राजस्थान की बेशर्म कांग्रेस सरकार के CM को लानत है, काश आपका बेटा म’रा होता

राजस्थान की बेशर्म सरकार के बेशर्म मुख्यमंत्री,

कोटा के अस्पताल में बच्चों की मौ-त का आंकड़ा शतक लगाने के करीब जा पहुंचा है। आपके कान में यह ख़बर जब फूंकी गई तब आपने बड़ी ही बेशर्मी से कह दिया कि यह सामान्य बात है! आपने तो यहां तक कह दिया कि इस साल केवल 900 बच्चों की मौ-त ही एक साल में हुई, जो कि पिछले वर्षों के मुकाबले काफी कम है! इसे कांग्रेस चाहे तो अपने अचीवमेंट्स की लिस्ट में जोड़ सकती है।

बच्चों की मौ-त के साथ भीतर के इंसान की मौत हो जाना, क्या यह सत्ता के शीर्ष पर बैठने का कोई नियम है? अगर है, तो थू है ऐसे किसी भी नियम पर!

अब आइए एनसीपीसीआर यानी राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग पर। आयोग जाग चुका है। सक्रियता दिखा दी है। झट से चिकित्सा शिक्षा विभाग को कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया। कोटा के सीएमओ को तलब कर दिया। इस मामले में जिला कलक्टर को जांच करवाकर रिपोर्ट देने के आदेश दिए है। सनद रहे, जिला कलेक्टर। कोटा के जिला कलेक्टर साहब रिपोर्ट बनाएंगे और उसमें सरकार की कमियों पर प्रकाश डालेंगे, ऐसा उनके दिमाग में भी आ जाएगा, क्या ऐसा मुमकिन है? ये प्यारे सिस्टम की दास्तां है साहब। पढ़िए, पूरे सरकारी स्टाइल में। कामकाज का यह सरकारी तरीका है और इसका पैटर्न हर राज्य में एक ही मिलेगा। गहलोत साहब भी इससे परिचित हैं और कलक्टर साहब भी।

फाइलें, रिपोर्ट्स घूमेंगी। घूमती रहेंगी और घूमकर जब थक जाएंगी तब इन्हीं फाइलों में आंकड़ों में दर्ज बच्चे भी हार मान लेंगे। वे मान लेंगे कि ऐसा ही होता है। ऐसा ही होता आया है और ऐसे ही होता रहेगा। हकीक़त के इसी दस्तूर को अंतिम सत्य मान लिया जाएगा। फिर नए बच्चे मरेंगे। नई ख़बरें होंगी। लेकिन, इस सबके बीच पुराना होगा तो वही ‘सरकारी रवैया’, लालफीताशाही और चंद हुक्मरानों के बेशर्मी से दांत चियारते हुए बयान!

शक्ल से शरीफ़ और बातचीत से सौम्य व्यक्ति संवेदनशील भी हो, ऐसा ज़रूरी नहीं है। कई बार गहलोती चेहरे इस भ्रम को तोड़ देते हैं। यह भ्रम शीशे की तरह टूटता है और ज़मीं पर कई बिखरे हुए भ्रम तितर-बितर पड़े होते हैं। इन्हीं भ्रमों के विकास से होकर ही सत्ता का रास्ता निकलता है। इसी रास्ते पर भटकते हैं हम, आप और आपके बच्चे…’सरकारी पैटर्न’ में सुधार की उम्मीद लिए हुए!

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