आज महिला दिवस है अर्थात 8 मार्च 2025. एक दिन पहले बिहार विधान मंडल बजट सत्र के दौरान बिहार विधान परिषद में आक्रोशित होते हुए एक महिला MLC के प्रश्न के जवाब में नीतीश कुमार ने गुस्से में आकर कहा की महिलाओं के लिए जितना काम हमने किया उतना लालू शासन में कभी नहीं हुआ. इसके बाद उन्होंने सदन में बैठी बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री और लालू प्रसाद यादव की पत्नी राबड़ी देवी की ओर इशारा करते हुए कहा कि जब उनके हस्बैंड जेल जाने लगे तो उन्होंने अपनी पत्नी को CM बनाया. हम जब सरकार में आए तो सबसे पहले पंचायत चुनाव में महिलाओं के लिए 50% आरक्षण दिया और उसके बाद बिहार सरकार की सरकारी नौकरी में 35 परसेंट आरक्षण देकर उन्हें मजबूत बनाने का काम किया.

लेकिन क्या आप जानते हैं कि जिस राबड़ी देवी पर नीतीश कुमार आरोप लगा रहे थी वह राबड़ी देवी पति के बार-बार कहने के बाद भी मुख्यमंत्री बनने को तैयार नहीं थी. जब लालू प्रसाद यादव ने जेल जाने से पहले राबड़ी देवी को कहा कि तुम्हें चीफ मिनिस्टर बनना है, बिहार का मुख्यमंत्री बनकर काम करना है तो राबड़ी देवी रोने लगी. लालू के पैर पर गिरकर गिड़गिड़ाने लगी और कहने लगी मुझ से यह यह सब नहीं होगा. आप मुझे क्यों बेकार में फंसा रहे हैं. मुझे तो बस आपके लिए किचन में खाना बनाना अच्छा लगता है.

वरिष्ठ पत्रकार संकर्शन ठाकुर अपनी किताब बंधु बिहारी में लिखते हैं कि राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बनना कभी पसंद नहीं था और वह इस बात को प्रकट करने का कोई अवसर नहीं छोड़ती थी, मुसीबत है साहब का आर्डर है इसलिए यह झंझट उठा रहे है, कहां ठेल दिए हमको… वह अक्सर शिकायत करती. रसोई घर और रसोई घर का बगीचा उनका प्रिय क्षेत्र हुआ करता था, सचिवालय या विधानसभा नहीं और ना ही घर का वह ऑफिस जो बिहार की मुख्य कार्यकारी होने के नाते उनका हो गया था. साहब अर्थात लालू प्रसाद यादव अभी भी वहां बैठकी किया करते थे. वह अभी भी वहां मीटिंग करते थे और सारे आवश्यक निर्णय लेते थे. राबड़ी देवी तो बस उन कागजों पर दस्तखत कर देती थी.

24 जुलाई 1997 को जब पटना उच्च न्यायालय ने लालू यादव की अग्रिम जमानत की अर्जी को खारिज कर दी तो लालू यादव असहाय हो गए. पटना हाई कोर्ट के उसे फैसले के बाद से बिहार की राजनीति में घटनाएं तेजी से बदलने लगी और लालू यादव के नियंत्रण से बाहर होने लगी
उपेंद्रनाथ विश्वास जो कि उस समय सीबीआई के कोलकाता स्थित संयुक्त निदेशक और चारा घोटाले की जांच के अगुआ थे उन्होंने विशेष अदालत से लालू प्रसाद यादव को गिरफ्तार करने के लिए वारंट ले लिया था. वे कंफर्म थे कि चारा घोटाला में लालू प्रसाद यादव का ही हाथ है.

उधर दूसरी ओर शाम होते होते मुख्यमंत्री आवास अर्थात एक अन्ने मार्ग में सन्नाटा पसर गया था. लालू यादव के चेहरे पर घबराहट साफ दिख रहा था. वे अपने खासम खास नेताओं के साथ और विश्वसनीय अधिकारियों के साथ बैठकर कैबिनेट मीटिंग कर रहे थे. लालू यादव के चेहरे को उदास देखकर कुछ लोग नारे लगा रहे थे जिसे लालू ने चुप करा दिया था. फोन की घंटी बार-बार बज रही थी. लालू यादव की पत्नी और उनके बच्चे बेडरूम में रो रहे थे.
राबड़ी देवी का कहना था अब का होइ हो, अब का होई…. लालू प्रसाद के दोस्त अनवर अहमद राबड़ी देवी और बच्चों के साथ कमरे में बैठे हुए थे. वह कहते हैं की भाभी बहुत गमगीन थी और उन्हें देखकर बच्चे भी रो रहे थे सिर्फ मिसा भारती अर्थात बड़ी बेटी हिम्मत से काम ले रही थी और उसने अपना नियंत्रण नहीं खाया था. उस समय तक हम में से किसी को विश्वास नहीं था कि साहब अर्थात लालू प्रसाद यादव गिरफ्तार हो जाएंगे.

लालू जान गए थे कि उनकी गिरफ्तारी तय है इसीलिए उन्होंने उस समय देश के प्रधानमंत्री इंद्र कुमार गुजराल को फोन लगाया लेकिन उन्हें बताया गया कि प्रधानमंत्री उपलब्ध नहीं है.
इसी बीच राज भवन से उस समय के राज्यपाल ए आर किदवई का फोन लालू प्रसाद यादव के पास आता है और उन्हें कहा जाता है कि आपके नाम पर गिरफ्तारी वारंट जारी हुआ है इसीलिए आपको इस्तीफा दे देना चाहिए.
संकट से घिरे एक अन्ने मार्ग में लालू यादव पहले से ही जवाबी चाल चलने की तैयारी कर रहे थे और रात 10:00 के आसपास लालू यादव अपने सजग समर्थकों को भूतल के प्रतीक्षा कक्ष में छोड़कर अपने निजी कक्ष में जाने के लिए जंगले वाली सीढ़ियां चढ़ने लगे. वे अभी भी निराशा और गंभीर लग रहे थे. बेडरूम तक पहुंचते पहुंचते उन्होंने बड़ा फैसला ले लिया था. अब सत्ता में बने रहने के लिए उनके पास एक ही तरीका था और किसी भी कीमत पर उन्हें सत्ता में बने रहना था. लालू यादव ने राबड़ी देवी से कहा, तुमको कल सीएम का ओथ अर्थात शपथ लेना है. तैयारी शुरू करो.

राबड़ी देवी दुखी होकर फूट-फूट कर रोने लगी और कमरे से बाहर चली गई. लालू जानते थे की राबड़ी देवी उनके आदेश का उल्लंघन नहीं करेगी. वे जो कहेंगे राबड़ी देवी उस आदेश का पालन करेगी. इसके बाद लालू यादव अपने बिस्तर तक पहुंचाते हैं और कॉर्डलेस फोन उठाकर दिल्ली में कांग्रेस अध्यक्ष सीताराम केसरी को फोन मिलाते हैं. रबड़ी को मुख्यमंत्री बनने के लिए उन्हें कांग्रेस का समर्थन हर हाल में चाहिए था.
25 जुलाई 1997 की सुबह लाल यादव ने बिहार के मुख्य सचिव बीपी वर्मा और पुलिस प्रमुख एसके सक्सेना जो कि लालू यादव के ख़ासम खास थे उन्हें फोन कर कहा कि मेरी गिरफ्तारी को जितनी देर तक रोक सकते हो रोक लो. इसके बाद सीबीआई के अधिकारी उपेंद्रनाथ विश्वास को कह दिया गया कि लालू यादव समर्पण करने को तैयार हैं बस उन्हें कुछ समय चाहिए.

विधानमंडल की बैठक में लालू प्रसाद यादव अपनी उत्तराधिकारी से थोड़ा पहले पहुंचे और अपनी इस्तीफे की घोषणा कर दी. उन्होंने कहा कि आप लोगों को नया नेता चुना है चुन लीजिए. इसके बाद बैठक छोड़कर लालू प्रसाद यादव बाहर चले गए. नई नेता राबड़ी देवी अपने भाई साधु यादव और अनवर अहमद के साथ अंदर आई. उनका चुनाव करने की औपचारिकता ऊर्जा मंत्री श्याम रजक के द्वारा आरंभ हुई जिन्होंने उनके नाम का प्रस्ताव रखा और फिर हॉल वफादारी भरे नारों में डूब गया लालू यादव जिंदाबाद, राबरी देवी जिंदाबाद…
नई मुख्यमंत्री अपने चारों ओर मची उधम से इतना घबरा गई थी और उनके साथ जो हो रहा था उसे इतनी शून्य हो गई थी कि अपने शपथ ग्रहण के लिए घर की चप्पलों में चली गई जिनमें से झांकते उनके नाखूनों की लाल नेल पॉलिश बुरी तरह उखरी हुई थी.
लेखक : रोशन झा, पत्रकार पटना