पूजा स्थल अधिनियम 1991 : किसी भी धर्म के पूजा स्थल को दूसरे धर्म के पूजा स्थल में नहीं बदला जा सकता

बताइए अब भारत का संविधान भी मुसलमानों से उनकी मस्जिद बचाने में नाकाम साबित हो रहा है. किसी को याद हो तो पूजा स्थल अधिनियम 1991 को ही देख लें. जिसके अनुसार 1947 के बाद जिस जगह पर मस्जिद है वहाँ कोई छेड़-छाड़ नहीं किया जाएगा. लेकिन ज्ञानवापी मामले में सब धरे के धरे रह गए हैं. स्थानीय अदालत से लेकर जिला अधिकारी और मीडिया के साथियों ने भी पूजा स्थल अधिनियम 1991 को ताक पर रख दिया है. अब हम मुस्लिम किस कोर्ट, किस एक्ट और किस संविधान की दुहाई दें कि वह हमारे साथ इंसाफ़ करेगा.

उपरोक्त वाक्य एक फेसबुक पोस्ट है। इसके माध्यम से वह अपनी वेदना और संविधान के प्रति समर्पण को दर्शाता है। आइए जानते है क्या है पूजा स्थल अधिनियम 1991

1991 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव सरकार ने पूजा स्थल कानून लेकर आई थी। इस कानून के मुताबिक 15 अगस्त 1947 से पहले अस्तित्व में आए किसी भी धर्म के पूजा स्थल को किसी दूसरे धर्म के पूजा स्थल में नहीं बदला जा सकता। अगर कोई ऐसा करने की कोशिश करता है तो उसे एक से तीन साल तक की जेल और जुर्माना हो सकता है। अयोध्या का मामला उस वक्त कोर्ट में था इसलिए उसे इस कानून से अलग रखा गया था।



इस कानून की धारा-दो कहती है कि अगर 15 अगस्त 1947 मौजूद किसी धार्मिक स्थल के चरित्र में बदलाव को लेकर कोई याचिका या अन्य कार्यवाही किसी अदालत, न्यायाधिकरण या अन्य प्राधिकरण में लंबित है, तो उसे बंद कर दिया जाएगा। वहीं, कानून की धारा-3 किसी पूजा स्थल को पूरी तरह या आंशिक रूप से किसी दूसरे धर्म के पूजा स्थल में बदलने पर रोक लगाती है। यहां तक कि अधिनियम की धारा 3 किसी भी धार्मिक संप्रदाय के पूजा स्थल के पूर्ण या आंशिक रूप से धर्मांतरण को एक अलग धार्मिक संप्रदाय के पूजा स्थल या एक ही धार्मिक संप्रदाय के एक अलग खंड में बदलने पर रोक लगाती है।

धारा-4(1) कहती है कि 15 अगस्त 1947 को किसी पूजा स्थल का जो चरित्र था उसे वैसा ही बनाए रखना होगा। वहीं. धारा-4(2) इसके प्रावधान उन मुकदमों, अपीलों और कानूनी कार्यवाही को रोकने की बात करता हैं जो पूजा स्थल कानून के लागू होने की तिथि पर लंबित थे। इसके साथ ही ये धारा किसी नए मामले को दायर करने पर भी रोक लगाती है। इस कानून की धारा-5 कहती है कि पूजा स्थल कानून  राम जन्मभूमि से जुड़े मुकदमों पर लागू नहीं होगा।

क्यों बनाया गया था ये कानून?
1990 के दौर में राम मंदिर आंदोलन चरम पर था। राम मंदिर आंदोलन के बढ़ते प्रभाव के चलते अयोध्या के साथ ही कई और मंदिर-मस्जिद विवाद उठने लगे थे। इन विवादों पर विराम लगाने के लिए ही उस वक्त की नरसिम्हा राव सरकार ये कानून लेकर आई थी।

डेली बिहार न्यूज फेसबुक ग्रुप को ज्वाइन करने के लिए लिंक पर क्लिक करें….DAILY BIHAR  आप हमे फ़ेसबुकट्विटरइंस्टाग्राम और WhattsupYOUTUBE पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *