डॉ राजेंद्र प्रसाद ने जीवन में कभी नहीं खाया खैनी, 1100 के पेंशन से होता था जीवन यापन

डॉ राजेंद्र प्रसाद ने जीवन में कभी नहीं खाया खैनी, 1100 के पेंशन से होता था जीवन यापन : राजेन्द्र प्रसाद राजेन्द्र प्रसाद (3 दिसम्बर 1884 – 28 फरवरी 1963) भारत के प्रथम राष्ट्रपति Rajendra Prasad थे। . उन्होंने भारतीय संविधान के निर्माण में भी अपना योगदान दिया था जिसकी परिणति २६ जनवरी १९५० को भारत के एक गणतंत्र के रूप में हुई थी।

आज बिहार के राजेन बाबू और देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद की जयंती है। सारा देश आज उनको इस अवसर पर नमन कर रहा है। आइए आज इस अवसर पर जानते हैं कि हमारे और आपके राजेन बाबू कैसे थे। वैसे बिहार की गलियों में उनके बारें में बहुत रास गलत बातें कही जाती है। बचपन से सुनता आया हूं कि वे खैनी खा’ते थी।

एक किस्सा तो आज भी बच्चों को अभिभावकों द्वारा आज भी सुनाया जाता है कि एक बार परीक्षा केंद्र पर वे लेट से पहुंचे। फिर क्या था उन्होंन चुनौटी निकाली और लगे हाथ चून तमाकूल चुनाने लगे। खैनी खाने के साथी ही उनमे गजब का उत्साह भर आया और देखते ही देखते उन्होंने क्वेश्चन पेपर को सॉल्व कर दिया। वैसे आपको बतादे कि उन्होंने जीवन में कभी भी खैनी का सेवन नहीं किया है। वैसे यह सच है कि वे काफी तेज बुद्धि के थे। संभवत: यहीं कारण है कि उनकी प्रतिभा को देखकर परीक्षा केंद्र पर किसी ने कहा था कि- EXMAINEE IS BETER THEN EXAMINER

डॉ राजेंद्र प्रसाद ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि गोपाल कृष्ण गोखले से मिलने के बाद वे आज़ादी की लड़ाई में शामिल होने के लिए बेचैन हो गए। मगर परिवार की ज़िम्मेदारी उनके ऊपर थी। 15-20 दिन तक काफ़ी सोचने समझने के बाद अपने बड़े भाई महेंद्र प्रसाद और पत्नी राजवंशी देवी को भोजपुरी में पत्र लिखकर देश सेवा करने की अनुमति मांगी।

उनका ख़त को पढ़कर उनके बड़े भाई रोने लगे। वे सोचने लगे कि उनको क्या जवाब दें। बड़े भाई से सहमति मिलने पर ही राजेंद्र प्रसाद स्वतंत्रता आंदोलन में उतरे। बाबू राजेंद्र प्रसाद का जन्म 3 दिसंबर 1884 को बिहार के भोजपुर क्षेत्र में जीरादेई नाम के गाँव में हुआ था जो अब सिवान ज़िले में है।

13 साल की उम्र में राजेंद्र प्रसाद का विवाह राजवंशी देवी से हो गया। इस समय वे स्कूल में पढ़ रहे थे। राष्ट्रपति भवन में अंग्रेज़ियत का बोलबाला था जबकि राजवंशी देवी मानती थीं कि ‘देश छोड़ो तो छोड़ो मगर अपना वेश मत छोड़ो। अपनी संस्कृति क़ायम रखो’।

राजेंद्र प्रसाद गांधीजी के मुख्य शिष्यों में से एक थे और उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। डॉ। तारा सिन्हा, डॉ। राजेंद्र प्रसाद की पोती हैं। उनका कहना है कि डॉ राजेन्द्र प्रसाद ने संविधान की रूपरेखा तैयार की। मगर आज इस बात की चर्चा कहीं नहीं है। डॉ राजेंद्र प्रसाद के सम्मान में भारत में किसी प्रकार का कोई दिवस नहीं मनाया जाता है, न ही संसार में उनके नाम पर कोई शिक्षण संस्थान ही है।

रात आठ बजते-बजते वह रात का खाना खा लेते थे। उनका खाना एकदम सादा होता था। फलों में आम उनको बहुत पसंद था। वे जल्दी सोते थे और बहुत सुबह जाग जाते थे। वकालत की पूरी पढ़ाई उन्होंने सुबह उठकर ही की है। इस बात का ज़िक्र उन्होंने अपनी आत्मकथा में भी किया है। 1915 में उन्होंने स्वर्णपदक के साथ लॉ में मास्टर्स की डिग्री हासिल की और बाद में पीएचडी की।

राजेंद्र प्रसाद दमा के मरीज़ थे। दमा उनकी मां को भी था। जुलाई 1961 में राजेंद्र प्रसाद गंभीर रूप से बीमार पड़े थे। डॉक्टरों ने कहा कि अब वह नहीं बचेंगे। मगर अगस्त 1961 को भयंकर बीमारी के बाद वे ठीक हो गए। राष्ट्रपति का कार्यकाल पूरा होने के बाद वे पटना आए थे।

उस समय उनको मात्र 1100 रुपये पेंशन मिलती थी। पटना के सदाक़त आश्रम में सेवानिवृत्त होने के बाद अपना जीवन गुज़ारा और 28 फरवरी, 1963 को यहीं उनकी मृत्यु भी हुई। राष्ट्रपति भवन में जब कभी विदेशी अतिथि आते तो उनके स्वागत में उनकी आरती की जाती थी और राजेंद्र बाबू चाहते थे कि विदेशी मेहमानों को भारत की संस्कृति की झलक दिखाई जाए।

तारा सिन्हा कहती हैं उनके बारे में बहुत सारी अफ़वाहें हैं, जिनसे बहुत दुख होता है, सबसे झूठी बात ये है कि वे खैनी खाते थे।

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