्कूल की फीस में ही चले जाते थे। फिर जो ₹4000 बचते थे उसमें से वे सात व्यक्तियों का पालन पोषण करते थे।

देसराज बताते हैं कि बहुत बार ऐसा होता था कि हमारे पास खाने के लिए भोजन नहीं होता था। लेकिन जिस समय मेरी पोती 12वीं कक्षा में 80 % मार्क्स लाई थी तब मुझे लगा कि इन सब की क़ीमत अदा हो गई। उस दिन उन्होंने अपने कस्टमर्स को सारा दिन ऑटो में मुफ्त राइड दी थी। फिर देशराज की पोती ने कहा कि उसे दिल्ली के कॉलेज से B. Ed करना है। परंतु उनकी पारिवारिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि वह B. Ed की फीस अदा कर पाएँ। ऐसे में देशराज ने सोचा कि उन्हें कुछ भी करके अपनी पोती का सपना टूटने नहीं देना है।

फिर उन्होंने पोती को भी बीएड करवाने के लिए अपना घर बेच दिया। घर बेचने के बाद उनकी पत्नी, बहू और अन्य पोते-पोतियाँ वे सभी गाँव में रहने वाले एक रिश्तेदार के वहाँ रहने के लिए चले गए, पर देशराज मुंबई में ही रहकर ऑटो चलाया करते थे। वे अपनी ऑटो में ही खाना खाते और सोते। देसराज कहते हैं, ‘एक साल हो गया और ज़िन्दगी इतनी भी बुरी नहीं है। मैं अपने ऑटो में ही खाता और सोता हूँ और दिन के समय लोगों को उनकी मंज़िल पर पहुँचाता हूँ।’

इसके बाद भावुक होकर देसराज कहते हैं कि जब उनकी पोती का फ़ोन आता है और वह बताती है कि वह अपनी क्लास में प्रथम आयी है, तो उनके सारे दुख-दर्द दूर हो जाते हैं। वे आगे कहते हैं, ‘मुझसे उन दिन का इंतज़ार नहीं होता जब वह टीचर बन जाएगी और तब मैं उसे गले लगाकर कहूंगा कि मुझे तुम पर गर्व है। वह मेरे परिवार में पहली ग्रेजुएट होने जा रही है।’ देसराज ने कहा कि जब ऐसा होगा तो उस दिन फिर से गए अपने कस्टमर्स को ऑटो रिक्शा की मुफ्त राइड देंगे।

देसराज के संघर्ष की दास्तां जब सोशल मीडिया पर आयी तो, उसे पढ़कर लोगों का दिल भर आया। इसके बाद उनकी यह कहानी सोशल मीडिया पर वायरल हो गई और बहुत से लोगों ने उनकी मदद के लिए आगे आने को कहा। कई लोगों ने उनकी सहायता करने की इच्छा भी जताई। एक व्यक्ति ने सोशल मीडिया में देशराज के लिए लिखा कि ‘उनकी यह कहानी सुनकर मेरा गला रुंध गया। इस उम्र में भी अपने परिवार के प्रति ऐसी उल्लेखनीय आस्था और जिम्मेदारी। ऐसी महान उदारता कि अपनी बुरी आर्थिक स्थिति के बाद भी लोगों को मुफ्त राइड देने का ऑफर किया।’ एक फ़ेसबुक ने तो उनके लिए फंड इकट्ठा करना भी शुरू कर दिया। जिसके अंतर्गत उसने 276 लोगों से करीब 5 लाख रुपये इकठ्ठे कर लिए हैं।

इतना ही नहीं उनकी स्टोरी पढ़कर कांग्रेस की अर्चना डालमिया और पूर्व केंद्रीय संचार और सूचना प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री और शिपिंग मिलिंद देवड़ा ने भी उनकी इस संघर्ष भरी दास्तां पर कमेंट किया और अपने ट्विटर हैंडल पर इस कहानी को साझा भी किया है। जिसमें उन्होंने मुंबई के लोगों को देशराज की सहायता करने की गुहार की।

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