बिहार के कद्दावार नेता रघुवंश बाबू को पहली बरखी पर शत-शत नमन, मुजफ्फरपुर में होगी श्रद्धांजलि सभा

PATNA ; रघुवंश बाबू पर कर्पूरी जी की छाप थी, वे आमजन की राजनीति करते अाैर गांव-गंवई की भाषा बाेलते थे, सबके थे इसलिए ब्रह्म बाबा भी कहलाए : पूर्व केंद्रीय मंत्री मनरेगा मैन से प्रख्यात डाॅ. रघुवंश प्रसाद सिंह की पहली बरसी पर शहर के बैरिया स्थित एक विवाह भवन में श्रद्धांजलि सभा हाेगी। इसमें केंद्रीय राज्यमंत्री अश्विनी चाैबे, पूर्व मंत्री अखिलेश सिंह, जदयू अध्यक्ष ललन सिंह, प्रतिपक्ष के नेता तेजस्वी यादव, राजद के प्रधान महासचिव अब्दुल बारी सिद्दीकी समेत एनडीए से लेकर महागठबंधन तक के राजनीतिक दिग्गज जुटेंगे। कार्यक्रम संयाेजक सत्यप्रकाश सिंह ने कहा कि डाॅ. सिंह की पहली बरसी महापरिनिर्वाण दिवस के रूप में मनाई जाएगी।

रघुवंश बाबू राजनीति के जिस दाैर में शिक्षित-प्रशिक्षित हुए, उसमें ईमानदारी, गांव-गरीबाें की बात जानने, लड़ने-भिड़ने का मिश्रण था। राजनीति में नफा-नुकसान नहीं देखा जाता था। उनके जीवन, रहन-सहन, पहनावा-अाेढ़ावा, बाेली सबमें अामलाेगाें की बात थी। जाे बाेलना हाेता था बाेल जाते थे। एेसा कतई नहीं था कि वे अच्छी हिन्दी नहीं बाेल सकते थे। जितनी अामलाेगाें की राजनीति की समझदारी थी, उतने ही वे विद्वान भी थे। उनका मानना था कि जिनकी वे राजनीति करते हैं, उसकी तरह ही दिखें अाैर राजनीतिक बात भी उसी की भाषा में लाेग समझें। चटाई पर बैठ जाना, जमीन पर बैठकर सबके साथ भूजा खाना-खिलाना उनके जीवन में था। सूचना क्रांति के दाैर में भी वे मोबाइल से कम ही बात करते थे। कहते थे- जिसका दर्द सुनना है उसके पास जाकर सुनेंगे, जरूरत पड़ी ताे उसके लिए लड़ेंगे, तभी काम हाेगा। मोबाइल पर बात करने से क्या हाेगा?

हम ताे 1974 में उनके संपर्क में अाए। उस वक्त वे अपने एरिया के बड़े नेता थे। लेकिन, 1977 में साथ जीतकर अाए ताे नजदीक से सुनने अाैर समझने का माैका मिला। उनके बारे में यही कह सकते हैं कि उन पर शुद्ध समाजवाद अाैर कर्पूरी ठाकुर जी की छाप थी। उनका गहरा असर हाेने के कारण ही 1977 में काफी राजनीतिक उतार-चढ़ाव हाेने पर भी वे चट्टान की तरह खड़े रहे। गांव-गंवई से जुड़ाव अाैर उनके दुख-दर्द काे करीब से समझने के चलते ही मनरेगा का बीजाराेपण हुअा। गांव-गांव में सड़काें के जाल बिछे, जिससे अाज गांव की शक्ल बदली नजर अा रही है। उनमें बनावटी कुछ नहीं था। जनता से सीधा संवाद में विश्वास करते थे। किसी के लिए मन में बैर नहीं था। सबके लिए थे, इसी लिए ब्रह्म बाबा कहलाते थे।

अाज की राजनीति में ये बातें लुप्त हाेती जा रहीं। सैद्धांतिक बाताें में मतभिन्नता भी साफगाेई से रखते थे। वैसे यह कहना कि अबकी राजनीति में फिट नहीं बैठ रहे थे, कहना गलत हाेगा। वे समस्या से भागनेवाले नहीं, बल्कि मजबूती से उसका समाधान करनेवालाें में थे। जीवन के अंतिम वक्त तक यह संघर्ष जारी रहा। कई लाेग इसे अपनी-अपनी तरह से पेश करते हाें, यह उनकी बातें हैं। वैशाली की विरासत काे बचाने के लिए लंबे संघर्ष की तैयारी में थे। लेकिन, बड़े दुख की बात है कि मेरे राजनीतिक गुरु भाई हमलाेगाें से बहुत दूर चले गए…। – अब्दुल बारी सिद्दीकी राष्ट्रीय प्रधान महासचिव, राजद

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